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श्रीलंका की संसद में राजपक्षे सरकार के खिलाफ वोट, रानिल विक्रमसिंघे का कद बढ़ा

मंगलवार को श्रीलंका की सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेन के संसद को भंग करने के निर्णय को रद कर दिया था।

By Tilak RajEdited By: Published: Wed, 14 Nov 2018 11:06 AM (IST)Updated: Wed, 14 Nov 2018 01:19 PM (IST)
श्रीलंका की संसद में राजपक्षे सरकार के खिलाफ वोट, रानिल विक्रमसिंघे का कद बढ़ा

नई दिल्‍ली, पीटीआइ। राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेन और उनके नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे को देश की सुप्रीम कोर्ट के बाद संसद में भी बड़ा झटका लगा है। श्रीलंकाई संसद ने अपने ऐतिहासिक वोट में राजपक्षे सरकार के खिलाफ वोटिंग की गई है।

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राजपक्षे के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव को मंजूरी
श्रीलंका की राजनीति में पिछले कुछ दिनों में बेहद उठा-पटक देखने को मिली। श्रीलंकाई संसद में बुधवार को प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे की सरकार के खिलाफ मतदान किया। संसद के स्पीकर कारू जयसूर्या ने घोषणा की कि संसद ने प्रधानमंत्री राजपक्षे के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. जयसूर्या ने राजपक्षे समर्थकों के विरोध के बीच घोषणा करते हुए कहा कि मैं स्वीकार करता हूं कि सरकार को बहुमत नहीं है।

इससे पहले मंगलवार को श्रीलंका की सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति मैत्रीपाल सिरिसेन के संसद को भंग करने के निर्णय को रद कर दिया था। सिरिसेना ने रानिल विक्रमसिंघे को प्रधानमंत्री पद से बर्खास्त करके महिंदा राजपक्षे को पीएम नियुक्त कर दिया था। इसके बाद विक्रमसिंघे ने संसद में बहुमत साबित करने का दावा किया था। संसद के स्पीकर सदन में बहुमत साबित करने के लिए विक्रमसिंघे को मौका देने को भी राजी हो गए थे, जिसके बाद राष्ट्रपति सिरिसेन ने संसद को ही भंग कर दिया था।

इससे पहले मंगलवार को श्रीलंका की सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति मैत्रीपाल सिरिसेन के संसद को भंग करने के निर्णय को रद कर दिया था। सिरिसेन ने रानिल विक्रमसिंघे को प्रधानमंत्री पद से बर्खास्त करके महिंदा राजपक्षे को पीएम नियुक्त कर दिया था। इसके बाद विक्रमसिंघे ने संसद में बहुमत साबित करने का दावा किया था। संसद के स्पीकर सदन में बहुमत साबित करने के लिए विक्रमसिंघे को मौका देने को भी राजी हो गए थे, जिसके बाद राष्ट्रपति सिरिसेन ने संसद को ही भंग कर दिया था।

संसद को भंग करने के उनके फैसले को मंगलवार को पलटते हुए शीर्ष अदालत ने इस पर सात दिसंबर तक रोक भी लगा दी है। साथ ही पांच जनवरी को होने वाले मध्यावधि चुनाव की तैयारियों को भी रोकने को कहा है। कोर्ट ने अंतिम निर्णय देने से पहले अगले महीने राष्ट्रपति के फैसले के खिलाफ दायर सभी याचिकाओं पर विचार की बात भी कही है।

उधर, कोर्ट का आदेश आने के बाद स्पीकर ने बुधवार को संसद की बैठक बुलाई। प्रधान न्यायाधीश नलिन परेरा की अगुआई वाली तीन सदस्यीय वाली पीठ ने यह फैसला सुनाया है। पीठ ने निर्धारित अवधि से दो साल पहले संसद भंग करने के राष्ट्रपति के नौ नवंबर के फैसले के खिलाफ दायर 13 याचिकाओं और सिरिसेन का समर्थन करने वाली पांच याचिकाओं की सुनवाई के बाद यह फैसला सुनाया।

बता दें कि अपदस्थ प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे की यूनाइटेड नेशनल पार्टी और चुनाव आयोग के सदस्य रत्नजीवन हुले ने संसद भंग करने और पांच जनवरी को मध्यावधि चुनाव कराने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को चुनौती दी थी। वहीं विपक्षी पार्टियों के नेताओं ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति सिरिसेन के खिलाफ दायर सभी याचिकाओं पर 4,5,6 दिसंबर को सुनवाई करेगा। 26 अक्टूबर को प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे को पद से हटाकर पूर्व राजनीतिक दिग्गज महिंदा राजपक्षे को नियुक्त करने के बाद से श्रीलंका संवैधानिक संकट से घिरा है।


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