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India-Japan Relation: किशिदा भारत-जापान की मजबूत दोस्ती व रणनीतिक रिश्तों के पुराने हिमायती

India-Japan Relation आज जापान जहां विश्व की शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं में शामिल है वहीं भारत की अर्थव्यवस्था तेजी से आगे बढ़ रही है। ऐसे में यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं कि 21वीं सदी में एशिया का भविष्य भारत और जापान ही तय करेंगे।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 15 Oct 2021 11:34 AM (IST)Updated: Fri, 15 Oct 2021 11:35 AM (IST)
India-Japan Relation: किशिदा भारत-जापान की मजबूत दोस्ती व रणनीतिक रिश्तों के पुराने हिमायती
फुमियो किशिदा: भारत से बेहतर संबंध। फाइल

राहुल लाल। India-Japan Relation जापान की संसद ने पूर्व विदेश मंत्री फुमियो किशिदा को देश का नया प्रधानमंत्री चुना है। किशिदा पर आसन्न चुनाव से पहले कोरोना महामारी और चीन व रूस जैसे खतरों से निपटने की चुनौती है। जापान के नए प्रधानमंत्री ने पद संभालते ही 31 अक्टूबर को जापान में आम चुनाव की घोषणा कर दी है। किशिदा पर पार्टी की छवि को सुधारने का दबाव होगा, जो सुगा के नेतृत्व में कथित तौर पर धूमिल हुई है। किशिदा ने कोविड से बुरी तरह प्रभावित हुई अर्थव्यवस्था और घटती जनसंख्या तथा जन्मदर की समस्याओं सहित अनेक राष्ट्रीय संकटों से निपटने का वादा किया है।

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किशिदा द्वारा प्रधानमंत्री पद संभालते ही जापान में शेयर बाजारों में तेज गिरावट देखने को मिल रही है। इसे जापान में ‘किशिदा शाक’ कहा जा रहा है। किशिदा ने प्रधानमंत्री बनते ही ‘नए प्रकार के जापानी पूंजीवाद’ की घोषणा की थी। मूलत: किशिदा अपनी इस नीति के तहत देश में धन का पुन: वितरण करना चाहते हैं। किशिदा के अनुसार अगर विकास के फल को सभी लोगों में वितरित नहीं किया गया, तो उपभोग और मांग में वृद्धि नहीं होगी। इस तरह वह देश में व्याप्त आर्थिक असमानता की ओर संकेत कर उसे समाप्त करना चाहते हैं। वह एक सीमा से अधिक पूंजीगत लाभ पर टैक्स लगाना चाहते हैं। साथ ही वे ऐसी कंपनियों को टैक्स रियायत देना चाहते हैं, जो कर्मचारियों के वेतन में वृद्धि करेंगी। उनके इन विचारों का कारपोरेट सेक्टर में काफी विरोध हो रहा है और जापानी शेयर बाजार लगातार नीचे गिर रहा है।

जापानी कूटनीति एवं सुरक्षा नीतियों की निरंतरता सुनिश्चित करते हुए विदेश मंत्री और रक्षा मंत्री में कोई बदलाव नहीं किया गया है। किशिदा चीन के साथ बढ़ते तनाव पर अमेरिका के साथ मिलकर काम करना चाहते हैं। किशिदा चीन एवं परमाणु शक्ति संपन्न उत्तर कोरिया का मुकाबला करने के लिए कुछ हद तक एशिया, यूरोप और ब्रिटेन में समान विचारधारा वाले लोकतंत्र के साथ मजबूत जापान-अमेरिका सुरक्षा संबंधों और साझेदारी का समर्थन करते हैं।

