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2019 का रण जीतने के लिए भाजपा ने अपना ली है नई नीति, बिहार में सीटों के बंटवारे में छुपे हैं संकेत

भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि दोनों पार्टियां बिहार के लोकसभा चुनाव में समान सीटों पर लड़ेंगी।

By Vikas JangraEdited By: Published: Fri, 26 Oct 2018 06:01 PM (IST)Updated: Sat, 27 Oct 2018 12:16 AM (IST)
2019 का रण जीतने के लिए भाजपा ने अपना ली है नई नीति, बिहार में सीटों के बंटवारे में छुपे हैं संकेत
2019 का रण जीतने के लिए भाजपा ने अपना ली है नई नीति, बिहार में सीटों के बंटवारे में छुपे हैं संकेत

नई दिल्ली [आशुतोष झा]। बिहार में दोबारा राजग सरकार बनने के साथ ही यह अटकल भी शुरू हो गई थी कि आखिर लोकसभा चुनाव में सीट बंटवारे का फार्मूला कैसे निकलेगा। खासकर भाजपा के राजनीतिक तेवर और जदयू के राजनीतिक कद को देखते हुए सीट बंटवारे को दोधारी तलवार की तरह माना जा रहा था। शुक्रवार को इस पर मोटी सहमति और घोषणा के साथ जहां राजग की राह आसान हो गई।

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वहीं यह भी स्पष्ट हो गया है कि पिछली बार से भी बड़ी जीत का दावा कर रही भाजपा अतिविश्वास में गोते लगाना नहीं चाहती। बल्कि जमीनी हकीकत को परखकर फिलहाल भाजपा नहीं बल्कि राजग को मंत्र बनाना चाहती है। शायद यही कारण है कि सीटें कम होने की संभावना के बावजूद लोजपा जैसे दूसरे सहयोगी दलों का रुख सकारात्मक है। शायद उन्हें भरोसा है कि भरपाई पूरी होगी। अगर लोकसभा नहीं तो राज्यसभा में।

घोषणा का वक्त भी अहम है। दरअसल, 31 अक्टूबर को अहमदाबाद में सरदार पटेल की स्टेच्यू आफ यूनिटी का अनावरण है। माना जा रहा है कि अनावरण के बाद भाजपा उसी स्थल पर राजग के सभी मुख्यमंत्रियों की उपस्थिति चाहती है जिसे राजग की एकता के रूप में भी दिखाया जा सके।

सूत्रों की मानें तो नीतीश इससे पहले ही सीट बंटवारे को लेकर घोषणा चाहते थे। भाजपा ने भी बड़ा दिल दिखाते हुए गठबंधन की खातिर अपनी जीती हुई सीटें भी छोड़ने का मन बना लिया है। जदयू को बराबरी का हिस्सा देने के लिए किसी भी स्थिति में कम से कम चार से पांच सीटें होंगी। पिछले कुछ वर्षो में भाजपा का जो तेवर रहा है उसमें यह फैसला कईयों को चौका सकता है।

दरअसल, यह फैसला ही कई दूसरे सहयोगी दलों को बाहें चढ़ाने के लिए प्रेरित कर सकता है। खासकर महाराष्ट्र में जहां शिवसेना खुले तौर भी अकेले लड़ने की घोषणा कर चुकी है लेकिन भाजपा की तरफ से अब तक किसी बड़े नेता ने ऐसा नहीं कहा है। खैर, फिलहाल भाजपा सामूहिक प्रदर्शन को आगे रखना चाहती है।

वहीं नीतीश कुमार के जदयू के लिए भी यह बड़ा फैसला है। सच्चाई तो यह है कि राजद से रिश्ता तोड़कर भाजपा का हाथ थामने के फैसले के बाद नीतीश के फैसले पर जितने भी सवाल उठे, उसका जवाब वह शुक्रवार को ही दे पाए। खुद नीतीश के लिए और राजग में जदयू के लिए यह जीत है कि पिछली बार दो सीटों पर सिमटने वाली पार्टी को भाजपा ने बराबरी का हिस्सा देने का फैसला किया है। राजग में यह विश्वास बहाली के रूप में भी देखा जा सकता है।

पिछली बार लोजपा ने भाजपा का हाथ थामकर चौंकाया था। इस बार गठबंधन की मजबूती के लिए जहां सीटों की संख्या के साथ थोड़ा समझौता करने का दिल दिखाया है। वहीं यह संदेश भी दे दिया है कि पार्टी राजनीतिक हितों के साथ समझौता नहीं करेगी। माना जा रहा है कि लोजपा को लोकसभा सीटों से होने वाले नुकसान की भरपाई राज्यसभा में कर दी जाएगी। संभवत: लोजपा अध्यक्ष राम विलास पासवान ही राज्यसभा में नजर आएं। इस लिहाज से वह लोकसभा चुनाव में खुद की बजाय दूसरी सीटों पर फोकस कर सकेंगे। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि नए फार्मूले में राजग के हर सहयोगी दल ने सामूहिक प्रदर्शन और जीत को लक्ष्य बनाया है।


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