नौ महीने से खाली है विधि आयोग का अध्यक्ष पद, कई संवेदनशील मुद्दे विचाराधीन हैं आयोग में
लोकसभा और विधानसभा का चुनाव एक साथ कराने पर संविधान और मौजूदा कानून मे जरूरी संशोधन करने होंगे।
माला दीक्षित, नई दिल्ली। पुराने पड़ चुके कानूनों की समीक्षा और नये कानूनों की जरूरत व रूप रेखा पर विचार करने वाले विधि आयोग में नौ महीने से अध्यक्ष पद खाली पड़ा है। जस्टिस बीएस चौहान के सेवानिवृत होने के बाद नये अध्यक्ष की नियुक्ति या चयन नहीं हुआ है। देश की राजनैतिक और सामाजिक दिशा तय करने वाले कई महत्वपूर्ण मुद्दे अभी आयोग में विचाराधीन हैं, लेकिन अध्यक्ष नहीं होने की वजह से लोगों को और लंबे समय तक इंतजार करना पड़ सकता है।
पिछले आयोग से लोग समान नागरिक संहिता, विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ कराने और राजद्रोह कानून की समीक्षा जैसे मुद्दों पर आयोग से विस्तृत नजरिये और रिपोर्ट की उम्मीद लगाए बैठे थे, लेकिन पिछले आयोग ने इन तीनों मुद्दों पर कोई अंतिम रिपोर्ट नहीं दी थी बल्कि प्रारंभिक नजरिया पेश करते हुए परामर्श पत्र जारी कर जनता की राय मांगी थी। समय पर अध्यक्ष की नियुक्ति होने की स्थिति में इन संवेदनशील मुद्दों पर जल्द फैसला हो सकता था जो कि अभी लटके हैं।
पिछले विधि आयोग का कार्यकाल 31 अगस्त 2018 को जस्टिस बीएस चौहान का कार्यकाल समाप्त होने के साथ ही पूरा हो गया था। कार्यकाल समाप्त के आखिरी दिन आयोग ने परामर्श पत्र जारी कर समान नागरिक संहिता के बजाए विभिन्न पारिवारिक विधियों (कानूनों) में संशोधन की सलाह दी थी और इस पर जनता की राय पूछी थी। जबकि शुरुआत में आयोग ने इस बारे में 16 सवालों की प्रश्नावली जारी कर लोगों से राय मांगी थी। जिसमें मुस्लिमों में प्रचलित तीन तलाक, निकाह हलाला और बहुविवाह का भी मुद्दा शामिल था।
बाद में तीन तलाक पर कोर्ट का फैसला आने और संसद में मामला विचाराधीन होने के आधार पर आयोग ने विचार के दायरे से तीन तलाक, निकाह हलाला और बहुविवाह का मुद्दा हटा दिया था और समान नागरिक संहिता पर लोगों से नये सिरे से सुझाव मांगे थे। हालांकि बताते चले कि समान नागरिक संहिता में सिर्फ मुस्लिम पर्सनल ला ही नहीं हिन्दू पर्सनल ला, क्रिश्चियन पर्सनल ला भी शामिल है।
इसके अलावा दूसरे महत्वपूर्ण मुद्दे लोकसभा और विधानसभा का चुनाव एक साथ कराने पर विधि आयोग ने जस्टिस चौहान का कार्यकाल समाप्त होने के एक दिन पहले 30 अगस्त को ड्राफ्ट रिपोर्ट जारी की थी जिसमें वह दोनों चुनाव साथ कराने के पक्ष में था। आयोग ने एक साथ चुनाव की तरफदारी करते हुए ड्राफ्ट रिपोर्ट में कहा था कि व्यापक राष्ट्रहित में भारत के लिए एक साथ चुनाव की ओर वापस जाने का समय आ गया है। हालांकि इसके लिए संविधान और मौजूदा कानून मे जरूरी संशोधन करने होंगे।
आयोग ने त्रिशंकु लोकसभा और विधानसभा की स्थिति में प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के चुनाव प्रक्रिया के बारे में जनता से सुझाव मांगे थें ताकि इस बारे में सरकार को अंतिम रिपोर्ट सौंपी जा सके। इसके बाद आयोग का कार्यकाल समाप्त हो गया और मामला ड्राफ्ट रिपोर्ट तक ही सीमित रह गया।
राजद्रोह (आइपीसी की धारा 124ए) पर भी आयोग ने विचार तो किया, लेकिन कानून की समीक्षा के लिए और अधिक विचार की जरूरत बताते हुए आयोग ने जस्टिस चौहान का कार्यकाल पूरा होने से एक दिन पहले जनता की विस्तृत राय जानने के लिए परामर्श पत्र जारी किया था यानी वह मामला भी अभी लंबित है।
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