Analysis: कर्नाटक में कांग्रेस और जदएस का गठबंधन लंबा चलने पर संशय
बड़ा भवन बनाना हो तो पहले जमीन का पुख्ता होना जरूरी होता है। जमीन खोखली हुई तो भवन का ध्वस्त होना तय है।
[ प्रशांत मिश्र ]। बड़ा भवन बनाना हो तो पहले जमीन का पुख्ता होना जरूरी होता है। जमीन खोखली हुई तो भवन का ध्वस्त होना तय है। कर्नाटक में नए मुख्यमंत्री कुमारस्वामी के शपथग्रहण समारोह के लिए इकट्ठी हुई कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियां शायद इस मूल सिद्धांत को भूल गई। जिस कर्नाटक की जमीन पर भावी विपक्षी एकता का संकेत दिया गया उसी कर्नाटक में खुद मुख्यमंत्री भी गठबंधन को लेकर सशंकित हैं और सहयोगी दल कांग्रेस भी। राष्ट्रीय स्तर की बात हो तो सच है कि पहली बार मायावती, अखिलेश, ममता, सोनिया, राहुल जैसे नेता इकट्ठे खड़े हुए हों, लेकिन अंदरूनी खींचतान खत्म हो गई हो इसका संकेत कहीं से नहीं दिखा।
::त्वरित टिप्पणी::
बुधवार की घटना ने एक बात साफ कर दी- विपक्षी दल यह पूरी तरह समझ गए हैं कि वह भाजपा का मुकाबला नहीं कर सकते। यह बात केवल केंद्र स्तर की नहीं है, राज्यों में क्षेत्रीय दल भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियका और अमित शाह के कौशल प्रबंधन से सहमे हुए हैं। वरना कोई कारण नहीं था आज के दिन भी अपने राज्य पश्चिम बंगाल में भाजपा से कोसों आगे खड़ी ममता बनर्जी उस कांग्रेस को जोड़ने के लिए एड़ी चोटी का पसीना बहा रही है जो सिमट गई है। आन्ध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू हों या मायावती और अखिलेश यादव या फिर बिहार के नेता विपक्ष तेजस्वी यादव, उनका इस शपथग्रहण समारोह में आने का मकसद सिर्फ एक था- भाजपा से लड़ने के लिए संयुक्त सेना का गठन, लेकिन उस सेना का सेनापति कौन होगा..? इसका जवाब मांगे तो मानकर चलिए जवाब आएगा- वक्त आने दीजिए आपको पता लग जाएगा। क्या इस जवाब का निहितार्थ किसी से छिपा है।
माकपा नेता सीताराम येचुरी बार-बार बोलते रहे हैं कि चुनाव पूर्व गठबंधन का कोई अर्थ नहीं है। स्थिति चुनाव बाद ही तय होगी। राहुल बोल रहे हैं कि पूरा विपक्ष एक साथ मिलकर लड़ेगा। ममता बनर्जी कहती हैं- हर किसी को मिलकर उस दल के पीछे खड़ा होना चाहिए जो संबंधित राज्य में बड़ी शक्ति है। यानी वह चाहती हैं कि पश्चिम बंगाल में कांग्रेस ममता को मदद करे। कर्नाटक में तो खैर जदएस ने कांग्रेस को पीछे कर ही दिया है। छोटी पार्टी होने के बावजूद मुख्यमंत्रित्व उनके पास है। आंध्र प्रदेश में नायडू की चाहत भी ऐसी होगी और तमिलनाडु में द्रमुक ऐसा सोचे तो कोई आश्चर्य नहीं। केरल में वाम के साथ मोर्चा बन नहीं सकता। उत्तर प्रदेश में मायावती और अखिलेश अगर इकट्ठे हुए तो कांग्रेस का क्या काम? बिहार में राजद बड़ी पार्टी है और झारखंड में झामुमो। ऐसे में बंगलूरू में क्षेत्रीय दल जश्न मना रहे हों तो समझ आता है, लेकिन कांग्रेस क्यों उत्साहित है, यह समझ से परे है। आखिर उसे क्या हासिल होने वाला है.?
- क्षेत्रीय दलों के स्वार्थ में कांग्रेस के लिए नहीं बचेगा स्थान
वैसे भी अगर कर्नाटक में दोनों दलों के गठबंधन का अंर्तद्वंद इतना भारी है तो यह तय है कि वह टूटे या न टूटे खामियाजा कांग्रेस को ही भुगतना होगा। खुद कुमारस्वामी ने कहा है कि गठबंधन उनके लिए चुनौती है। उससे पहले कांग्रेस के प्रदेश नेता डी शिवकुमार कड़वी गोली निगलने की बात कह चुके हैं। यह मानकर चला जाए कि लाख खींचतान और अपमान के बावजूद सरकार चली भी तो लोकसभा चुनाव के वक्त टकराव चरम पर होगा। दरअसल कांग्रेस और जदएस के मजबूत गढ़ एक ही क्षेत्र में हैं और ऐसे में सिर फुटौव्वल रुकना संभव नहीं है।