यहां जानें अयोध्या में राम जन्मभूमि मामले में कब-कब, क्या-क्या हुआ?
राम जन्मभूमि विवाद मामले में अब 29 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी। चलिए जानते हैं कि अयोध्या में कब-कब, क्या-क्या हुआ...
लखनऊ, जेएनएन। राम जन्मभूमि विवाद मामले में अब 29 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी। 5 जजों की संवैधानिक पीठ में शामिल जस्टिस यू ललित ने खुद को इस सुनवाई से अलग कर लिया है। ऐसे में अब एक बार फिर संवैधानिक पीठ का गठन करना होगा। विवादित ढांचे के गिराए जाने के बाद और उससे पहले से ही राम मंदिर का मुद्दा कई चरणों से गुजरा है। इसमें कई बार इस मुद्दे को कोर्ट से बाहर सुलझाए जाने की तरफ भी कदम बढ़े, लेकिन यह कोशिशें परवान नहीं चढ़ पायीं।
पिछले साल 21 मार्च 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में एक बेहद अहम टिप्पणी में कहा था कि राम मंदिर का मुद्दा कोर्ट के बाहर बातचीत से हल किया जाना चाहिए, और वही बेहतर रहेगा। तत्कालीन चीफ जस्टिस जगदीश सिंह खेहर ने कहा था कि दोनों पक्षों को मिल-बैठकर इस मुद्दे को कोर्ट के बाहर हल करना चाहिए। कोर्ट के मुताबिक दोनों पक्ष इसके लिए वार्ताकार तय कर सकते हैं, जो विचार-विमर्श करें। चलिए जानते हैं कि अयोध्या में कब क्या हुआ-
1528 : बाबर ने अयोध्या में एक मस्जिद का निर्माण कराया जिसे बाबरी मस्जिद के नाम से जाना जाता है। हिंदू धर्म के अनुयायियों का मानना है कि जहां पर बाबर ने मस्जिद बनवाई थी वहां पर भगवान राम का जन्म हुआ था।
1853 : हिंदू धर्म के मानने वालों का आरोप है कि भगवान राम के मंदिर को तोड़कर उसी स्थान पर मस्जिद का निर्माण किया गया। कहा जाता है कि मुगलों के बाद अंग्रेजों के शासनकाल में इस मुद्दे को लेकर दोनों समुदायो में 1853 में हिंसा हुई थी, जिसमें कई लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था।
1859 : दंगों का असर हुआ ब्रिटिश सरकार ने इस मामले का संज्ञान लिया और 1859 में अपनी ओर से तारों की एक बाड़ खड़ी करके विवादित भूमि के आंतरिक और बाहरी परिसर में मुस्लिमों और हिदुओं को अलग-अलग प्रार्थनाओं की इजाजत दी।
1885 : ब्रिटिश शासन के दौरान सन 1885 में यह मामला पहली बार अदालत पहुंचा। महंत रघुबर दास ने फैजाबाद अदालत में बाबरी मस्जिद से लगे एक राम मंदिर के निर्माण की इजाजत के लिए अपील दायर की। अपील की सुनवाई चलती रही और टलती रही।
23 दिसंबर 1949 : आजादी के बाद, कहा जाता है कि मस्जिद के केंद्रीय स्थल पर भगवान राम की मूर्ति रखी थी। इस दिन से हिंदू नियमित रूप से पूजा करने लगे।
16 जनवरी 1950 : गोपाल सिंह विशारद नाम के व्यक्ति ने फैजाबाद अदालत में एक अपील दायर कर रामलला की पूजा-अर्चना की विशेष इजाजत मांगी।
5 दिसंबर 1950 : महंत परमहंस रामचंद्र दास ने हिंदू प्रार्थनाएं जारी रखने और बाबरी मस्जिद में राममूर्ति को रखने के लिए एक अलग मुकदमा दायर किया।
17 दिसंबर 1959: नागा साधुओं के निर्मोही अखाड़ा ने विवादित स्थल हस्तांतरित करने के लिए मुकदमा दायर किया।
18 दिसंबर 1961 : इस दिन उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड ने बाबरी मस्जिद के मालिकाना हक के लिए मुकदमा दायर किया।
1984 : विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) ने बाबरी मस्जिद के ताले खोलने और राम जन्मस्थान को स्वतंत्र कराने व एक विशाल मंदिर के निर्माण के लिए अभियान शुरू किया।
1 फरवरी 1986 : फैजाबाद जिला न्यायाधीश ने विवादित स्थल पर हिदुओं को पूजा की इजाजत दी। ताले दोबारा खोले गए। उस समय देश में राजीव गांधी की सरकार थी। नाराज मुस्लिमों ने विरोध में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन किया।
जून 1989 : बीजेपी ने वीएचपी को औपचारिक समर्थन देने की घोषणा की और मंदिर आंदोलन के लिए सहयोग की बात कही।
1 जुलाई 1989 : भगवान रामलला विराजमान नाम से पांचवा मुकदमा दाखिल किया गया।
9 नवंबर 1989 : तत्कालीन केंद्र की कांग्रेस सरकार के प्रमुख प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने बाबरी मस्जिद के नजदीक शिलान्यास की इजाजत दी।
25 सितंबर 1990 : तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी ने गुजरात के सोमनाथ से उत्तर प्रदेश के अयोध्या तक के लिए रथ यात्रा निकाली।
नवंबर 1990 : आडवाणी को बिहार के समस्तीपुर में गिरफ्तार कर लिया गया। लालू प्रसाद यादव उस समय बिहार के मुख्यमंत्री थे। घटना से नाराज बीजेपी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह की सरकार से समर्थन वापस ले लिया।
अक्टूबर 1991 : तत्कालीन उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह सरकार ने बाबरी मस्जिद के आस-पास की 2.77 एकड़ भूमि को अपने अधिकार में ले लिया।
6 दिसंबर 1992 : हजारों की संख्या में कार सेवकों ने अयोध्या पहुंचकर विवादित ढांचे को ढहा दिया। जल्दबाजी में एक अस्थायी राम मंदिर बनाया गया। दिसंबर 1992 को मस्जिद की तोड़-फोड़ की जिम्मेदार स्थितियों की जांच के लिए लिब्राहान आयोग का गठन हुआ।
अप्रैल 2002 : अयोध्या के विवादित स्थल पर मालिकाना हक को लेकर उच्च न्यायालय के तीन जजों की पीठ ने सुनवाई शुरू की।
मार्च-अगस्त 2003 : इलाहबाद हाईकोर्ट के निर्देशों पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने अयोध्या में खुदाई की। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का दावा था कि मस्जिद के नीचे मंदिर के अवशेष होने के प्रमाण मिले हैं।
जुलाई 2009 : लिब्रहान आयोग ने गठन के 17 साल बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अपनी रिपोर्ट सौंपी।
28 सितंबर 2010 : सर्वोच्च न्यायालय ने इलाहाबाद हाई कोर्ट को विवादित मामले में फैसला देने से रोकने वाली याचिका खारिज करते हुए फैसले का मार्ग प्रशस्त किया।
30 सितंबर 2010 : इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने विवादित जमीन का एक हिस्सा राम मंदिर, दूसरा सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़े में जमीन बांटने का फैसला सुनाया।
9 मई 2011 : सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी।
21 मार्च 2017 : सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह मामला धर्म और आस्था से जुड़ा है, इसलिए दोनों समुदायों को मिलकर इसे सुलझाना चाहिए। जरूरत पड़ने पर कोर्ट इस मामले में दखल देगी।