मोदी सरकार की गंगा सफाई के लिए महत्वाकांक्षी योजना धरातल पर नहीं उतर पायीं
उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल में गंगा की मुख्यधारा के किनारे जितनी डीजीसी बनायी जानी थीं, वे नहीं बनीं।
हरिकिशन शर्मा, नई दिल्ली। सरकार ने गंगा सफाई के लिए महत्वाकांक्षी 'नमामि गंगे' योजना के तहत भारी भरकम धनराशि आवंटित करने के साथ ही संस्थागत ढांचा बनाने की कोशिश की है लेकिन राज्यों की सुस्ती के चलते ये प्रयास फाइलों में ही सिमट कर रह गए हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण जिला गंगा समितियां (डीजीसी) हैं। सरकार ने दो साल पहले पूरे गंगा बेसिन में गंगा और उसकी सहायक नदियों को प्रदूषण मुक्त रखने के लिए ऐसी समितियां बनाने का आदेश जारी किया था लेकिन तमाम जिलों में अब तक ये समितियां नहीं बन पायी हैं।
उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल - जहां से होकर गंगा की मुख्य धारा प्रवाहित होती है- वहां महज 51 जिला गंगा समितियों का गठन किया गया है। इन राज्यों में भी गंगा की मुख्यधारा के किनारे जितनी डीजीसी बनायी जानी थीं, वे नहीं बनीं। मसलन, बिहार में अब भी 11 जिला समितियों का गठन किया जाना शेष है।
गंगा महासभा के राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी जितेन्द्रानंद सरस्वती का कहना है कि जमीनी स्तर पर कहीं भी जिला गंगा समितियां नजर नहीं आ रहीं। अव्वल तो पूरे गंगा बेसिन में इनका गठन ही नहीं हुआ और यदि कहीं समितियां बनी भी हैं तो वहां जमीनी स्तर पर उनकी गतिविधियां नहीं दिख रहीं। योजनाबद्ध तरीके से गंगा स्वच्छता के मुद्दे पर समाज से लिये जाने वाले सहयोग की प्रधानमंत्री की योजना पर अधिकारियों ने पानी फेर दिया है।
उल्लेखनीय है कि 7 अक्टूबर 2016 को नेशननल मिशन फॉर क्लीन गंगा यानी एनएमसीजी को प्राधिकरण का रूप देने के लिए जारी की गई अधिसूचना के पैराग्राफ 53 के अनुसार केंद्र सरकार गंगा नदी में पर्यावरणीय प्रदूषण को रोकने, नियंत्रित करने और समाप्त करने के लिए एक निश्चित समय के भीतर अधिसूचना जारी कर हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड, हरियाणा, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, दिल्ली और ऐसे अन्य राज्यों में जहां गंगा नदी की प्रमुख सहायक नदियां हैं, प्रत्येक जिले में जिला गंगा संरक्षण समितियों का गठन करेगी। केंद्र सरकार को यह काम राज्य गंगा समितियों के साथ परामर्श के आधार पर करना था।
जिलाधिकारी की अध्यक्षता में बनने वाली गंगा समिति में जिले के संबंधित विभागों के अधिकारी, नगर निकायों और ग्राम पंचायतों से जनता के प्रतिनिधि, पर्यावरणविद और स्थानीय औद्योगिक संगठनों के प्रतिनिधि बतौर सदस्य शामिल करने का प्रावधान था। वहीं जिला वन अधिकारी को इसका संयोजक बनाना गया है। सरकार ने प्रत्येक समिति को पांच लाख रुपये का अनुदान देने का निर्णय भी किया है ताकि उससे वे प्रशासनिक कार्यो को कर सकें।
एनएमसीजी के सूत्र मानते हैं कि कुछ जिलों में डीजीसी ने सक्रियता दिखायी है। उदाहरण के लिए उत्तराखंड में जुलाई में वृक्षारोपण में जिला गंगा समितियों ने सहयोग किया। हालांकि उत्तर प्रदेश, बिहार और बंगाल में जिला गंगा समितियों का प्रदर्शन कुछ खास नहीं रहा है।
सूत्रों का कहना है कि एनएमसीजी ने गंगा को प्रदूषण मुक्त रखने के लिए जिला गंगा समिति को गतिविधियों में शामिल करने के लिए समय-समय पर राज्यों के मुख्य सचिवों और जिलाधिकारियों को पत्र भी लिखा है लेकिन शुरुआती परिणाम उत्साहवर्द्धक नहीं रहे हैं। वैसे एनएमसीजी ने अब तक इन समितियों के क्रियाकलापों की समीक्षा करना भी मुनासिब नहीं समझा है।