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Article 370: कानून की कसौटी पर सौ फीसद दुरुस्त, संविधान सम्मत है मोदी सरकार का कदम

सरकार ने अनुच्छेद 370 में बदलाव की जो प्रक्रिया अपनायी है वह संविधान सम्मत है। संविधानविदों का मानना है कि सरकार की कार्यवाही में कोई कानूनी या संवैधानिक खामी नहीं है।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Mon, 05 Aug 2019 10:02 PM (IST)Updated: Mon, 05 Aug 2019 10:02 PM (IST)
Article 370: कानून की कसौटी पर सौ फीसद दुरुस्त, संविधान सम्मत है मोदी सरकार का कदम
Article 370: कानून की कसौटी पर सौ फीसद दुरुस्त, संविधान सम्मत है मोदी सरकार का कदम

माला दीक्षित, नई दिल्ली। जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म कर देश भर के नागरिकों को जम्मू कश्मीर में समान अधिकार देने का सरकार का कदम कानून की कसौटी पर सौ फीसद दुरुस्त है। संविधानविदों का मानना है कि सरकार की कार्यवाही में कोई कानूनी या संवैधानिक खामी नहीं है। सरकार ने अनुच्छेद 370 में बदलाव की जो प्रक्रिया अपनायी है वह संविधान सम्मत है।

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जम्मू कश्मीर में भारत के सभी नागरिकों को समान अधिकार देने के लिए सरकार ने जो कदम उठाया है उसे कानूनी तौर पर परखना जरूरी हो जाता है क्योंकि बहुत से लोग सरकार के कदम को कोर्ट में चुनौती देने के तैयारी में हो सकते हैं। ऐसे में यह समझना होगा कि सरकार का कदम कितना और कैसे कानून की कसौटी पर सही साबित होता है।

संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप कहते हैं कि वैसे तो किसी भी आदेश या कार्यवाही को कोई भी अदालत में चुनौती दे सकता है, लेकिन उनकी राय में सरकार की कार्यवाही सौ फीसद ठीक है। संवैधानिक रूप से उसमें कोई खामी नहीं है और ना ही प्रक्रिया में किसी कानूनी अथवा संवैधानिक प्रावधान का उल्लंघन हुआ है।

कश्यप अनुच्छेद 370 को खत्म करने की संवैधानिक प्रक्रिया बताते हुए कहते हैं कि राष्ट्रपति जम्मू कश्मीर की संविधानसभा की सहमति से इसे समाप्त या इसमें बदलाव कर सकते हैं। चूंकि जम्मू कश्मीर में अब संविधानसभा नहीं है इसलिए उसकी उत्तराधिकारी विधानसभा को माना जाएगा, लेकिन आजकल राज्य में विधान सभा भी नहीं है और वहां राष्ट्रपति शासन लागू है। ऐसे में राष्ट्रपति के पास ही शक्तियां हैं और वह उसके तहत आदेश जारी कर सकते हैं।

उनका यह भी कहना है कि जम्मू-कश्मीर से संबंधित अनुच्छेद 370 को विशेष दर्जा देने वाला प्रावधान कहना गलत है। यह अनुच्छेद अस्थाई प्रावधान है। विशेष दर्जा और अस्थाई प्रावधान में अंतर होता है। राज्य के विशेष दर्जे का प्रावधान अनुच्छेद 371 ए में नागालैंड के बारे में है।

कश्यप यहां तक कहते हैं कि इसके लिए संसद से संकल्पपत्र भी पास कराने की जरूरत नहीं थी। अगर संसद से संकल्प पत्र नहीं भी पास होता तो भी राष्ट्रपति का आदेश पूरी तरह संवैधानिक और कानूनी होता। पहले भी राष्ट्रपति के आदेश से ही जम्मू कश्मीर के बारे में अनुच्छेद 35ए आदि में बदलाव किया गया है। हालांकि संसद से संकल्प पत्र पास होने से उसे और भी ज्यादा कानूनी पुख्तगी मिल गई है।

जाने माने वकील और पूर्व अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी भी इस बात से सहमत हैं कि जम्मू कश्मीर के स्थाई निवासियों को विशेष दर्जा देने वाले प्रावधान खत्म करने के लिए संसद में जाने की भी जरूरत नहीं थी। राष्ट्रपति 1954 के आदेश की तरह ही आदेश जारी कर इसे खत्म कर सकते थे। रोहतगी तो यहां तक कहते हैं कि कोर्ट में इसे चुनौती देना विफल होगा।

पूर्व सालिसिटर जनरल और वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे भी प्रक्रिया को सही और कानून सम्मत बताते हैं। वह कहते हैं कि अनुच्छेद 370 में राष्ट्रपति को जम्मू कश्मीर के संबंध में आदेश जारी करने का अधिकार प्राप्त है और उसी अधिकार के तहत उन्होंने ऐसा किया है। पहले भी 1954 में ऐसे ही प्रेसीडेन्शियल आर्डर जारी हुआ था और अभी भी वही हुआ है।

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