अपने विधायकों को संभाल न पाने की वजह से मध्य प्रदेश में कमजोर हो गई बसपा
मध्य प्रदेश भाजपा के मुख्य प्रवक्ता दीपक विजयवर्गीय कहते हैं कि बसपा विधायक अपने विवेक से निर्णय लेते हैं और यह विधायकों और संगठन के बीच का मामला है।
आनन्द राय, भोपाल। देश की 36 साल पुरानी बहुजन समाज पार्टी ने उत्तर प्रदेश के बाद राजस्थान, छत्तीसगढ़, हरियाणा, झारखंड, कर्नाटक विधानसभा में भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। मध्य प्रदेश के मतदाताओं ने भी उसे बार-बार मौका दिया है। अब राज्य विधानसभा की 27 सीटों पर उपचुनाव होने जा रहे हैं, जिसके चलते बसपा की सक्रियता बढ़ गई है। पार्टी मजबूत उम्मीदवारों की तलाश में है और इतने बड़े उपचुनाव में वह बड़ी जीत हासिल कर अपने को ताकतवर बनाने का मंसूबा पाले हुए है। पर, इस सच्चाई से इन्कार नहीं किया जा सकता है कि बसपा अपने ही विधायकों को संभाल न पाने की वजह से कमजोर होती गई है।
राजस्थान में बसपा के छह विधायक कांग्रेस में शामिल
राजस्थान में बसपा के छह विधायकों के कांग्रेस में शामिल होने का मामला हाई कोर्ट में चला गया है। सोमवार को वहां सुनवाई होनी है। अन्य राज्यों में भी समय-समय पर बसपा विधायकों के पाला बदलने और अपने नेतृत्व को ठेंगा दिखाने के अनेक उदाहरण मौजूद हैं।
मध्य प्रदेश में बसपा के दो विधायक कभी कांग्रेस के साथ, तो कभी भाजपा के पाले में
मध्य प्रदेश में भी बसपा के दो विधायक रामबाई और संजीव कुशवाहा ने राज्यसभा चुनाव में अपनी पार्टी की अनदेखी करके भाजपा उम्मीदवार को वोट दिए। ये दोनों विधायक अपनी मर्जी से कभी कांग्रेस के साथ हो जाते, तो कभी भाजपा के पाले में मंत्री बनने की कोशिश में लग जाते हैं। सपा विधायक राजेश शुक्ल ने भी भाजपा को वोट दिया तो सपा ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया, लेकिन बसपा विधायकों पर कोई कार्रवाई नहीं हो सकी। उपचुनाव की वजह से पार्टी इन पर कार्रवाई का कोई जोखिम मोल लेना नहीं चाहती। मुख्यमंत्री रहते हुए दिग्विजय सिंह भी एक बार बसपा में तोड़फोड़ कर चुके हैं।
दीपक विजयवर्गीय ने कहा- बसपा विधायक अपने विवेक से निर्णय लेते हैं
मध्य प्रदेश भाजपा के मुख्य प्रवक्ता दीपक विजयवर्गीय कहते हैं कि बसपा विधायक अपने विवेक से निर्णय लेते हैं और यह विधायकों और संगठन के बीच का मामला है। सकारात्मक मसलों पर सरकार को सपोर्ट करना अच्छी बात है।
टिकट बिकेगा तो यही होगा
बसपा के पक्ष में आम आदमी की राय इससे जुदा है। दवा कारोबार से जुड़े नवीन श्रीवास्तव कहते हैं कि जब मोल-भाव करके टिकट बंटेगा तो परिणाम यही होगा। विरोधी राजनीतिक दल बसपा के टिकट वितरण पर हमेशा गंभीर आरोप लगाते रहते हैं। इस बार भी उपचुनाव में यही संदेश है कि कांग्रेस और भाजपा के असंतुष्ट बसपा की शर्तो को पूरा करके टिकट हासिल कर लेंगे और जीतने के बाद वह मनमानी करेंगे।
बसपा ने 1990 से की जीत की शुरुआत, बढ़ता-घटता रहा ग्राफ
अविभाजित मध्य प्रदेश में बसपा ने 1990 से जीत की शुरआत की। तब पार्टी को दो सीटों पर जीत मिली थी और तीन वर्ष बाद 1993 में हुए चुनाव में बसपा का ग्राफ बढ़ गया। तब भी छत्तीसगढ़ इसी में शामिल था। बसपा को कुल 11 सीटों पर जीत मिली। 1998 में भी 11 सीटों पर बसपा ने जीत बरकरार रखी, लेकिन 2003 में पार्टी को झटका लगा। तब सिर्फ दो सीटों पर ही जीत मिल सकी। वर्ष 2008 में बसपा ने सात सीटों पर जीत हासिल की और 2013 में यह जीत सिमट पर चार सीटों तक आ गई। 2018 के विधानसभा चुनाव में और बड़ा झटका लगा जब मात्र दो सीटों पर ही पार्टी को जीत मिल सकी।
बसपा मध्य प्रदेश में निरंतर कमजोर होती गई
सही बात यह है कि बसपा राज्य में निरंतर कमजोर होती गई है। कुछ खास इलाकों में जनाधार होने के बावजूद पार्टी अपने लोगों को संभाल नहीं पाती और यही वजह है कि वह हर चुनाव में कमजोर होने लगी है। इसके सबसे बड़े उदाहरण फूल सिंह बरैया हैं जिन्होंने मध्य प्रदेश में बसपा को मजबूती दी और प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए पार्टी का ग्राफ बढ़ाया, लेकिन उन्हें भी पार्टी संभाल न सकी और वह बगावत कर अब कांग्रेस में हैं।
हमारी रिकार्ड जीत होगी
राज्यसभा चुनाव के लिए पार्टी ने कोई गाइड लाइन जारी नहीं की थी, इसलिए कार्रवाई जैसी कोई बात नहीं है। रही बात विधानसभा उपचुनाव की तो बसपा पूरी मजबूती से चुनाव मैदान में उतरेगी। ग्रासरट पर प्रभावी तरीके से काम चल रहा है। जनता के बीच बसपा की सबसे मजबूत पक़़ड है और इस बार हमारी रिकॉर्ड जीत होगी-इंजीनियर रमाकांत पिप्पल, मप्र बसपा अध्यक्ष।