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Ayodhya Case: सुप्रीम कोर्ट में हिन्दू पक्ष की दलील, एएसआइ रिपोर्ट को बदनाम करना दुर्भाग्यपूर्ण

एएसआइ ने रिपोर्ट के साथ सारे रजिस्टर 25 वीडियो कैसेट और कोर्ट में जमा किये थे जिसमें खुदाई का पूरा ब्योरा था और हाईकोर्ट ने बारीकी से उसे देखा है।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Tue, 01 Oct 2019 10:41 PM (IST)Updated: Tue, 01 Oct 2019 10:41 PM (IST)
Ayodhya Case: सुप्रीम कोर्ट में हिन्दू पक्ष की दलील, एएसआइ रिपोर्ट को बदनाम करना दुर्भाग्यपूर्ण
Ayodhya Case: सुप्रीम कोर्ट में हिन्दू पक्ष की दलील, एएसआइ रिपोर्ट को बदनाम करना दुर्भाग्यपूर्ण

माला दीक्षित, नई दिल्ली। अयोध्या राम जन्मभूमि पर मालिकाना हक का दावा कर रहे भगवान रामलला के वकील सीएस वैद्यनाथन ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि मुस्लिम पक्ष का विश्व विख्यात संस्था एएसआइ (भारत पुरातत्व सर्वेक्षण) को बदनाम करना दुर्भाग्यपूर्ण है। मुस्लिम पक्ष ने एएसआइ और उसकी रिपोर्ट पर सवाल उठाए हैं जबकि एएसआइ ने हाईकोर्ट के आदेश पर कोर्ट निरीक्षक की निगरानी में विवादित स्थल की खुदाई कर रिपोर्ट दी है। एएसआइ की रिपोर्ट वैज्ञानिक साक्ष्य है।

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एएसआइ रिपोर्ट पर मुस्लिम पक्ष की दलीलों का जवाब

रामलला के वकील सीएस वैद्यनाथन ने ये दलीलें एएसआइ रिपोर्ट पर मुस्लिम पक्ष की ओर से उठाई गई आपत्तियों का जवाब देते हुए दीं। वैद्यनाथन ने कहा कि एएसआइ रिपोर्ट में कहा गया है कि विवादित स्थल के नीचे विशाल संरचना थी जो कि उत्तर भारत के मंदिर से मेल खाती है। एएसआइ रिपोर्ट रामलला के दावे का समर्थन करती है जिनकी अपील में कहा गया है कि बाबर ने जन्मस्थान पर मंदिर तोड़ कर मस्जिद बनाई थी।

एएसआइ पर आरोप लगाना दुर्भाग्यपूर्ण

उन्होंने कहा कि एएसआइ दुनिया मे जानीमानी संस्था है वह कंबोडिया आदि देशों में अपनी विशेषज्ञता के लिए जानी जाती है। ऐसी संस्था पर आरोप लगाना बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। एएसआइ ने कोर्ट की निगरानी मे और दोनों पक्षों के प्रतिनिधियों की मौजूदगी मे खुदाई की ऐसे में वह किसी भी तरह का पक्षपात और गलती नहीं कर सकती।

एएसआइ की रिपोर्ट में खुदाई का पूरा ब्योरा

एएसआइ ने रिपोर्ट के साथ सारे रजिस्टर, 25 वीडियो कैसेट और कोर्ट में जमा किये थे जिसमें खुदाई का पूरा ब्योरा था और हाईकोर्ट ने बारीकी से उसे देखा है। एएसआइ की बुराई करने से सभ्यता के इतिहास पर संदेह पैदा होगा। मुस्लिम पक्ष एएसआइ की तुलना हस्तलेख विशेषज्ञ से करके उसके साक्ष्य पर संदेह उठा रहा है जो कि ठीक नहीं है।

तो क्या बाबर ने ईदगाह तोड़कर मस्जिद बनाई थी

वैद्यनाथन ने कहा कि मुस्लिम पक्ष ने पहले कभी नहीं कहा कि विवादित स्थल के नीचे ईदगाह थी। मुस्लिम पक्ष शुरू से यही कहता आया है कि बाबर ने खाली जमीन पर मस्जिद बनाई थी। जब एएसआइ ने खुदाई की और वहां नीचे विशाल संरचना व दीवारें और खंबो के आधार पाए जाने की रिपोर्ट दी उसके बाद मुस्लिम पक्ष ने अपना रुख बदल दिया और कहा कि वहां पाई गई दीवार ईदगाह की थी और विवादित ढांचे के नीचे ईदगाह थी। जो कि 11वीं या 12वीं शताब्दी में सुल्तान काल में बनाई गई थी।

वैद्यनाथन ने कहा कि इस बारे में न तो इनके मुकदमें में जिक्र था और न ही इनके किसी गवाह ने इस बारे मे कुछ कहा। मुस्लिम ने कभी भी 1528 से पहले जमीन पर दावा नहीं किया। 1528 मे बाबर ने वहां मस्जिद बनवाई थी। वैद्यनाथन ने कहा कि तो क्या बाबर ने ईदगाह तोड़कर मस्जिद बनवाई थी। उन्होनें कहा कि विदेशी यात्रियों का वर्णन देखा जाए तो अयोध्या मे रामकोट के इस क्षेत्र में बहुत बसावट थी जबकि ईदगाह बस्ती से दूर बनती है।

