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ममल्लापुरम से जुड़े हैं चीन और भारत के 1700 साल पुराने रिश्तों के तार

मामल्लापुरम की सबसे बड़ी खासियत यह है कि चीन के तत्कालीन शासकों ने पल्लव वंश के राजाओं के साथ संभवत दुनिया का पहला रणनीतिक समझौता किया था।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Wed, 09 Oct 2019 10:05 PM (IST)Updated: Wed, 09 Oct 2019 10:05 PM (IST)
ममल्लापुरम से जुड़े हैं चीन और भारत के 1700 साल पुराने रिश्तों के तार
ममल्लापुरम से जुड़े हैं चीन और भारत के 1700 साल पुराने रिश्तों के तार

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। पीएम नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने अपनी दूसरी अनौपचारिक वार्ता के लिए चेन्नई के पास स्थित मामल्लापुरम को क्यों चुना? इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि मामल्लापुरम (पुराना नाम महाबलीपुरम) चीन और भारत के पुराने रिश्तों की सबसे बड़ी कड़ी है।

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ममल्लापुरम से जुड़े हैं चीन के 1700 वर्ष पहले के तार

यह शहर असलियत में भारत व चीन के बीच 1700 वर्ष पहले जोड़ने का काम इस तरह से किया था जिसका असर अभी भी चीन में दिखाई दे रहा है। चीन में बौद्ध धर्म के जिस संप्रदाय का आज सबसे ज्यादा प्रसार है उसे वहां पहुंचाने में इस शहर की खास भूमिका रही है। यही नहीं यह शहर सदियों तक दोनों देशों के बीच कारोबार का सबसे बड़ा केंद्र रहा है।

चिनफिंग को है इतिहास में खासी दिलचस्पी

दरअसल, पीएम मोदी को इस बात का बहुत अच्छी तरह से पता है कि राष्ट्रपति चिनफिंग को इतिहास में खासी दिलचस्पी है। इस तरह से उनका खास तौर पर निर्देश था कि जो भी जगह चयनित की जाए उसकी खास ऐतिहासिक व सांस्कृतिक अहमियत होनी चाहिए।

जनाब, भारत की विविधता को पहचानिए

विदेश मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक मोदी ने पहले कार्यकाल के दौरान ही साफ कर दिया था कि विदेशी राष्ट्र प्रमुखों को नई दिल्ली के अलावा दूसरे शहर भी दिखाए जाने चाहिए ताकि उन्हें भारत की विविधता के बारे में पता हो सके। यही वजह है कि इस बारे चेन्नई के पास स्थित इस बेहद महत्वपूर्ण शहर के नाम पर सहमति बनी है।

ह्वेनसांग भी इस शहर की यात्रा पर आये थे

चीन के प्रसिद्ध यात्री ह्वेनसांग भी इस शहर की यात्रा पर आये थे और इसके बारे में काफी कुछ लिखा है, लेकिन इस शहर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि चीन के तत्कालीन शासकों ने पल्लव वंश के राजाओं के साथ संभवत: दुनिया का पहला रणनीतिक समझौता किया था जिसमें चीन की सुरक्षा की जिम्मेदारी तब समूचे दक्षिण भारत पर राज करने वाले पल्लव वंश के राजाओं को सौंपा गया था। इस दौरान दक्षिण भारत चीन का एक प्रमुख कारोबारी स्थल के तौर पर भी विकसित हुआ। इसके बदले पल्लव व चोल वंश के राजाओं के शासन को दक्षिण पूर्ण एशिया में प्रसार करने में भी चीन के तत्कालीन शासकों ने मदद की।


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