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ममता बनर्जी कर रही हैं राज्य के नागरिकों के हितों की अनदेखी

सरकारी योजनाओं के तहत मिलने वाला लाभ सही व्यक्ति तक पहुंचे और उसकी पहचान की जा सके ऐसे में एनपीआर में नाम दर्ज न होने से योजनाओं का लाभ नहीं मिल सकेगा।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Fri, 17 Jan 2020 08:40 PM (IST)Updated: Fri, 17 Jan 2020 08:40 PM (IST)
ममता बनर्जी कर रही हैं राज्य के नागरिकों के हितों की अनदेखी
ममता बनर्जी कर रही हैं राज्य के नागरिकों के हितों की अनदेखी

नन्द राय, कोलकाता। राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) का बंगाल में लागू न करने का एलान कर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भले ही मोदी सरकार से अपने विरोध का रंग गाढ़ा कर रही हैं, लेकिन इससे वह अपने राज्य के नागरिकों के हितों की अनदेखी भी कर रही है। इसके विरोध में वह तर्को का पहाड़ खड़ा कर रही हैं, लेकिन विशेषज्ञों की दलील है कि अगर एनपीआर में नागरिक अपना ब्योरा दर्ज नहीं कराएंगे तो बंगाल को इसका खामियाजा चुकाना पड़ सकता है। राज्य के नागरिक सरकारी योजनाओं के लाभ से वंचित हो सकते हैं।

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बैठक का बहिष्कार कर ममता बनर्जी ने दिया नया मोड़

ममता बनर्जी ने केंद्रीय गृह मंत्रालय की सभी राज्यों के साथ होने वाली बैठक का बहिष्कार कर इस बहस को नया मोड़ दे दिया है। आखिर देश के बाकी राज्यों ने बैठक में शामिल होने की हामी क्यों भरी? स्पष्ट है कि वे राज्य अपने नागरिकों के हितों को जाया नहीं होने देना चाहते हैं। एनपीआर से लोगों के डाटा के जरिये योजनाओं के लाभार्थियों की पहचान करने में मदद जरूर मिलेगी।

2011 की जनगणना में भी एनपीआर के लिए जानकारी एकत्र की गई थी

2011 के लिए जब जनगणना शुरू हुई थी तो भी एनपीआर के लिए जानकारी एकत्र की गई थी। 2015 में इस डाटा को घर-घर सर्वे करके अपडेट किया गया था।

अप्रैल से सितंबर 2020 तक जनगणना के आंकड़े जुटाए जाएंगे

अब अप्रैल से सितंबर 2020 तक जनगणना के आंकड़े जुटाए जाएंगे उसी दौरान एनपीआर भी अपडेट किया जाएगा। लेकिन, ममता बनर्जी की सरकार ने आदेश जारी कर इसे रोक दिया है।

ममता इसे राजनीतिक रंग दे रहीं, नहीं देना होगा कोई दस्तावेज

विशेषज्ञ कहते हैं 'राज्य सरकार बिना वजह इसे राजनीतिक रंग दे रही है। एनपीआर में तो सरकारी कर्मचारी घर-घर जाकर लोगों से निवास की अवधि से लेकर पूरा ब्योरा हासिल करते हैं और इसके लिए कोई दस्तावेज देने की जरूरत भी नहीं होती है। सारी जानकारी मौखिक रूप से ली जानी है तो फिर इस पर कोई विवाद होना ही नहीं चाहिए।'

तृणमूल माता-पिता की जन्म तिथि पूछने को गलत मानती है

हालांकि, तृणमूल कांग्रेस के समर्थक कहते हैं 'इसमें माता-पिता की जन्म तिथि पूछना और मातृभाषा की जानकारी मांगना गलत है। यह इसलिए मांगा जा रहा है ताकि पता लगाया जा सके कि देशभर में किन-किन क्षेत्रों में कहां-कहां के कितने लोग रह रहे हैं।'

कोई विदेशी नागरिक देश में छह माह से रह रहा है तो उसका ब्योरा एनपीआर में दर्ज होगा

नागरिकता कानून 1955 और नागरिकता पंजीयन व राष्ट्रीय पहचान पत्र आवंटन नियम, 2003 के तहत एनपीआर तैयार कराया जाता है। अगर कोई विदेशी नागरिक भी देश के किसी हिस्से में छह माह से ज्यादा समय से रह रहा है तो उसका ब्योरा भी एनपीआर में दर्ज किया जाना है। दरअसल, एनपीआर का लक्ष्य देश में रहने वाले हर व्यक्ति की पहचान करना है। यह ब्योरा तैयार होने से हर तरह की योजना लागू करने में सहूलियत होगी।

एनपीआर लागू न होने के ये नुकसान

- सरकारी योजनाओं के अंतर्गत दिया जाने वाला लाभ सही व्यक्ति तक पहुंचे और व्यक्ति की पहचान की जा सके, ऐसे में एनपीआर में नाम दर्ज न होने से योजनाओं का लाभ नहीं मिल सकेगा।

- एनपीआर के जरिये देश की सुरक्षा में सुधार किया जा सकता है। इससे आतंकवादी गतिविधि रोकने में सहूलियत होगी। बंगाल की सीमा बांग्लादेश, नेपाल से लगी है। यहां घुसपैठियों की आमद धड़ल्ले से होती है। कोस्टल इलाके भी हैं। कई आतंकी संगठन भी सक्रिय हुए हैं। एनपीआर लागू नहीं हुआ तो घुसपैठियों को सहूलियत मिलेगी और राज्य और देश असुरक्षित होगा।


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