भारत वीजा देने के लिए तैयार, करमापा ने नहीं किया आवेदन
दलाई लामा के बाद सबसे प्रभावशाली तिब्बती धर्म गुरु उग्यान त्रिनले दोरजे के डोमिनिका राष्ट्रमंडल के नए पासपोर्ट पर वीजा देने के लिए भारत तैयार है।
नई दिल्ली, प्रेट्र। दलाई लामा के बाद सबसे प्रभावशाली तिब्बती धर्म गुरु उग्यान त्रिनले दोरजे के डोमिनिका राष्ट्रमंडल के नए पासपोर्ट पर वीजा देने के लिए भारत तैयार है। हालांकि, उन्होंने इसके लिए अभी आवेदन नहीं किया है। ऐसा माना जा रहा है कि दोरजे इस समय अमेरिका में हैं।
सरकारी सूत्रों ने भारत द्वारा वीजा नहीं दिए जाने के कारण करमापा के यहां न आ पाने की रिपोर्ट को गुरुवार को दृढ़ता से खारिज कर दिया। करमापा दोरजे तिब्बत से नाटकीय ढंग से पलायन के बाद वर्ष 2000 में भारत आए थे। उस समय वह 14 साल के थे।
सूत्रों ने बताया कि दोरजे ने वीजा के लिए भारत से संपर्क नहीं किया है। दूसरी तरफ, वह कह रहे हैं कि भारत आना चाहते हैं। भारत में तिब्बती शरणार्थी के रूप में रह रहे बौद्ध काग्यू समुदाय के धर्म गुरु करमापा ने इसी साल मार्च में कैरेबियाई द्वीप के डोमिनिका राष्ट्रमंडल का पासपोर्ट हासिल किया है।
उन्होंने तीन महीने के वीजा पर पिछले साल मई में भारत छोड़ा था। सूत्र बताते हैं कि करमापा ने अभी तक डोमिनिका के पासपोर्ट के बारे में भारत को नहीं बताया है। उन्होंने बताया कि करमापा ने जब भी किसी देश में जाना चाहा, अनुमति दी गई।
भारतीय पहचान पत्र हो जाएगा अमान्य
सूत्रों ने कहा कि पहचान प्रमाण पत्र से संबंधित कोई मुद्दा नहीं है। दस्तावेज जारी करने की शर्त में यह बहुत स्पष्ट था कि जब कोई विदेशी पासपोर्ट प्राप्त करता है तो वह अमान्य हो जाता है। उन्होंने कहा कि करमापा दोरजे को वीजा देने के बारे में अमेरिका में भारतीय वाणिज्य दूतावासों को स्पष्ट निर्देश दिए गए थे।
आधिकारिक तौर पर भारत दोरजे को 17वें करमापा लामा के रूप में मान्यता नहीं देता है। वर्तमान में भारत में लगभग 1.8 लाख तिब्बती शरणार्थी रह रहे हैं। यह पूछे जाने पर कि क्या भारत करमापा को बहु प्रवेश वीजा देने के लिए तैयार है, सूत्रों ने सीधा जवाब नहीं दिया।
तिब्बती बौद्ध धर्म में करमा कागयू संप्रदाय के प्रमुख व ब्लैक हेट के वारिस करमापा उगयेन त्रिनले दोरजे 26 जून 1985 को पूर्वी तिब्बत में पैदा हुए। उन्हें 16 वें करमापा के अवतार के रूप में दलाई लामा ने जून 1992 में मान्यता दी थी।
हालांकि तिब्बत के ही दूसरे धार्मिक नेता शमार रिनपोचे ने उन्हें करमापा का अवतार मानने से मना कर दिया था। तिब्बतियों का पुर्नवतार में विश्वास रहा है। शमार रिनपोचे ने चीन की ओर से समर्थित थाई त्रिनले दोरजे को ही करमापा का सोलहवां अवतार बताया था। जो अब अपनी अलग जिंदगी जी रहे हैं।
वर्तमान करमापा उगयेन त्रिनले दोरजे तिब्बत की एक मोनेस्टरी से 28 दिसंबर 1999 को भाग कर भारत आए थे। उन्हें धर्मशाला में पांच जनवरी 2000 को शरण मिली थी लेकिन तिब्बत से चीन की सेना से नजर चुराकर 1100 किलोमीटर की पैदल लंबी यात्रा के बाद उनका भारत पहुंचना आज भी कई सवाल खड़े करता है।
बताया जाता है कि ताई सीतू रिनपोचे ने करमापा के चीन से भागने में मदद की थी लेकिन भारत सरकार ने उनकी यह बात नहीं मानी। सिक्किम सरकार बार-बार केन्द्र सरकार से आग्रह कर चुकी है कि दोरजी को 17 वें करमापा के तौर पर रूमटेक मोनेस्टरी की गद्दी संभालने दी जाये। लेकिन इसपर भारत सरकार अभी भी कोई फैसला नहीं ले पाई है।