Ayodhya Verdict: सोमनाथ मंदिर पुनर्निर्माण की तरह ट्रस्ट के जरिए होगा राम मंदिर का निर्माण
Ayodhya Verdict सुप्रीमकोर्ट ने राम मंदिर के निर्माण के लिए सरकार से तीन महीने के भीतर एक ट्रस्ट बनाने को कहा है।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। सुप्रीमकोर्ट ने राम मंदिर के निर्माण के लिए सरकार से तीन महीने के भीतर एक ट्रस्ट बनाने को कहा है। यह ट्रस्ट मंदिर निर्माण की रूपरेखा बनाएगा। माना जा रहा है कि वह कुछ वैसा ही होगा जैसा सोमनाथ मंदिर के निर्माण के लिए हुआ था। उस ट्रस्ट में तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल के साथ शिक्षाविद केएम मुंशी ने सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। अंतत: मई, 1951 में मंदिर बन कर तैयार हो गया। तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा समारोह में भाग लिया था।
महाराजा दिग्विजय सिंह जी को बनाया था ट्रस्ट का अध्यक्ष
श्री सोमनाथ ट्रस्ट का गठन गुजरात पब्लिक ट्रस्ट एक्ट, 1950 के तहत एक धार्मिक चैरिटेबल ट्रस्ट के तौर पर किया गया था। सरदार पटेल ने जामनगर के महाराजा दिग्विजय सिंह जी रणजीत सिंह जी को ट्रस्ट का अध्यक्ष बनाया। जबकि राजनीतिज्ञ, साहित्यकार व शिक्षाविद केएम मुंशी, केंद्रीय मंत्री एनवी गाडगिल और जयसुख लाल हाथी तथा उद्योगपति जीडी बिड़ला और सौराष्ट्र के क्षेत्रीय कमिश्नर डीवी रेगे को सदस्य बनाया गया। तबसे अब तक ट्रस्ट का कई बार पुनर्गठन किया जा चुका हैं। आम तौर पर गुजरात के मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव को इसके अध्यक्ष और सदस्य के तौर पर नामित किया जाता है।
मंदिर पुनर्निमाण की मुहिम आजादी के साथ शुरू
सोमनाथ मंदिर के पुनर्निमाण की मुहिम आजादी के साथ ही शुरू हो गई थी। आजादी से पहले सोमनाथ मंदिर जूनागढ़ रियासत में आता था। बंटवारे के बाद जूनागढ़ रियायत के भारत में विलय के साथ ही सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण पर विचार प्रारंभ हो गया। तमाम चर्चाओं, विरोध-समर्थन और लिखा-पढ़ी के बाद अंतत: सरदार पटेल ने हिंदू जन भावनाओं के मद्देनजर पुराने जीर्णशीर्ण मंदिर के स्थान पर नया मंदिर बनाने के पक्ष में निर्णय लिया और 23 जनवरी, 1949 को जामनगर में हुए एक सम्मेलन में इसके लिए दो दानदाताओं, केंद्र सरकार के दो मंत्रियों, दो प्रसिद्ध हस्तियों और सौराष्ट्र सरकार के दो प्रतिनिधियों की सदस्यता वाले एक ट्रस्ट के गठन का फैसला हुआ।
जनता के चंदे से मंदिर को पुनर्निमाण
तदोपरांत मंदिर के पुनर्निर्माण का प्रस्ताव लेकर पटेल, मुंशी तथा अन्य कांग्रेसी नेता गांधी जी के पास पहुंचे। गांधी जी ने खुशी-खुशी मंदिर निर्माण की सहमति दे दी। लेकिन सुझाव दिया कि धर्म निरपेक्ष होने के नाते सरकार को मंदिर में अपना धन लगाने के बजाय श्रद्धालु जनता से चंदा एकत्र करना चाहिए। अंतत: इसी आधार पर मंदिर का निर्माण हुआ। परंतु जब मई, 1951 में मंदिर बन कर तैयार हो गया तो उसे देखने के लिए न सरदार पटेल दुनिया में थे और न ही महात्मा गांधी।
ट्रस्ट पर राजनेताओं का दबदबा
शुरुआती सालों में ट्रस्ट में कांग्रेसी नेताओं का दबदबा रहा। परंतु धीरे-धीरे इसमें बदलाव हुआ और अब भाजपा नेताओं का वर्चस्व है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब वे ट्रस्ट के सदस्य बने थे। अब वे प्रधानमंत्री के तौर पर भी इसके सदस्य हैं। उनसे पहले मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री रहते इसके ट्रस्टी रहे थे। हालांकि भले ही ट्रस्ट पर राजनेताओं का दबदबा रहा है। लेकिन इस पर कभी भी राजनीतिक ढंग से काम करने का आरोप नहीं लगा।
ट्रस्ट ही करेगा मंदिर का निर्माण और प्रबंधन
अयोध्या में बहुप्रतीक्षित राम मंदिर का निर्माण केन्द्र सरकार द्वारा गठित न्यास (ट्रस्ट) करेगा। न्यास ही मंदिर प्रबंधन और वहां का अन्य कामकाज देखेगा। ट्रस्ट में कौन कौन शामिल होगा यह भी केन्द्र सरकार ही तय करेगी हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इतना साफ कर दिया है ट्रस्ट में निर्मोही अखाड़े को भी प्रतिनिधित्व दिया जाएगा। देश में ऐसे बहुत से बड़े मंदिर हैं जिनका प्रबंधन और कामकाज ट्रस्ट या श्राइन बोर्ड देखते हैं। श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड, श्री बाबा अमरनाथ श्राइन बोर्ड की ही तर्ज पर अब एक ट्रस्ट का गठन होगा जो अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण कराएगा और उसका प्रबंधन करेगा।