वैद्यनाथन ने कहा कि मुस्लिम पक्ष ने बार-बार कोर्ट में 1934, 1949 और 1992 की घटनाओं का जिक्र किया है। उन्होंने बहस के दौरान ऐसी बातें की जिससे सौहार्द बिगड़ सकता है जबकि हिन्दू पक्ष की ओर से कभी ऐसी बाते नहीं हुईं। इस दलील का राजीव धवन ने विरोध करते हुए कहा कि उन्होंने कभी भी सौहार्द बिगाड़ने वाली दलील नहीं दी उन्होंने इन घटनाओं का जिक्र इन्हें गैरकानूनी बताते हुए दिया था।

दोनों पक्षों के बीच हुई गर्मागर्मी, कोर्ट हुआ नाराज

एएसआइ रिपोर्ट पर बहस के दौरान दोनों पक्षों के बीच कई बार गर्मागर्मी हुई। जब वैद्यनाथन ने कोर्ट को बताया कि एएसआई रिपोर्ट में सिर्फ एक दीवार मिलने की बात नहीं है जिसे मुस्लिम पक्ष ईदगाह बता रहा है बल्कि चारो ओर दीवार होने की बात कही गई है जो कि वहां हाल या बड़ा कमरा होने की बात साबित करती है। तभी मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन और मिनाक्षी अरोड़ा ने खड़े होकर वैद्यनाथन की दलील का विरोध किया।

उन्होंने कहा कि खुदाई में चारो ओर दीवारें नहीं मिली हैं जैसे कि वैद्यनाथन बता रहे हैं। कोर्ट को एएसआइ के नक्शे को दोनों पक्षों ने समझाने की कोशिश की इस बीच दोनों के वकील तेज आवाज मे एक दूसरे के दावे का विरोध करने लगे।

अंत में मुख्य न्यायाधीश ने नाराजगी जताते हुए कहा कि वह शुरू से एक पक्ष की बहस के दौरान दूसरे पक्ष के दखल देने से मना कर रहे हैं, लेकिन किसी को यह बात समझ क्यों नहीं आती। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि इस तरह सुनवाई नहीं चल सकती। कोर्ट की नाराजगी देखते हुए दोनों पक्षों के वकील चुप हो गए और राजीव धवन ने कोर्ट से माफी मांगी।

वैद्यनाथन ने फिर बहस शुरू की और कोर्ट को बताया कि वह जिन दीवारों की बात कर रहे हैं वे एएसआइ की रिपोर्ट में कही गई हैं वे अपनी ओर से कोई अनुमान नहीं लगा रहे। राजीव धवन इससे पहले भी कई बार उठ कर हिन्दू पक्ष की दलीलों पर आपत्ति जता चुके थे। बल्कि के. परासरन ने उनके रवैये पर ऐतराज जताते हुए कहा था कि यह ठीक नहीं है कि वह हर बात पर खड़े होकर उन्हें टोक रहे हैं।

क्या जन्मस्थान का ज्योतिष से कोई संबंध है

सुनवाई के दौरान जस्टिस बोबडे ने रामलला की ओर से बहस कर रहे वरिष्ठ वकील के. परासरन से कहा कि वैसे उन्हें नहीं मालूम, लेकिन ऐसे ही जानना चाहते हैं कि क्या जन्मस्थान का ज्योतिष से कोई संबंध है। परासरन ने इस बारे मे अभी कोई जवाब नहीं दिया था, लेकिन तभी राजीव धवन खड़े हो गए और उन्होंने कोर्ट से कहा कि कैसी ज्योतिष। एक ज्योतिष सूर्य आधारित होती है और एक चंद्रमा आधारित।

उन्होंने कहा कि यहां हम ज्योतिष पर बात नहीं कर रहे। अगर ज्योतिष पर बात होगी तो उसके मुताबिक तो राम के जन्म का स्थान और समय बताया गया होता जो कि नहीं है। धवन ने अपने संबंध में कुछ हल्की फुल्की टिप्पणियां भी कीं। लेकिन बाद मे परासरन ने कहा कि वाल्मिीकि रामायण में राम की जन्म कुंडली दी गई है। जिसमें जन्म के साथ ही उनका विवाह आदि भी बताया गया है। हाईकोर्ट में सुनवाई को दौरान मुस्लिम पक्ष की ओर से जिरह में राम जन्म के संबंध में लेबर रूम तक की चर्चा किये जाने को भी हिन्दू पक्ष ने दुर्भाग्यपूर्ण बताया।

जन्मस्थान न्यायिक व्यक्ति माना जाएगा

परासरन ने कहा कि जन्मस्थान न्यायिक व्यक्ति माना जाएगा। वहां लोगों की आस्था है। लोग मानते हैं कि भगवान राम वहां प्रकट हुए थे इसलिए स्थान पवित्र है। स्थान स्वयं में देवता हो सकता है उसके लिए किसी आकार प्रकार या मूर्ति का होना जरूरी नहीं।


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