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Analysis: रूस की सत्ता पर पुतिन की मजबूत पकड़ भारत के लिए अच्छे संकेत

रूस भारत के सबसे महत्वपूर्ण सामरिक, सैन्य, आर्थिक और व्यापारिक साझेदारों में से एक है। भारत-रूस की मित्रता अलग-अलग दौर में भी कसौटी पर खरी उतरी है।

By Digpal SinghEdited By: Published: Fri, 30 Mar 2018 10:06 AM (IST)Updated: Fri, 30 Mar 2018 03:19 PM (IST)
Analysis: रूस की सत्ता पर पुतिन की मजबूत पकड़ भारत के लिए अच्छे संकेत
Analysis: रूस की सत्ता पर पुतिन की मजबूत पकड़ भारत के लिए अच्छे संकेत

अमरीश सरकानगो। व्लादिमीर पुतिन ने अपना वर्चस्व कायम रखते हुए विपक्षी दलों के धांधलियों के तमाम आरोप नकारते हुए रूस की सर्वोच्च सत्ता अगले छह सालों के लिए फिर हासिल कर ली है। पुतिन को कुल पड़े मतों के तकरीबन 76 प्रतिशत मत मिले। मुख्य विरोधी नेता एलेक्सी नेवेलनी को चुनाव से पहले ही बाहर किया जा चुका था। चुनाव में पुतिन के निकटतम प्रतिद्वंद्वी अरबपति कम्युनिस्ट नेता पॉवेल गरडीनिन को सिर्फ 12 प्रतिशत मत मिले।

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गोर्बाचोव के कमजोर नेतृत्व से टूटा सोवियत संघ
1999 से कभी रूसी महासंघ के प्रधानमंत्री तो कभी राष्ट्रपति रहे पुतिन जब अपना नया कार्यकाल पूरा करेंगे तो रूस में सत्ता के एकमात्र केंद्र के रूप में रहे उन्हें 24 साल हो चुके होंगे। रूसी राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन के इस्तीफे के बाद पुतिन उनकी जगह सत्ता में आए थे। पुतिन के सत्ता में आने से पहले रूस में निराशा का माहौल था। रूसी उस समय ये मानते थे कि मिखाइल गोर्बाचोव के कमजोर नेतृत्व के कारण सोवियत संघ टूटा, विश्व में रूस का दबदबा कम हुआ और रूस में आर्थिक संकट आया।

पुतिन ने जगाया रूसी स्वाभिमान
गोर्बाचोव के बाद बोरिस येल्तसिन के ढुलमुल रवैये से भी लोग खुश नहीं थे। फिर पुतिन ने आने के बाद रूसी अर्थव्यवस्था को सुधारना शुरू किया। उनके आने के बाद रूसी निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। अर्थव्यवस्था के सुधरने से रूस में बेरोजगारी कळ्छ कम हुई और लोगों के जीवन-स्तर में उल्लेखनीय सुधार आया। पुतिन ने लोगों में राष्ट्रवादी भावना और रूसी स्वाभिमान फिर से जागृत किया। उन्होंने लोगों को यह विश्वास दिलाया कि अगर वे होते तो शायद सोवियत संघ का विघटन नहीं होता और उनके होते रूस का कोई हिस्सा आगे कभी अलग नहीं होगा।

कड़े फैसलों के लिए जाने जाते हैं पुतिन


सात अक्टूबर, 1952 को जन्मे व्लादिमीर पुतिन राजनीति में आने से पहले रूसी खुफिया एजेंसी केजीबी में विदेशी खुफिया अधिकारी के पद पर थे। राजनीति में आने के बाद उन्होंने तेजी से शीर्ष तक का सफर तय किया। तब से अब तक रूस में सत्ता पर उनका दबदबा कायम है। अपने कार्यकालों के दौरान आतंकवाद, चेचन्या और नाटो के मुद्दों पर उनके कड़े रुख को पूरे रूस में अपार जनसमर्थन मिला है। क्रीमिया संकट के दौरान भी उन्होंने बेहद कड़े रुख का परिचय देते हुए आखिरकार उसको रूस में मिला ही लिया।

सबसे ज्यादा परमाणु हथियार रूस के पास
क्षेत्रफल के लिहाज से रूस दुनिया का सबसे बड़ा देश है। आज भी 8500 परमाणु हथियारों के साथ वह दुनिया की सबसे बड़ी परमाणु शक्ति है। रूस भले ही दुनिया की शीर्ष आर्थिक महाशक्तियों में से एक न हो, लेकिन वह दूसरी बड़ी सैन्य महाशक्ति और हथियारों का निर्यातक देश है। दुनिया के प्राकृतिक संसाधनों का सबसे बड़ा हिस्सा रूस में है। प्राकृतिक गैस और तेल के अपार ज्ञात भंडार रूस में हैं।

पुतिन का सत्ता में रहना भारत के लिए अच्छा
जहां तक बात भारत-रूस संबंधों की है तो उसमें रूस में यथास्थिति बने रहने से सुधार ही आएगा। रूस भारत के सबसे महत्वपूर्ण सामरिक, सैन्य, आर्थिक और व्यापारिक साझेदारों में से एक है। भारत-रूस की मित्रता अलग-अलग दौर में भी कसौटी पर खरी उतरी है। भारत चाहेगा कि रूस अब नए सिरे से चीन-पाकिस्तान धुरी पर दबाव बनाए। रूस से भारत के हथियार निर्यात में थोड़ी कमी होने के बाद भी दूसरे उत्पादों में व्यापार की बढ़ोतरी होने की उम्मीद है। भारत-रूस द्विपक्षीय व्यापार को 2025 तक 30 बिलियन डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है।

फिर नई ऊचाइयों पर पहुंचेंगे भारत-रूस संबंध
अंतरराष्ट्रीय मंचों पर रूस पिछले कुछ सालों में भारत के साथ वैसे खड़ा नहीं दिखा है, जैसे अतीत में था, पर आपसी वार्ता से संबंधों को फिर उच्चतम स्तर पर पहुंचाया जा सकता है। रूस की मुख्य चिंता भारत-अमेरिकी संबंधों में निरंतर बढ़ती प्रगाढ़ता और भारत-अमेरिकी व्यापार, जिसमें भारत का हथियार आयात भी शामिल है, का लगातार बढ़ना है। दूसरी तरफ भारत रूस की चीन-पाकिस्तान से लगातार बढ़ती नजदीकियों से परेशान है। उम्मीद की जानी चाहिए कि पुतिन के इस कार्यकाल में भारत-रूस संबंध फिर नई ऊचाइयों को प्राप्त करेगा।


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