भारत से मजबूत संबंधों के पक्षधर : जब भारत और जापान के रणनीतिक रिश्ते बेहद मजबूत होने की राह पर हैं, तब किशिदा का प्रधानमंत्री बनना भारत के लिए और भी सुखद है। किशिदा भारत-जापान की मजबूत दोस्ती व रणनीतिक रिश्तों के पुराने हिमायती हैं। वर्ष 2015 में विदेश मंत्री का पद संभालने के बाद उन्होंने सबसे पहले भारत की यात्र कर इसका सबूत दिया। इस यात्र के दौरान उन्होंने बताया भी था कि क्यों विदेश मंत्री के रूप में सबसे पहले भारत की यात्र की थी। वर्ष 2015 में उन्होंने कहा था कि भारत और जापान की साङोदारी एक नए युग का नेतृत्व करेगी, एक ऐसे युग का जो हिंद प्रशांत क्षेत्र में नई समृद्धि का शुभारंभ करेगी। किशिदा के अनुसार हिंद प्रशांत क्षेत्र में शांति और समृद्धि केवल भारत और जापान के लिए ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए महत्वपूर्ण है।

भारत को पोखरण-2 परमाणु परीक्षण के समय 1998 में जापान से काफी विरोध का सामना करना पड़ा था। लेकिन पिछले 23 वर्षो में भारत-जापान संबंधों में काफी प्रगति हुई है। दोनों देश जी-4 समूह के सदस्य हैं, जो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के लिए एक दूसरे की दावेदारी का समर्थन करते हैं। किशिदा ने विदेश मंत्री रहते हुए जापानी विदेश नीति में भारत को पर्याप्त महत्व दिया था। ऐसे में प्रश्न उठता है कि क्या किशिदा के प्रधानमंत्री बनने पर भावी सालाना शिखर सम्मेलन शीघ्र आयोजित होंगे? किशिदा भारत के साथ रिश्तों को विशेष महत्व देते हैं, फिर भी भावी शिखर सम्मेलन में विलंब होने की संभावना है। भारत-जापान वार्षिक शिखर सम्मेलन का आयोजन वर्ष 2019 और 2020 में नहीं हो पाया। हाल ही में अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन में द्विपक्षीय बैठक हुई, लेकिन शिखर सम्मेलन का आयोजन नहीं हो पाया है। अब नए प्रधानमंत्री पद ग्रहण करते ही चुनाव की प्रक्रिया में व्यस्त हो गए हैं। ऐसे में चुनाव पूर्व उनके भारत आने की संभावना कम ही है।

जापानी प्रधानमंत्री किशिदा चीन की बढ़ती ताकत और हिंद महासागर को लेकर बन रहे गठबंधन में जापान की भूमिका को लेकर अत्यंत गंभीर हैं। स्पष्ट है कि इन सभी क्षेत्रों में किशिदा भारत से सहयोग में वृद्धि करना चाहेंगे। भारत और जापान दोनों के लिए चीन एक साझा चुनौती रहा है। पिछले कुछ वर्षो में दक्षिण चीन सागर, हिंद महासागर और प्रशांत महासागर में चीन की आक्रामकता में वृद्धि अन्य देशों के लिए चिंता का विषय रही है। यही कारण है कि जो बाइडन के नेतृत्व में क्वाड के सदस्य देश भारत, अमेरिका, जापान और आस्ट्रेलिया पहले से अभी अधिक सक्रिय हो गए हैं। क्वाड प्लस में इंडोनेशिया और वियतनाम जैसे देशों की रूचि बढ़ी है। इसके साथ ही हाल में अमेरिका ने ‘आकस’ का गठन किया, जिसमें अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम और आस्ट्रेलिया शामिल है। इस समूह की स्थापना के बाद अमेरिका ने पिछली सदी के छठे दशक के बाद पहली बार परमाणु पनडुब्बी की तकनीक आस्ट्रेलिया को प्रदान की है। इससे क्वाड के सदस्य के रूप में हिंद प्रशांत क्षेत्र में आस्ट्रेलिया की ताकत में वृद्धि होगी, जो अंतत: चीन के विरुद्ध शक्ति संतुलन स्थापित करेगा। इसी तरह मलक्का जलडमरूमध्य में भी जापान, भारत और आस्ट्रेलिया चीन पर पर्याप्त दबाव बना सकेंगे। जापान विश्व की शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। वहीं भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है। यही कारण है कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और जापानी प्रधानमंत्री किशिदा दोनों मानते हैं कि 21वीं सदी में एशिया का भविष्य भारत और जापान ही तय करेंगे।

[वरिष्ठ पत्रकार]


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