केंद्र सरकार ने कोर्ट से कहा- टिप्पणियां करने में संयम बरतें
वेणुगोपाल ने कहा कि भारत जैसे देश में कई तरह की समस्याएं हैं। जरूरी नहीं है कि कोर्ट को प्रत्येक समस्या के हर पहलू की जानकारी हो।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। जनहित याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान कोर्ट की तल्ख टिप्पिणयों को सामना कर रही सरकार की ओर से पेश अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने बुधवार को कोर्ट से आग्रह किया कि वो जनहित याचिकाओं की सुनवाई के दौरान टिप्पणियां करने में संयम बरतें। वेणुगोपाल ने कहा कि भारत जैसे देश में कई तरह की समस्याएं हैं। जरूरी नहीं है कि कोर्ट को प्रत्येक समस्या के हर पहलू की जानकारी हो।
अटार्नी जनरल ने ये गुजारिश न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ के समक्ष उस समय की जब कोर्ट जेल में बंद कैदियों की दुर्दशा पर सुनवाई कर रहा था। अटार्नी जनरल ने कहा कि भारत में कई तरह की समस्याएं हैं ऐसे में कोर्ट को जनहित याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सरकार के कामकाज की आलोचना में संयम बरतना चाहिए।
उन्होंने कहा कि जनहित याचिका पर कोर्ट को विचार करना चाहिए क्योंकि उनमें मौलिक अधिकारों के हनन का मुद्दा शामिल होता है लेकिन उन पर आदेश देते समय ये भी ध्यान में रखना चाहिए कि आदेश का क्या असर और परिणाम होगा। उसका दूसरे वर्ग पर असर पड़ सकता है। वेणुगोपाल ने कहा जैसे कि 2जी लाइसेंस रद करने से बड़े पैमाने पर विदेशी निवेश का नुकसान हुआ। इसी तरह हाईवे से शराब की दुकाने हटाने के आदेश से आर्थिक नुकसान हुआ लोगों की रोजीरोटी छिन गई।
वेणुगोपान ने कहा कि उनकी राय में जनहित याचिकाओं पर आने वाले प्रत्येक आदेश में एक अलग नोट होना चाहिए जिसमें उस आदेश का अन्य सेक्टरों और दूसरे लोगों के अधिकारों पर पड़ने वाले प्रभाव हों। उन्होंने कहा कि मेरी राय में सभी जनहित याचिकाओं को इसी तरह निपटाया जाना चाहिए। हर आदेश में संतुलन कायम होना चाहिए। भारत देश में बहुत तरह की समस्याएं हैं जैसे गरीबी, अशिक्षा, अनभिज्ञता आदि। सरकार के लिए उन्हें देखना सबसे जरूरी है जो रोजाना 100 रुपये भी नहीं कमा पाते। कोर्ट को उन अच्छे कामों को भी देखना चाहिए जो सरकार कर रही है। ऐसा नहीं है कि सरकार कुछ नहीं कर रही। कई क्षेत्रों में प्रगति हुई है। सब कुछ नकारात्मक नहीं है।
अटार्नी जनरल की इन दलीलों पर जस्टिस लोकूर ने कहा कि वे स्पष्ट करना चाहते हैं कि उनकी मंशा सरकार की आलोचना नही होती। वे भी इस देश के नागरिक हैं और यहां की समस्याएं जानते हैं। वे सिर्फ नागरिकों के सम्मान से जीवन जीने के अधिकार (अनुच्छेद 21) को लागू करने का प्रयास करते हैं। इसकी अनदेखी नहीं हो सकती।
पीठ ने कहा कि बहुत से काम कोर्ट के आदेश के बाद हुए हैं। आप सिर्फ अपने अधिकारियों से कहें कि वे संसद द्वारा बनाए गए कानूनों को लागू करें। बात कोर्ट के आदेश पर एकत्रित सेस से आए हजारों करोड़ रुपये की भी हुई। जेलों में बंद कैदियों की दुर्दशा के मामले में कोर्ट ने कहा कि इस बारे में सेवानिवृत न्यायाधीश की अगुवाई में एक कमेटी बनाए जाने पर विचार हो जिसमें सरकार के दो अफसर शामिल हों। ये कमेटी समय समय पर अपनी रिपोर्ट कोर्ट को देगी।