Article 370: शाह ने तेवर और साफगोई से कुशल राजनेता की बनाई छवि, धारदार जवाब से विपक्ष कायल
धारा 370 खत्म करने के संकल्प पर चर्चा के दौरान लौहपुरुष वल्लभ भाई पटेल के नाम का जिक्र सदन में बार-बार आया जिन्होंने भारत के एकीकरण का बड़ा जिम्मा निभाया था।
आशुतोष झा, नई दिल्ली। कुशल संगठनकर्ता और राजनीति के चाणक्य के रूप में कई अवसरों पर खुद को साबित कर चुके गृहमंत्री अमित शाह ने पिछले दो दिनों में एक सधे हुए राजनेता की छवि दुरुस्त कर ली है। धारा 370 खत्म करने के संकल्प पर चर्चा के दौरान लौहपुरुष वल्लभ भाई पटेल के नाम का जिक्र सदन में बार-बार आया जिन्होंने भारत के एकीकरण का बड़ा जिम्मा निभाया था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में शाह ने उनके ही एक अधूरे काम को अमलीजामा पहनाकर जाहिर तौर पर एक विशेष स्थान बना लिया है। यह स्पष्ट हो गया है कि भाजपा को ऐतिहासिक विस्तार देने वाले शाह केवल संगठन ही नहीं बल्कि प्रशासन और जनता के बीच भी अलग छवि बनाने में सफल हुए हैं।
यूं तो बातों में स्पष्टता शाह की बड़ी खूबी रही है लेकिन जम्मू-कश्मीर और धारा 370 जैसे संवेदनशील मुद्दे पर उन्होंने जिस तरह राज्यसभा और फिर लोकसभा में बड़ी साफगोई के साथ तर्कपूर्ण ढंग से फ्रंट से नेतृत्व किया और विपक्ष के हर सवाल को तार तार किया उसने भाजपा के इतर भी कई नेताओं को उनका प्रशंसक बना दिया है।
पिछले दो दिनों में जिस तरह विपक्ष के कई नेता और दल वोटिंग से बचते हुए दिखे वह इसका उदाहरण है। हालांकि उनके तेवर को लेकर कई बार विपक्षी दलों से सवाल भी उठे लेकिन यह सबने स्वीकार किया शाह ने यह छवि छोड़ी है कि वह जो कुछ बोलते हैं उसी पर विश्वास भी करते हैं। यही छवि उन्हें दूसरों से अलग खेमे में खड़ी करती है और प्रखर राजनेता बनाती है।
नेतृत्व का गुण शाह में स्वभावत: है। भाजपा के कई बड़े नेता अब सदन से बाहर हैं और ऐसे में शाह ने एक बार भी इस कमी को नहीं महसूस होने दिया। बल्कि और धारदार व आक्रामक तरीके से पार्टी का रुख भी स्पष्ट किया और सरकार की धमक भी। मंगलवार को कभी फारुख अब्दुल्ला की सदन में गैर-मौजूदगी को लेकर तो कभी श्यामा प्रसाद मुखर्जी को लेकर, कभी पटेल और नेहरू को लेकर तो कभी धारा 370 के उपयोग को लेकर विपक्ष की ओर से कई सवाल उठे।
शाह ने बार-बार यह सुनिश्चित किया कि तत्काल ही उसका जवाब भी दिया जाए और अगर सदन में विपक्ष की ओर से कोई तथ्यहीन आरोप लगाया गया तो तत्काल उसका खंडन भी हो। दरअसल उनकी मौजूदगी ने पूरे सत्ताधारी दल में एक उत्साह का संचार कर दिया था और जिस तरह वह तत्काल विपक्ष के आरोपों और सवालों का तथ्यों के साथ खंडन कर रहे थे उससे विपक्ष भी कई बार विचलित दिखा था।
धारा 370 संवेदनशील मुद्दा था और अधिकतर के लिए अबूझ भी, लेकिन शाह ने तर्कपूर्ण तरीके से यह साबित कर दिया कि यह विशेष प्रावधान जम्मू-कश्मीर और उसकी जनता की भलाई के लिए नहीं था बल्कि विकास में अवरोध बन रहा था।
मजे की बात यह है कि विपक्ष से कोई भी नेता उनके तर्को का उत्तर देने में समर्थ नहीं रहा। एक ऐसे मसले पर जिसपर 70 वर्षो से एक चादर पड़ी थी उसे प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में शाह ने साफ कर दिया।
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