सुप्रीम कोर्ट 26 फरवरी को करेगा अयोध्या जमीन विवाद की सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट की पांच-सदस्यीय संविधान पीठ के सदस्य जस्टिस एसए बोबडे के छुट्टी से लौट आने की वजह से अयोध्या मामले में सुनवाई 26 फरवरी को होगी।
नई दिल्ली, प्रेट्र । सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या के राम जन्मभूमि-विवादित ढांचा जमीन विवाद मामले की सुनवाई 26 फरवरी को करने का फैसला किया है। इस मामले की सुनवाई पांच सदस्यीय संविधान पीठ करेगी। पीठ में प्रधान न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई के अलावा जस्टिस एसए बोब्दे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एसए नजीर शामिल हैं।
सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री द्वारा जारी ताजा नोटिस में कहा गया है कि अयोध्या भूमि विवाद से जुड़ी सभी याचिकाओं पर 26 फरवरी को सुनवाई होगी। मुख्य मामलों के अलावा संविधान पीठ इस मुद्दे से जुड़े मामलों में दायर अलग-अलग याचिकाओं पर भी सुनवाई करेगी। इस मामले की सुनवाई 27 जनवरी को होनी थी, लेकिन जस्टिस बोब्दे की अनुपस्थिति की वजह से सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई 29 जनवरी के लिए स्थगित कर दी थी।
29 जनवरी को केंद्र सरकार ने एक याचिका दाखिल कर सुप्रीम कोर्ट से अपने 2003 के आदेश में संशोधन करने और विवादित भूमि के आसपास की 67 एकड़ गैर-विवादित अधिग्रहीत जमीन उसके वास्तविक स्वामियों को लौटाने की अनुमति मांगी थी। याचिका के मुताबिक, 2.77 एकड़ के विवादित परिसर के भीतर ही 0.313 एकड़ का वह भूखंड स्थित है जिस पर विवादित ढांचा स्थित था और जिसे छह दिसंबर, 1992 को 'कार सेवकों' ने ढहा दिया था। 1993 में एक कानून के जरिये सरकार ने 67.703 एकड़ जमीन को अधिग्रहीत कर लिया था जिसमें 2.77 एकड़ का भूखंड भी शामिल है।
राम जन्मभूमि न्यास 40 एकड़ अधिग्रहीत गैर-विवादित जमीन का स्वामी है।एक हफ्ते बाद एक और याचिका दाखिल करके 1993 के उस केंद्रीय कानून को चुनौती दी गई जिसके जरिये 67.703 एकड़ जमीन को अधिग्रहीत किया गया था। याचिका में धार्मिक जमीन को अधिग्रहीत करने के संसद के अधिकार को चुनौती दी गई है। यह याचिका लखनऊ के दो वकीलों समेत सात व्यक्तियों ने दायर की है।
मालूम हो कि इलाहाबाद हाई कोर्ट के 2010 के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 14 अपीलें दायर की गई हैं। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2.77 एकड़ की विवादित जमीन को तीनों पक्षों सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला के बीच बराबर-बराबर बांटने का आदेश दिया था।बता दें कि पांच सदस्यीय संविधान पीठ को 25 जनवरी को पुनगर्ठित किया गया था क्योंकि मूल पीठ के सदस्य जस्टिस यूयू ललित ने खुद को मामले की सुनवाई से अलग कर लिया था।
जब नई पीठ गठित हुई तो पुनगर्ठित पीठ से जस्टिस एनवी रमन्ना को पीठ से अलग कर दिया गया। इसके बाद जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एसए नजीर अयोध्या भूमि विवाद की सुनवाई से जुड़ी पीठ में वापस आ गए। दोनों न्यायाधीश तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ में भी शामिल थे।
उनकी पीठ ने 27 सितंबर, 2018 को 1994 के उस फैसले को पुनर्विचार के लिए पांच सदस्यीय संविधान पीठ को भेजने से इन्कार कर दिया था जिसमें कहा गया था कि मस्जिद इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है। 10 जनवरी को जस्टिस यूयू ललित ने खुद को सुनवाई से इसलिए अलग कर लिया था क्योंकि 1997 में वह एक वकील के रूप में संबंधित मामले में उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के लिए पेश हो चुके थे।