केंद्र बनाम आरबीआइ : धारा-7 लागू करने पर सरकार गंभीर
ज्यादा फंड उपलब्ध कराने को लेकर आरबीआइ बोर्ड की तरफ से कोई इंतजाम नहीं हुआ तो सरकार धारा-7 का इस्तेमाल करने से नहीं हिचकेगी।
नई दिल्ली, जयप्रकाश रंजन। सोमवार को आरबीआइ की पूर्ण निदेशक बोर्ड की बैठक में कुछ अप्रत्याशित होने के आसार हैं। अगर फंसे कर्जे (एनपीए) के नियमों और लघु व मझोले उद्योगों (एसएमई) को ज्यादा फंड उपलब्ध कराने को लेकर आरबीआइ बोर्ड की तरफ से कोई इंतजाम नहीं हुआ तो सरकार धारा-7 का इस्तेमाल करने से नहीं हिचकेगी।
आरबीआइ अधिनियम की धारा-7 केंद्र सरकार को यह अधिकार देता है कि वह अपनी मर्जी के मुताबिक फैसले केंद्रीय बैंक को करने के लिए निर्देश दे सकता है। इस धारा का इस्तेमाल सरकार की तरफ से आज तक नहीं हुआ है।
धारा-7 का इस्तेमाल करना एक बेहद संवदेनशील मामला हो सकता है। लिहाजा सरकार इसके लिए हर तरह से चाक चौबंद हो जाना चाहती है। इस बारे में वित्त मंत्रालय ने कानून मंत्रालय की राय मांगी थी। सूत्रों के मुताबिक कानून मंत्रालय ने सरकार को इस धारा के इस्तेमाल करने की हरी झंडी दिखा दी है। धारा-7 में केंद्र सरकार के अधिकार स्पष्ट तौर पर निर्धारित है।
अगर इसका अभी तक इस्तेमाल नहीं किया गया है तो यह मतलब नहीं है कि आगे भी नहीं किया जा सकता है। जाहिर है कि इस बारे में कानून मंत्रालय से राय मशविरा करना ही वित्त मंत्रालय के स्तर पर इस मामले की गंभीरता को प्रदर्शित करता है।
अब यह स्पष्ट है कि सरकार अर्थव्यवस्था को बेहतर करने की दिशा में हर संभव कदम उठाने से नहीं हिचकेगी। इसलिए 19 नवंबर, 2018 को आरबीआइ बोर्ड की बैठक को लेकर सरकार की सोच पूरी तरह से स्पष्ट है। सरकार की तरफ से बोर्ड में नामित सदस्य एस गुरुमूर्ति ने सार्वजनिक तौर पर आरबीआइ की कई नीतियों की आलोचना की। खास तौर पर जिस तरह से उन्होंने फरवरी, 2018 में आरबीआइ की तरफ से फंसे कर्जे (एनपीए) को लेकर नए नियमों की घोषणा की गई उसके लिए गवर्नर ऊर्जित पटेल को ही दोषी ठहरा दिया।
उन्होंने सवाल उठाया कि जब वर्ष 2009 से वर्ष 2014 तक बैंकों की तरफ से काफी ज्यादा कर्ज दिया जा रहा था तब आरबीआइ ने इस तरह के नियम लागू नहीं किये और अब अचानक सभी फंसे कर्जे के मामले को सामने लाने की बात कही जा रही है। बताते चले कि इस नियम के तहत आरबीआइ ने सभी बैंकों को निर्देश दिया है कि अगर 90 दिनों के बाद कर्ज वसूली में एक दिन की भी देरी होती है तो इन खाताधारकों के खिलाफ नए दिवालिया कानून के तहत कार्रवाई होनी चाहिए।
इस नियम से दर्जनों बिजली, स्टील व अन्य उद्योगों से जुड़ी कंपनियों को लेकर कई तरह की दिक्कतें पैदा हो गई हैं। तकरीबन 30 बिजली कंपनियों के उपर दिवालिया होने का तलवार लटक रहा है। इनका मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है। इस नियम की वजह से बैंकों को अपनी कमाई के एक बड़े हिस्से का समायोजन करना पड़ रहा है जिससे उन्हें लगातार भारी हानि उठानी पड़ रही है।