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CBIvsMamata: जानिए, क्यों मेट्रो चैनल पर ही धरने पर बैठी हैं ममता बनर्जी

केंद्र सरकार और पश्चिम बंगाल सरकार के बीच सीबीआइ की कार्रवाई को लेकर मची खींचतान के बीच ममता फिर उसी जगह पर धरने पर बैठी है जहां से उन्हें नई सियासी ताकत मिली थी।

By Brij Bihari ChoubeyEdited By: Published: Mon, 04 Feb 2019 04:59 PM (IST)Updated: Mon, 04 Feb 2019 05:01 PM (IST)
CBIvsMamata: जानिए, क्यों मेट्रो चैनल पर ही धरने पर बैठी हैं ममता बनर्जी
CBIvsMamata: जानिए, क्यों मेट्रो चैनल पर ही धरने पर बैठी हैं ममता बनर्जी

नई दिल्ली (जेएनएन): अग्निकन्या के नाम से मशहूर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी केंद्र सरकार और सीबीआइ (CBIvsMamata) के खिलाफ राज्य की राजधानी कोलकाता में धर्मतल्ला के जिस मेट्रो चैनल इलाके में धरने पर बैठी हैं, वह उनके लिए बहुत शुभ रहा है। 2004 में लोकसभा चुनाव में राज्य में मात्र एक सीट हासिल करने और दो साल बाद 2006 के विधानसभा चुनाव में सिर्फ 30 सीटों पर सिमटने वाली उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस को इसी जगह ने नया राजनीतिक जीवन दिया था। इसी जगह पर ममता बनर्जी ने दिसंबर, 2006 में सिंगुर और नंदीग्राम के मुद्दे पर 26 दिन का उपवास किया था।

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कुछ महीनों में बदली किस्मत

किसी ने नहीं सोचा था कि चुनाव हारने के कुछ ही महीने बाद ममता को इतनी बड़ी कामयाबी मिलेगी लेकिन इतिहास गवाह है कि इसी उपवास के बाद ममता बनर्जी को नई राजनीतिक ऊर्जा मिली थी और वे 34 साल के वामपंथी शासन को उखाड़ फेंकने में कामयाब हुई थीं। इस घटना के 13 साल बाद ममता बनर्जी फिर उसी मेट्रो चैनल में धरने पर बैठी हैं, जहां सोमवार को विधानसभा में बजट पेश करने के पहले उन्होंने कैबिनेट बैठक भी की। कुल मिलाकर ममता सरकार इस समय मेट्रो चैनल से चल रही है। यहां न सिर्फ पार्टी विधायक बल्कि राज्य के आला अधिकारी भी जमे हुए हैं।

सिंगुर और नंदीग्राम का महत्व

वर्ष 2006 में पश्चिम बंगाल की तत्कालीन वामपंथी सरकार ने टाटा के नैनो कार की फैक्ट्री के लिए कंपनी को सिंगुर में जमीन आवंटित की थी। ममता बनर्जी ने इसके खिलाफ किसानों के आंदोलन का नेतृत्व किया था। उस दौर में बंगाल में आए दिन हड़ताल, धरना और आंदोलन होते थे और पूरे राज्य में अराजकता का बोलबाला था। सिंगुर की ही तरह राज्य के नंदीग्राम में भी राज्य सरकार द्वारा जमीन अधिग्रहण के खिलाफ किसान उठ खड़े हुए थे। यह जमीन इंडोनेशिया के सलीम ग्रुप को आवंटित की गई थी। इसके विरोध में उग्र किसान आंदोलन खड़ा हो गया। इसी दौरान 14 मार्च, 2007 को पुलिस की गोलीबारी में 14 लोगों की मौत हो गई थी। इसके बाद जनाक्रोश भड़क उठा था। ऐसी ही माहौल में ममता ने आगे बढ़कर किसानों के मुद्दे को हवा दी थी और उसी के दम पर 2011 में राज्य में सरकार बनाने में कामयाब हुई थीं।

तेरह साल बाद ममता का यह रूप

हालांकि मुख्यमंत्री बनने के बाद से ममता बनर्जी की वह आंदोलनकारी रूप देखने को नहीं मिला था, लेकिन ताजा घटनाक्रम ने उन्हें एक बार फिर अपना पुराना रूप दिखाने का मौका मुहैया करा दिया है। इस समय राज्य की राजनीति काफी गर्म है। ममता बनर्जी को हराने के लिए भाजपा ने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया है। इस वजह से दोनों दलों में टकराव की स्थिति बन गई है। कभी पीएम नरेंद्र मोदी के हेलीकॉप्टर को उतरने की अनुमति नहीं मिलती है तो कभी भाजपा अध्यक्ष को सभा की इजाजत नहीं दी जाती है। उधर, केंद्र की मोदी सरकार भी चुप नहीं बैठी है। वह सारधा और रोज वैली घोटालों के लिए जरिए ममता सरकार को घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ रही है। इस राजनीतिक घमासान का ऊंट किस करवट बैठेगा, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा लेकिन इतना तो तय है कि इस वजह से संवैधानिक व्यवस्था पर खरोंच तो लग ही गई है, जिसे मिटाना आसान नहीं होगा।


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