Move to Jagran APP

अध्यादेश पर सहयोगी दलों के दबाव को नजरअंदाज करना कांग्रेस के लिए आसान नहीं, क्या है विपक्षी पार्टियों का हाल?

अध्यादेश के खिलाफ विपक्षी खेमे के क्षेत्रीय दलों का समर्थन जुटाना आम आदमी पार्टी के लिए कोई मुश्किल काम नहीं था मगर कांग्रेस के कड़े तेवरों की आशंका ने उसके इस अभियान की सियासी अहमियत बढ़ा दी है।

By Jagran NewsEdited By: Anurag GuptaPublished: Thu, 01 Jun 2023 12:15 AM (IST)Updated: Thu, 01 Jun 2023 12:15 AM (IST)
अध्यादेश पर सहयोगी दलों के दबाव को नजरअंदाज करना कांग्रेस के लिए आसान नहीं, क्या है विपक्षी पार्टियों का हाल?
कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे (फोटो: पीटीआई)

संजय मिश्र, नई दिल्ली। कांग्रेस ने अपने दो प्रदेश इकाइयों दिल्ली और पंजाब के आम आदमी पार्टी से सख्त एतराज को देखते हुए दिल्ली की प्रशासनिक सेवाओं पर नियंत्रण संबंधी केंद्र के अध्यादेश का विरोध करने का अब तक कोई फैसला नहीं लिया है, लेकिन इस मुद्दे पर कांग्रेस के करीबी सहयोगी दल जिस तरह आप प्रमुख दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को अध्यादेश का विरोध करने का खुले तौर पर भरोसा दे रहे हैं वह इस मुद्दे पर कांग्रेस की चुनौतियों में इजाफा कर रहा है।

loksabha election banner

शरद पवार, सीताराम येचुरी, उद्धव से लेकर स्टालिन और नीतीश-लालू से लेकर हेमंत सोरेन जैसे करीबी सहयोगी दलों के नेताओं का इस मुद्दे पर साथ आने के दबाव को नजरअंदाज करना कांग्रेस नेतृत्व के लिए आसान नजर नहीं आ रहा है।

विपक्षी एकजुटता की पहल में वामदलों की अहम भूमिका

अध्यादेश के खिलाफ विपक्षी खेमे के क्षेत्रीय दलों का समर्थन जुटाना आप के लिए कोई मुश्किल काम नहीं था, मगर कांग्रेस के कड़े तेवरों की आशंका ने उसके इस अभियान की सियासी अहमियत बढ़ा दी है। इस कड़ी में माकपा महासचिव सीताराम येचुरी से केजरीवाल की मुलाकात इसलिए महत्वपूर्ण है कि तमाम संवेदनशील सवालों और राजनीतिक मुद्दे पर वे कांग्रेस के साथ सक्रिय रूप से खड़े रहे हैं। विपक्षी एकजुटता की पहल में भी वामदलों और येचुरी की अहम भूमिका है।

इन नेताओं से मुलाकात करेंगे केजरीवाल

माकपा के अध्यादेश का विरोध करने पर तो कोई संदेह ही नहीं मगर आप के लिए यह राहतकारी है कि येचुरी से पहले राकांपा प्रमुख शरद पवार, शिवसेना यूबीटी के प्रमुख उद्धव ठाकरे भी इसका भरोसा दे चुके हैं। केजरीवाल अब तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन और झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन से भी मिलने वाले हैं और दोनों कांग्रेस के पुराने सहयोगी हैं।

संघीय ढांचे पर प्रहार को लेकर स्टालिन पहले से ही केंद्र के खिलाफ मुखर हैं और अध्यादेश का विरोध करने पर उनके हामी भरने में संदेह नहीं। पिछले कई वर्षों से लगातार भाजपा के निशाने पर रहे हेमंत सोरेन भी आप को निराश करेंगे, इसकी गुंजाइश नहीं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राजद नेता उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के अध्यादेश के खिलाफ सुर के संकेत पहले ही मिल चुके हैं।

क्या कांग्रेस पर दबाव बनाएंगी विपक्षी पार्टियां?

शरद पवार भी इस मुद्दे पर कांग्रेस को समझा कर राजी करने का प्रयास करने की बात कह चुके हैं। संकेतों से साफ है कि येचुरी भी ऐसी कोशिश करेंगे। क्षेत्रीय दलों के दिग्गजों के रुख से साफ है कि राष्ट्रीय राजनीति की व्यावहारिक आवश्यकता और भाजपा के खिलाफ विपक्षी एकजुटता की अपरिहार्य जरूरत को देखते हुए कांग्रेस पर अध्यादेश का विरोध करने का दबाव बनाया जाएगा।

जबकि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के साथ दो दिन पहले हुई बैठक में दिल्ली और पंजाब के नेताओं ने अध्यादेश के मुद्दे पर आप को समर्थन देने का तगड़ा विरोध किया था। हालांकि, दोनों सूबों के नेताओं ने इस पर अंतिम निर्णय हाईकमान पर छोड़ दिया था।

कांग्रेस नेतृत्व ने अध्यादेश के समर्थन पर बेशक अभी कोई फैसला नहीं किया है, मगर पार्टी में अंदरखाने इसको लेकर हलचल जरूर है कि करीबी सहयोगी दलों के नेताओं के रुख से निपटना चुनौतीपूर्ण है।

पार्टी के एक वरिष्ठ नेता के अनुसार,

राज्यों के अधिकार क्षेत्र पर केंद्र के अतिक्रमण का मसला संविधान के बुनियादी ढांचे से जुड़ा हुआ है। आम आदमी पार्टी के साथ राजनीतिक दूरी और विरोध कांग्रेस के लिए अहम है, मगर संविधान के बुनियादी ढांचे से छेड़छाड़ पर सैद्धांतिक और वैचारिक रूप से पार्टी कोई समझौता नहीं कर सकती।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.