Chhattisgarh Rajya Sabha Election News: कांग्रेस कोटे में अटल की भतीजी राज्यसभा की दावेदार
छत्तीसगढ़ में राज्यसभा की दो सीटों के लिए होगा चुनाव। भाजपा के हाथ से निकलेगी एक सीट।
रायपुर, जेएनएन। छत्तीसगढ़ में राज्यसभा के लिए कांग्रेस से टिकट के दावेदारों में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की भतीजी करुणा शुक्ला का नाम भी शामिल है। हालांकि पार्टी का एक बड़ा वर्ग उन्हें टिकट दिए जाने के खिलाफ भी है। प्रदेश कोटे की राज्यसभा की दो सीटों के लिए चुनाव होना है। इसकी अधिसूचना मंगलवार को जारी हो गई है। इनमें से एक सीट से अभी भाजपा के रणविजय सिंह जूदेव और दूसरी से कांग्रेस के ही वरिष्ठ नेता मोतीलाल वोरा सदस्य हैं।
विधानसभा में संख्या बल के आधार पर अब दोनों सीट कांग्रेस के खाते में चली जाएगी। इसी वजह से कांग्रेस के दावेदारों ने रायपुर से दिल्ली तक की दौड़ लगानी शुरू कर दी है। कांग्रेस सूत्रों के अनुसार इस बार वोरा को टिकट मिलना मुश्किल दिख रहा है। ऐसे में करुणा शुक्ला के साथ प्रदेश संगठन के महामंत्री गिरीश देवांगन का नाम दावेदारों में सबसे आगे माना जा रहा है।
प्रदेश संगठन के कोटे से देवांगन के अलावा महामंत्री और संचार विभाग के अध्यक्ष शैलेश नितिन त्रिवेदी और तीन वरिष्ठ विधायकों के नाम की भी चर्चा है। इनमें एक सामान्य, एक ओबीसी और एक आदिवासी वर्ग से हैं। जातिगत समीकरण के आधार पर एक दर्जन नेता दावेदारी ठोंक रहे हैं। दावेदार अपने- अपने स्तर पर प्रदेश संगठन, प्रभारी पीएल पुनिया और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से लेकर केंद्रीय संगठन के सामने लॉबिंग कर रहे हैं।
छह वर्ष पहले पार्टी में आई थीं करुणा
करुणा शुक्ला करीब छह वर्ष पहले 2014 में भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुई थीं। इसके बाद पार्टी ने उन्हें पहले बिलासपुर लोकसभा सीट और फिर पिछले विधानसभा चुनाव में तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के खिलाफ राजनांदगांव सीट से मैदान में उतारा था। लेकिन वे दोनों चुनाव हार गई। इसी वजह से पार्टी के कई वरिष्ठ नेता भी उन्हें राज्यसभा भेजने के खिलाफ है। वहीं कांग्रेस का एक धड़ा चाहता है कि राज्यसभा में पूर्व प्रधानमंत्री अटल विहारी वाजपेयी के परिवार की करणा को भेजकर भाजपा को थोड़ा असहज स्थिति में डाला जाए।
लंबी पारी खेल चुके वोरा
राज्यसभा सदस्य मोतीलाल वोरा करीब 92 वर्ष के हो चुके हैं। लंबे समय तक वे राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष रहे हैं। अविभाजित मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री से लेकर उत्तर प्रदेश के राज्यपाल तक की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं। 1988 में पहली बार राज्यसभा गए थे। छत्तीसगढ़ बनने के बाद से वे लगातार राज्यसभा में राज्य का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।
संगठन ने हाईकमान को सौंपी जिम्मेदारी
इधर, प्रदेश संगठन ने नाम तय करने की जिम्मेदारी पार्टी हाईकमान को सौंप दी है। प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम का कहना है कि राज्यसभा किसे भेजा जाना है, इसका अधिकार हाईकमान के पास है। हाईकमान जिसका भी नाम तय करेगा हम उसके साथ रहेंगे।