लोकपाल अध्यक्ष जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष सभी सदस्यों को दिलाएंगे 27 मार्च को शपथ
लोकपाल को प्रधानमंत्री मंत्री सांसद और केंद्रीय अधिकारियों व कर्मचारियों के खिलाफ आने वाली भ्रष्टाचार की शिकायतों की जांच करने का अधिकार है।
माला दीक्षित, नई दिल्ली। भ्रष्टाचार पर निगाह रखने वाली देश की सर्वोच्च संस्था लोकपाल के आठ सदस्य 27 मार्च [ बुधवार ] को शपथ लेंगे। लोकपाल अध्यक्ष जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष को शनिवार को राष्ट्रपति ने शपथ दिलाई थी। लोकपाल में अध्यक्ष के अलावा चार न्यायिक और चार गैर-न्यायिक सदस्य हैं।
राष्ट्रपति ने गत 19 मार्च को प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली चयन समिति की सिफारिश स्वीकार करते हुए लोकपाल अध्यक्ष पद पर जस्टिस घोष व आठ सदस्यों की नियुक्ति की थी। आठ सदस्यों में चार न्यायिक सदस्य हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश दिलीप बी. भोसले, जस्टिस प्रदीप कुमार मोहन्ती, जस्टिस अभिलाषा कुमारी और छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस अजय कुमार त्रिपाठी हैं। जबकि गैर-न्यायिक सदस्य महाराष्ट्र के मुख्य सचिव दिनेश कुमार जैन, सशस्त्र सीमा बल की पूर्व महानिदेशक अर्चना रामसुन्दरम, महेन्द्र सिंह और डाक्टर इंद्रजीत प्रसाद गौतम हैं।
लोकपाल कानून की धारा 7 कहती है कि लोकपाल अध्यक्ष के वेतन भत्ते और सेवा शर्ते वहीं होंगी जो कि भारत के मुख्य न्यायाधीश की होती हैं और लोकपाल सदस्यों के वेतन भत्ते व सेवा शर्ते वहीं होंगी जो सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश की होती हैं। इसके मुताबिक राष्ट्रपति ने लोकपाल अध्यक्ष को पद की शपथ दिलाई थी जैसे कि राष्ट्रपति भारत के मुख्य न्यायाधीश को शपथ दिलाते हैं।
नियम के मुताबिक भारत के मुख्य न्यायाधीश सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश को शपथ दिलाते हैं माना जा रहा है कि इसी तरह लोकपाल अध्यक्ष जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष लोकपाल के आठ सदस्यों, चार न्यायिक व चार गैर-न्यायिक सदस्यों को शपथ दिलाएंगे। सूत्रों के मुताबिक लोकपाल के सभी आठ सदस्य बुधवार को शपथ लेंगे। सदस्यों के पद ग्रहण करने के बाद ही लोकपाल संस्था विधिवत अपना कामकाज शुरु करेगी।
कार्यकाल
लोकपाल अध्यक्ष व सदस्य का कार्यकाल पांच वर्ष या 70 वर्ष की आयु पूरी होने तक का है।
सेवानिवृति के बाद पांच साल तक चुनाव लड़ने पर रोक
लोकपाल अध्यक्ष और सदस्यों का कार्यकाल समाप्त होने के बाद उनकी दोबारा अध्यक्ष या सदस्य पद पर नियुक्ति नहीं हो सकती। न ही राष्ट्रपति उन्हें किसी राज्य का प्रशासक या डिप्लोमेट आदि नियुक्त कर सकता है। न ही वे भारत सरकार या राज्य सरकार के अधीन कोई पद ग्रहण कर सकते हैं। इसके अलावा लोकपाल के अध्यक्ष और सदस्य पद छोड़ने के बाद पांच वर्ष तक राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति या सांसद अथवा विधायक आदि का चुनाव नहीं लड़ सकते।
इनकी कर सकते हैं जांच
लोकपाल को प्रधानमंत्री, मंत्री, सांसद और ग्रुप ए, बी, सी और डी ग्रेड के अधिकारियों व केंद्रीय कर्मचारियों के खिलाफ आने वाली भ्रष्टाचार की शिकायतों की जांच करने का अधिकार है।
प्रधानमंत्री के खिलाफ जांच की शर्ते
कानून कहता है कि लोकपाल प्रधानमंत्री के खिलाफ अंतर्रराष्ट्रीय संबंधों, बाहरी और आंतरिक सुरक्षा से जुड़े मुद्दों, पब्लिक आर्डर, एटामिक एनर्जी और स्पेस से जुड़े मुद्दों पर जांच नहीं करेगा, जबतक कि लोकपाल की पूर्ण पीठ जिसमें लोकपाल अध्यक्ष और आठ सदस्य मिल कर विचार करने के बाद कम से कम दो तिहाई सदस्य ऐसी जांच को मंजूरी नहीं देते। कानून यह भी कहता है कि प्रधानमंत्री के खिलाफ जांच इन कैमरा (गोपनीय) होगी। जांच के बाद अगर लोकपाल को लगता है कि शिकायत खारिज होने लायक है तो उस जांच से संबंधित कोई रिकार्ड पब्लिश नहीं होगा और न ही किसी को उपलब्ध कराया जाएगा।
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