कारगिल युद्ध के बाद दुनिया को था डर, कहीं नवाज का भी न हो पूर्व PM भुट्टो जैसा हाल
कारगिल युद्ध के बाद जहां परवेज मुशर्रफ को पाकिस्तान की सत्ता मिली वहीं नवाज शरीफ को इसके खामियाजे के तौर पर देश निकाला मिला।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। कारिगल में पाकिस्तान के द्वारा चलाए गए ऑपरेशन बद्र के जवाब में भारत ने ऑपरेशन विजय को सफलतापूर्वक अंजाम दिया था। ऑपरेशन विजय के अलावा भारतीय नौसेना को ऑपरेशन तलवार और भारतीय वायुसेना को ऑपरेशन सफेद सागर चलाने की अनुमति दी गई थी। अब कारगिल युद्ध को दो दशक पूरे हो चुके हैं। इस युद्ध के बाद पाकिस्तान में बदले राजनीतिक समीकरणों के बीच नवाज शरीफ के भविष्य को लेकर भी सवाल उठने लगे थे। आशंका यहां तक थी कि उनका हाल भी पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फीकार अली भुट्टो की तरह हो सकता है।
कारगिल युद्ध को लेकर बार-बार यह बात सामने आती रही है कि इस षड़यंत्र की जानकारी तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को नहीं थी। जब तक उन्हें इसकी जानकारी हुई तब तक वह इसमें फंस चुके थे। अपनी इज्जत को बचाने और जंग को रोकने के लिए उन्होंने अमेरिका से गुहार लगाई थी। इस युद्ध में फंसाई गई टांग को निकालने के मकसद से उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन से मुलाकात तक की थी। लेकिन वहां से उन्हें कह दिया गया था कि वह पहले अपनी सेना के जवानों को कारगिल से वापस बुलाएं अन्यथा भारत छोड़ने वाला नहीं है। बहरहाल, 26 जुलाई 1999 को भारत ने कारगिल युद्ध में जीत के साथ युद्ध बंदी की घोषणा कर दी थी।
इस जंग के बाद नवाज शरीफ को अपने राजनीतिक जीवन का सबसे बुरा वक्त देखना पड़ा था। कारगिल युद्ध के बाद नवाज शरीफ राजनीतिक तौर पर खुद को बचाने और दोबारा से खुद को स्थापित करने की कोशिश करते हुए नजर आए। इस युद्ध के बाद तेजी से बदलते राजनीतिक समीकरण में उनके हाथों से सत्ता निकल गई और जनरल परवेज सत्ता नवाज की सरकार को बर्खास्त कर उसपर काबिज हो गए। इस घटना के बाद मुशर्रफ की कोशिश थी कि नवाज को हमेशा के लिए जेल के अंदर डाल दिया जाए। वैश्विक मंच पर इस वक्त तक ये भी धारणा बनने लगी थी कि कहीं नवाज के साथ भी पूर्व राष्ट्रपति ल्फीकार अली भुट्टो जैसा हाल तो नहीं होगा।
आपको बता दें कि भुट्टो को 4 अप्रैल 1979 रावलपिंडी सेंट्रल जेल में फांसी दे दी गई थी। उनकी सरकार का भी कभी उनके अधीन आने वाले जनरल जिया उल हक ने तख्तापलट किया था और भुट्टो को जेल में डाल दिया था। उन पर अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदी के हत्या करवाने के आरोप में मामला चलाया गया। सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें फांसी की सजा सुनाई थी। इसके बाद भी वैश्विक मंच पर यह माना जाता रहा है कि यह सब कुछ जनरल जिया उल हक के दिशानिर्देशों के तहत ही किया गया था। उस वक्त अंतरराष्ट्रीय समुदाय से लगातार भुट्टो को फांसी की सजा न दिए जाने की अपील की गई थी, लेकिन हक ने इस अपील को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि वह सुप्रीम कोर्ट के आदेश में दखल नहीं दे सकते हैं। बीबीसी से एक खास इंटरव्यू में भी उन्होंने इसका जिक्र किया था। वैश्विक मंच से आ रहे दबाव की वजह से भुट्टो को तय समय से तीन घंटे पहले ही फांसी के फंदे पर लटका दिया गया था।
नवाज की गिरफ्तारी ने भी पूरे अंतरराष्ट्रीय जगत को भुट्टो मामले की याद दिला दी थी। लिहाजा नवाज को बचाने की भी कोशिश की जा रही थी। ऐसे मुश्किल हालातों में सऊदी अरब ने नवाज शरीफ का साथ दिया। वर्ष 2000 में मुशर्रफ द्वारा देश निकाला दिए जाने के बाद नवाज ने सऊदी अरब में बतौर शाही मेहमान पनाह ली थी। इसका सबसे बड़ा नुकसान हुआ कि उन्होंने अपनी राजनीतिक जमीन को खोना पड़ा। 2007 में जब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद नवाज स्वदेश वापस लौटे तो अपनी राजनीतिक जमीन को वापस पाने के लिए उन्हें नए सिरे से मेहनत करनी पड़ी। जून 2013 में नवाज सत्ता में वापस लौट सके। इसके बाद 2016 मे पानमा पेपर लीक में नाम आने के बाद 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने प्रधानमंत्री के पद के लिए अयोग करार दिया 28 जुलाई 2017 में नवाज शरीफ को प्रधानमंत्री के पद से हटना पड़ा था।
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