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मोदी सरकार का बड़ा फैसला : पहली बार जनगणना में जुटाए जाएंगे पिछड़ी जातियों के आंकड़े

2019 के आम चुनावों के पहले ओबीसी की जनगणना कराने की घोषणा को और ओबीसी आयोग को संवैधानिक दर्जा देने राजनीतिक और चुनावी रूप से काफी अहम माना जा रहा है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Fri, 31 Aug 2018 05:19 PM (IST)Updated: Sat, 01 Sep 2018 07:49 AM (IST)
मोदी सरकार का बड़ा फैसला : पहली बार जनगणना में जुटाए जाएंगे पिछड़ी जातियों के आंकड़े
मोदी सरकार का बड़ा फैसला : पहली बार जनगणना में जुटाए जाएंगे पिछड़ी जातियों के आंकड़े

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सरकार ने देश में पहली बार पिछड़े वर्ग की जनगणना कराने का फैसला लिया है। 2021 में आम जनगणना के दौरान अन्य पिछड़ी जातियों (ओबीसी) के आंकड़े अलग से जुटाए जाएंगे। ओबीसी नेताओं की ओर से लंबे समय से पिछड़ी जातियों की जनगणना कराने की मांग की जा रही थी, ताकि आरक्षण और अन्य विकास योजनाओं में उनकी सही भागीदारी सुनिश्चित की जा सके। इसके पहले सरकार विपक्ष के तमाम अड़ंगों के बावजूद ओबीसी आयोग को संवैधानिक दर्जा दिलाने में सफल रही है। 
देश में ओबीसी की सही जनसंख्या के आंकड़े नहीं 
शुक्रवार को गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने 2021 की जनगणना की तैयारियों की समीक्षा के दौरान ओबीसी के आंकड़े अलग से जुटाने का निर्देश दिया। अभी तक देश में ओबीसी की सही जनसंख्या के आंकड़े नहीं हैं। तीन साल के भीतर जारी होंगे आंकड़ेबैठक में राजनाथ सिंह ने इस बार जनगणना में अत्याधुनिक तकनीक का सहारा लेने का निर्देश दिया, ताकि जनगणना के आंकड़ों को तीन साल के भीतर जारी किया जा सके। इसके पहले जनगणना के सारे आंकड़े सार्वजनिक होने में सात से आठ साल तक का वक्त लग जाता था। माना जा रहा है कि जनगणना के त्वरित आंकड़ों के लिए 25 लाख लोगों को विशेष प्रशिक्षण दिया जाएगा। 1931 के आंकडों पर आधारित है मंडल कमीशन की रिपोर्टमंडल कमीशन के आधार पर ओबीसी को 27 फीसद का आरक्षण दे दिया गया। लेकिन मंडल कमीशन की रिपोर्ट 1931 की जनगणना के आंकड़ों पर आधारित थी। 2006 में ओबीसी की आबादी 41 फीसद बताई गई।

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ओबीसी की आबादी 41 फीसद बताई गई 
राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ) ने 2006 में एक सैंपल सर्वे रिपोर्ट जारी की थी। इसमें बताया गया था कि देश की कुल आबादी में से 41 फीसद ओबीसी की है। संगठन ने देश के 79,306 ग्रामीण घरों और 45,374 शहरी घरों का सर्वे कर यह रिपोर्ट तैयार की थी। 

2011 में संप्रग ने कराई सामाजिक आर्थिक गणना 
पिछली संप्रग सरकार ने 2011 में देश में सामाजिक -आर्थिक-जातीय गणना कराई थी। इसके निष्कर्ष तीन जुलाई 2015 को मौजूदा राजग सरकार ने जारी किए थे। 

राजनीतिक रूप से अहम है सरकार का फैसला
सरकार ने ओबीसी की अलग से जनगणना कराने का फैसला कर साफ कर दिया है कि वह ओबीसी को देश के विकास में भागीदार बनाने के प्रति गंभीर है। 2019 के आम चुनावों के पहले ओबीसी की जनगणना कराने की घोषणा और ओबीसी आयोग को संवैधानिक दर्जा देना, राजनीतिक और चुनावी रूप से काफी अहम माना जा रहा है। विपक्ष लगातार सरकार पर दलित और पिछड़ा विरोधी होने का आरोप लगाता रहा है, वहीं सरकार ने बार-बार अपने क्रियाकलापों और योजनाओं से दलित और पिछड़ों के प्रति अपनी सजगता जाहिर की है।
सिविल पंजीकरण प्रणाली में सुधार पर दिया जोरजनगणना के साथ ही राजनाथ सिंह ने सिविल पंजीकरण प्रणाली में विशेष रूप से दूरदराज के इलाकों में जन्म और मृत्यु के पंजीकरण, शिशु मृत्यु दर, मातृ मृत्यु दर और प्रजनन दर के आंकड़ों के अनुमान के लिए नमूना पंजीकरण प्रणाली को मजबूत करने पर सुधार की जरूरत पर भी जोर दिया।
तीन साल में जारी होंगे आंकड़े
बैठक के दौरान राजनाथ सिंह ने इस बार जनगणना में अत्याधुनिक तकनीक का सहारा लेने का निर्देश दिया, ताकि जनगणना के आंकड़ों को रिकार्ड तीन साल के भीतर जारी किया जा सके। इसके पहले जनगणना के सारे आंकड़े सार्वजनिक होने में सात से आठ साल तक का वक्त लग जाता था।
माना जा रहा है कि जनगणना के त्वरित आंकड़ों के लिए 25 लाख लोगों को विशेष प्रशिक्षण दिया जाएगा। जनगणना के साथ ही राजनाथ सिंह ने सिविल पंजीकरण प्रणाली में विशेष रूप से दूरदराज के इलाकों में जन्म और मृत्यु के पंजीकरण, शिशु मृत्यु दर, मातृ मृत्यु दर और प्रजनन दर के आंकड़ों के अनुमान के लिए नमूना पंजीकरण प्रणाली को मजबूत करने पर सुधार की जरूरत पर भी जोर दिया।


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