कांग्रेसी नेताओं से करीबी ही बनी थी अजीत जोगी के लिए राजनीति की सीढ़ी
अजीत जोगी अपनी प्रशासनिक सेवा के दौरान भी नेताओं के करीब ही रहे। इसका फायदा उन्हें राजनीति में एंट्री के दौरान हुआ।
नई दिल्ली। कांग्रेस के साथ अपने राजनीति सफर की शुरुआत करने वाले अजीत जोगी अब हमारे बीच नहीं हैं। पहले केंद्र और फिर राज्य की राजनीति में उनका योगदान और उनकी अहमियत को कभी कम करके नहीं आंका जा सकता है। कांग्रेस में रहते हुए आलाकमान तक की पहुंच रखने वाले अजीत जोगी के राजनीतिक सफर में वो वक्त भी आया जब उन्होंने कांग्रेस का दामन छोड़कर छत्तीसगढ़ में नई पार्टी बनाने की घोषणा की। हालांकि उनका राजनीतिक सफर शुरुआत से ही विवादों में रहा है।
1968 में यूपीएससी एग्जाम में पास होने के बाद वे पहले आईपीएस और फिर बाद में आईएएस बने थे। आईएएस अधिकारी के तौर पर उन्होंने कई जगहों पर बतौर कलेक्टर अपनी सेवाएं दीं। हालांकि अपने पूरे प्रशासनिक जीवन में वे कांग्रेसी नेताओं के बेहद करीबी बने रहे। इसका उन्हें बाद में फायदा भी हुआ। अजीत जोगी ने भोपाल से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी। इसके बाद कुछ दिनों कुछ दिनों तक रायपुर इंजीनियरिंग कॉलेज में लेक्चरर भी रहे थे।
अपने प्रशासनिक जीवन के दौरान उनकी नियुक्ति ज्यादातर उन्हीं जिलों में रही जो राजनीतिक क्षत्रपों के प्रभाव क्षेत्र माने जाते थे। वे शुक्ला बंधुओं के प्रभुत्व वाले रायपुर में कलेक्टर रहे। इसके अलावा जब सीधी में पोस्टिंग हुई तो वे कांग्रेस के बड़े नेता अर्जुन सिंह के करीबी बने रहे। ग्वालियर में तैनाती के दौरान उन्होंने कांग्रेस के दूसरे बड़े नेता माधवराव सिंधिया से नजदीकी बनाकर रखी। इंदौर में प्रकाश चंद सेठी के वे करीबी रहे।
जब वे रायपुर में कलेक्टर के तौर पर अपनी सेवाएं दे रहे थे तब वहां पर एक बार राजीव गांधी का दौरा हुआ था। यहां पर ही उनकी पहली बार राजीव गांधी से मुलाकात हुई थी। इसके बाद जब भी राजीव रायपुर आए अजीत जोगी ने खुद उनका स्वागत निजीतौर पर किया। कांग्रेस के बड़े नेताओं की करीबी और खुद राजीव गांधी तक पहुंच होने का फायदा उन्हें टिकट के दौरान हुआ और उनकी कांग्रेस में एंट्री तय हो सकी।
1998 में छत्तीसगढ़ के रायगढ़ से चुनाव लड़कर पहली बार वे लोकसभा में पहुंचे। लेकिन 1999 में वे शहडोल से चुनाव हार गए। कांग्रेस ने उन्हें दो बार राज्यसभा सभा भेजा। वे कांग्रेस के प्रवक्ता भी रहे। नवंबर 2000 में छत्तीसगढ़ राज्य के गठन के दौरान उनके राजनीतिक करियर में बड़ा बदलाव आया और उन्हें प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला। राजनीतिक तेवरों और विवादों के कारण वे सबसे चर्चित मुख्यमंत्री भी रहे। इसके बाद राज्य में जो चुनाव हुए उसमें भाजपा ने बाजी मारी और रमन सिंह सीएम बने।
इस दौरान उनपर भाजपा की सरकार गिराने के लिए विधायकों की खरीदने का आरोप लगा। इन्हीं आरोपों की वजह से 2005 में कांग्रेस ने उन्हें निलंबित कर दिया था। अंतागढ़ उपचुनाव के दौरान एक ऑडियो वायरल हुआ जिसके बाद उनके परिवार पर कांग्रेस प्रत्याशी की नाम वापसी में सौदेबाजी के आरोप लगे। इसके बाद कांग्रेस ने उनके बेटे अमित जोगी को पार्टी से निष्कासित कर दिया। इसके बाद अजीत जोगी पार्टी में खुद को अलग-थलग और उपेक्षित महसूस करने लगे थे।
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