कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई में अमेरिका और भारत साथ-साथ, जेनेरिक दवाओं के लिए खुला बाजार
चिकित्सा क्षेत्र में दोनों देशों के बीच हुई समझौते से भारतीय जेनरिक दवाओं के लिए अमेरिकी बाजार खोलने का रास्ता साफ हो गया है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच शिखर वार्ता में कोरोना वायरस भी अहम मुद्दा रहा। पूरी दुनिया के लिए नये खतरे के लिए रूप में सामने आए कोरोना वायरस से निपटने के लिए दोनों नेताओं ने साझा प्रयास करने पर सहमति जताई। विश्व स्वास्थ्य संगठन चेतावनी दे चुका है कि कोरोना वायरस एक वैश्विक महामारी का रूप धारण कर सकता है। इसके साथ ही दोनों देशों के बीच भारतीय जेनरिक दवाओं व मानसिक स्वास्थ्य के लिए भारतीय पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों व दवाओं के लिए अमेरिकी बाजार खोलने पर समझौता हुआ है।
कोरोना वायरस पर कई देशों के साथ मिलकर करना होगा काम
बातचीत के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस बात पर संतोष जताया कि भारत और अमेरिका अभी तक इसे रोकने में सफल रहा है। लेकिन चीन के बाहर इरान, इराक, इटली, दक्षिण कोरिया जैसे कई देशों में इसके तेजी से फैलने को देखते इससे निपटने के लिए साथ मिलकर काम करना होगा। ध्यान देने की बात है कि संक्रामक बीमारियों से निपटने और उसके लिए टीका तैयार करने के लिए भारत अमेरिका के बीच पहले से सहयोग चल रहा है। गांधी-रीगन विज्ञान व तकनीकि समझौते के तहत दोनों देश कई संक्रामक बीमारियों के टीके के इजाद के लिए संयुक्त अनुसंधान और शोध कर रहे हैं। अब इसमें कोरोना को भी शामिल किया जा सकता है।
भारतीय जेनरिक दवाओं के लिए रास्ता साफ
वहीं चिकित्सा क्षेत्र में दोनों देशों के बीच हुई समझौते से भारतीय जेनरिक दवाओं के लिए अमेरिकी बाजार खोलने का रास्ता साफ हो गया है। दरअसल महंगी चिकित्सा अमेरिकियों के लिए एक बड़ा मुद्दा रहा है और ट्रंप अगले राष्ट्रपति चुनाव में सस्ती दवाएं उपलब्ध कराने को अपनी एक बड़ी उपलब्धि के तौर पर पेश कर सकते हैं। वहीं दुनिया की कुल जेनरिक दवाओं के 20 फीसदी का निर्माण करने वाली भारतीय दवा कंपनियों के लिए बड़ा बाजार मिल जाएगा।
भारतीय ग्राहकों के लिए होगा फायदेमंद
समझौते के तहत अमेरिका जेनरिक दवा बनाने वाली भारतीय कंपनियों को अपने यहां के सख्त नियम-कायदे और मानकों के पालन में मदद करेगा। इससे भारतीय कंपनियों को उच्च क्वालिटी की जेनरिक दवाएं बनाने में महारत हासिल होगी। यह भारतीय ग्राहकों के लिए भी फायदेमंद साबित होगा कि क्योंकि अमेरिका को दवा आपूर्ति करने वाली कंपनियां भारतीय ग्राहकों के लिए भी उच्च क्वालिटी की दवाएं बनाएंगी। चिकित्सा क्षेत्र में दूसरे समझाते के तहत अमेरिका ने आंशिक रूप से भारतीय चिकित्सा पद्धति और दवाओं को मान्यता दे दिया है। इसके तहत मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ाने वाली भारतीय चिकित्सा पद्धतियां और दवाएं अब अमेरिका में उपलब्ध हो सकेंगी।
भारतीय चिकित्सा पद्धति के लिए बड़ी उपलब्धि
अभी तक भारतीय पारंपरिक दवाओं और चिकित्सा पद्धतियों को अमेरिका में मान्यता नहीं थी और उन्हें फूड सप्लीमेंट के रूप में अमेरिका में बेचा जाता था। जाहिर है आयुर्वेद समेत भारतीय चिकित्सा पद्धतियों के लिए यह बड़ी उपलब्धि साबित हो सकती है। वहीं दूसरी ओर भारत ने मानसिक रोगों के उपचार के लिए कमजोर चिकित्सा प्रणाली को दूर करने के लिए अमेरिकी अनुभवों का लाभ उठाएगा। भारत में मानसिक बीमारी एक बड़ी समस्या के तौर पर सामने आ रही है। जबकि अमेरिकी संस्थानों ने इस संदर्भ में काफी व्यापक अध्ययन किया है। यह अमेरिका में हेल्थ केयर का एक अभिन्न हिस्सा बन गया है।
चिकित्सा क्षेत्र में पहले से ही चल रहे कई कार्यक्रम
दरअसल भारत और अमेरिका के बीच पहले से ही चिकित्सा क्षेत्र में कई सहयोग कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं। भारत में अमेरिका के सहयोग से ग्लोबल डिजीज डिटेक्शन सेंटर चलाया जा रहा है। टीकाकरण के लिए भी भारत में एक राष्ट्रीय कार्यक्रम अमेरिका के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसके तहत संक्रामक रोगों के लिए टीका इजाद करने में संयुक्त तौर पर रिसर्च कर रहे हैं। आम जनता को किफायती कीमत पर रोगों की जांच सुविधा उपलब्ध कराने को लेकर भी दोनो देशों के बीच सहयोग चल रहा है।