'मालदीव के मुद्दे पर भारत को चीन से डरने की जरूरत नहीं'
मालदीव में जारी संकट के बीच पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने भारत से सैन्य मदद की मांग की है।
नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क] । हिंद महासागर में अटॉलों वाला देश मालदीव राजनीतिक तौर पर संवेदनशील हो गया है। मालदीव की सुप्रीम कोर्ट के आदेश को मौजूदा राष्ट्रपति अब्दुल्ला यमीन ने मानने से न केवल इंकार कर दिया बल्कि अपने सौतेले भाई मौमून अब्दुल गयूम और सुप्रीम कोर्ट के दो जजों को गिरफ्तार कर लिया। इसके साथ ही राष्ट्रपति यमीन ने 15 दिन के लिए आपातकाल लगा दिया है। इन सबके बीच पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने भारत से सैन्य हस्तक्षेप की मांग की है। भारत का भी कहना है कि मौजूदा सरकार को सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान करना चाहिए, हालांकि सैन्य मदद को लेकर किसी तरह की प्रतिक्रिया नहीं आई है। लेकिन चीन को ये सब नागवार गुजर रहा है। चीन का कहना है कि भारत को दूसरे देश की संप्रभुता का सम्मान करना चाहिए। मालदीव के ताजा हालात में क्या भारत को दखल देना चाहिए। क्या चीन जो कुछ कह रहा है वो जाएज है इसे समझने से पहले 1988 की ऑपरेशन कैक्ट्स का जिक्र करना प्रासंगिक हो जाता है।
ऑपरेशन कैक्ट्स, भारत और मालदीव
मालदीव के साथ भारत के सदियों पुराने व्यापारिक और सांस्कृति संबंध रहे हैं। जब-जब मालदीव पर कोई संकट आया है तो भारत ने बिना कोई देर किए सबसे पहले मदद की है। 1988 में जब मालदीव में तख्तापलट की कोशिश को भारत ने नाकाम किया था। तब अब्दुल्ला लुतूफी नाम के विद्रोही नेता ने श्री लंकाई विद्रोहियों की मदद से तत्कालीन राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गयूम की सत्ता पलटने की कोशिश की थी। इस संकट से निपटने के लिए मालदीव ने भारत और अमेरिका समेत अंतरराष्ट्रीय समुदाय से मदद की गुहार लगाई थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने तत्काल भारतीय वायु सेना को मालदीव की मदद का निर्देश दिया। भारतीय वायुसेना के ऑपरेशन में सारे विद्रोही या तो ढेर कर दिए गए या फिर गिरफ्तार। भारत की इस कार्रवाई की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तारीफ हुई। भारतीय वायुसेना के उस अभियान को 'ऑपरेशन कैक्टस' के नाम से जाना जाता है।
ऑपरेशन नीर और मालदीव
दिसंबर 2014 में माले में पानी आपूर्ति कंपनी के जेनरेटर कंट्रोल पैनल में भीषण आग लग गई थी। इस वजह से पूरे देश में पेयजल का अभूतपूर्व संकट खड़ा हो गया। मालदीव सरकार ने भारत सरकार से मदद मांगी। भारत ने तत्काल मदद करते हुए आईएनएस सुकन्या को पानी के साथ माले के लिए रवाना किया। इसके अलावा आईएनएस दीपक को 1000 टन पानी के साथ माले भेजा गया। भारतीय वायुसेना ने भी अपने एयरक्राफ्ट्स के जरिए सैकड़ों टन पानी माले पहुंचाया था। भारत के इस अभियान को 'ऑपरेशन नीर' नाम से जाना जाता है।
जानकार की राय
दैनिक जागरण से खास बातचीत में प्रोफेसर हर्ष वी पंत ने कहा कि राष्ट्रपति यमीन एक तरफ इस्लामी आतंकियों के साथ मेलजोल बढ़ा रहे हैं, दूसरी तरफ चीन की मदद लेकर अंतरराष्ट्रीय दबावों को कम करना चाहते हैं। 2014 में चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के माले दौरे के बाद मालदीव 21वीं सदी के मैरीटाइम सिल्क रोड का हिस्सा बना। चीन ने देर न करते हुए मालदीव में बड़े बड़े आधारभूत प्रोजेक्ट्स पर काम करना शुरू कर दिया। ये बात अलग है कि 2016 में यमीन जब भारत यात्रा पर थे उस वक्त उन्होंने कहा कि मालदीव के विदेश नीति में भारत का स्थान सबसे पहले है। ये बात अलग है कि ये सब उन्होने तब कहा जब मानवाधिकार के मामले में राष्ट्रमंडल द्वारा मिलने दंडात्मक कार्रवाई से यमीन को बचाया था। दरअसर नशीद की भारत के साथ मित्रता की वजह से मौजूदा सरकार चीन के पाले में चली गई। मालदीव में जो हालात बने है उसमें भारत सरकाक को बहुत सावधानी के साथ आगे बढ़ना होगा। भारत को बलपूर्ण कूटनीति पर काम करना होगा अगर उसके हितों को किसी तरह का नुकसान पहुंचता है। भौगोलिक स्थिति भी भारत की भूमिका को बढ़ा देता है। मालदीव में हर पल बदल रहे राजनीतिक हालात पर भारत को नजर बनाए रखना होगा।