भारत को शक, पाकिस्तान की नई सरकार पर होगा पाक सेना का नियंत्रण
पाक सेना ने पिछले दो वर्षों के दौरान सिलसिलेवार तरीके से देश में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर कर यह जता दिया है कि आने वाले दिनों में भी उसका दबदबा यूं ही कायम रहेगा।
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। संभवत: पिछले कुछ दशकों में पाकिस्तान में होने वाला यह पहला ऐसा चुनाव है जिसे लेकर भारतीय कूटनीतिक जगत में बहुत ज्यादा उत्साह नहीं है। इसकी वजह यह है कि इस बार चुनाव को लेकर एक आम राय यह बन चुकी है कि सब कुछ पाकिस्तानी सेना के इशारे पर हो रहा है।
पाक सेना ने पिछले दो वर्षों के दौरान सिलसिलेवार तरीके से देश में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर कर यह जता दिया है कि आने वाले दिनों में भी उसका दबदबा यूं ही कायम रहेगा। ऐसे में चुनाव बाद पाकिस्तान में चाहे जिस पार्टी की सरकार बने, इस बात की उम्मीद कम ही है कि वह भारत के साथ रिश्तों पर स्वतंत्र तरीके से फैसला कर सकेगी। इस नाउम्मीदी के बावजूद विदेश मंत्रालय पाकिस्तान में बुधवार को होने वाले चुनाव पर पैनी नजर बनाए हुए है।
विदेश मंत्रालय से जुड़े अधिकारियों के मुताबिक, पाकिस्तान में इस बार का चुनाव पिछले चुनाव से इस लिहाज से अलग है कि पाकिस्तानी आर्मी की सारी गतिविधियां साफ तौर पर दिख रही हैं। अगर दूसरे देशों के पर्यवेक्षकों की छोड़ भी दें तो पाकिस्तान के बड़े विशेषज्ञों ने हाल के दिनों में जो लिखा है वह आम चुनाव की वैधता पर ही सवाल उठाते हैं। ऐसा लगता है कि वर्ष 2013 की चुनाव प्रक्रिया से पाकिस्तान आर्मी सबक ले रही है। तब सेना ने चुनाव प्रक्रिया में कोई हस्तक्षेप नहीं किया था, लेकिन बाद में नवाज शरीफ के विजयी होने के बाद उनकी पाक सेना के साथ सीधी मुठभेड़ हुई थी। इस तरह से पाक सेना लगातार यह संकेत दे रही है कि चुनाव बाद भी सत्ता का असल केंद्र वही रहेगी।
यह पूछे जाने पर कि क्या चुनाव बाद भारत के साथ रिश्तों में सुधार की उम्मीद की जा सकती है, उक्त अधिकारियों का कहना है कि अभी कुछ कहना मुश्किल होगा। भारत की तरफ से कोई पहल होनी होगी तो वह यहां होने वाले आम चुनाव के बाद ही संभव होगी। पिछली बार भी ऐसा हुआ था। वर्ष 2014 में सत्ता संभालने के बाद राजग सरकार ने प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की सरकार के साथ रिश्तों को सुधारने की कोशिश की और तकरीबन दो वर्षों तक स्थिति ठीक रही, लेकिन जनवरी, 2016 में पठानकोट हमले के बाद हालात बिगड़ते चले गए। इस बार भी यह देखना होगा कि पाकिस्तान में कौन प्रधानमंत्री बनता है और भारत को लेकर उसका रुख कैसा रहता है।
पड़ोसी देश में भी लोक लुभावन वादों की भरमार
अगर आप भारतीय राजनेताओं की तरफ से किए जाने वाले लोक लुभावन वादों पर आश्चर्यचकित होते हैं तो पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान की तरफ भी एक नजर डालिए। बुधवार को होने वाले आम चुनाव में उम्मीदवारों ने जिस तरह के चुनावी वादे किए हैं, वह न सिर्फ अनूठे हैं, बल्कि भारतीय राजनेताओं को बहुत पीछे छोड़ते हैं। पाकिस्तान जिंदाबाद मूवमेंट नाम की एक छोटी सी पार्टी ने कुरान के जानकारों (हाफिज ए कुरान) को 25 हजार रुपये का मासिक वजीफा और दाढ़ी रखने वालों को 15 हजार रुपये का मासिक वजीफा देने का वादा किया है।
समूचे कश्मीर को पाकिस्तान का हिस्सा बनाने का वादा तकरीबन हर राजनीतिक दल ने किया है इसमें सबसे आगे पीएमएल(एन) है जिसके मुखिया शाहबाज शरीफ ने यह भी एलान किया है कि पाकिस्तान का वह इतना विकास करेंगे कि भारतीय उनसे सीखने के लिए आएंगे। चूंकि इस बार पाकिस्तान चुनाव में सबसे ज्यादा इस्लामिक पार्टियां मैदान में हैं लिहाजा पाकिस्तान को शरीयत कानून के मुताबिक चलने वाले देश के तौर पर बनाने का एलान करने वाले राजनीतिक दलों की संख्या भी कम नहीं है।
मसलन, इस्लामिक तहरीक पाकिस्तान, जमात-ए-इस्लामी पाकिस्तान, इत्तेहादए-उम्मत पाकिस्तान, जमियत उलमाए-पाकिस्तान, जमोत कौमी मूवमेंट, जैसी दो दर्जन पार्टियां ऐसी हैं जिन्होंने पाकिस्तान को ‘सच्चे मायने’ में एक इस्लामिक देश बनाने का वादा किया है, लेकिन इनमें से कुछ पार्टियां पहले भी चुनाव में उतरती रही हैं, लेकिन उनका वोट शेयर बहुत ही कम है।
उल्लेखनीय बात यह भी है कि इस बार जहां एक तरफ कट्टर इस्लामिक पार्टियों ने चुनाव में सिर्फ इस्लामिक मुद्दों को भुनाने की कोशिश की है, वही तीन प्रमुख राष्ट्रीय दलों पीपीपी, पीटीआइ और पीएमएल (एन) के चुनाव प्रचार में विकास और भ्रष्टाचार का मुद्दा सबसे अहम रहा है। चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों में आगे चल रहे पीटीआइ के प्रमुख व पूर्व क्रिकेटर इमरान खान ने अपनी हर चुनावी सभा में पाकिस्तान को भ्रष्टाचार से मुक्त करने की बात कही है।
बिलावल बन सकते हैं किंगमेकर
पाकिस्तान चुनाव को लेकर हुए सर्वे में 29 वर्षीय बिलावल की पार्टी पीपीपी पिछड़ती दिख रही है। पल्स कंसल्टेंट के सर्वे में उसे महज 17 फीसद वोट मिलते दिख रहे हैं, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिलने पर पीपीपी किंगमेकर बन सकती है। नेशनल असेंबली 342 सदस्यीय है। इनमें से 272 सीटों के लिए सीधे चुनाव हो रहा है।
बहुमत के लिए 137 सीटें जीतना जरूरी है। बाकी 70 सीटें महिलाओं और अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षित हैं। इन सीटों का आवंटन चुनाव में दलों को मिलने वाले वोटिंग प्रतिशत के आधार पर होता है। पाकिस्तान में ऐसा पहली बार हुआ है जब किसी दल ने सत्ता में पांच साल का कार्यकाल पूरा किया। 2013 में शरीफ की पार्टी पीएमएल-एन सत्ता में आई थी और उसने अपना कार्यकाल पूरा किया।
महिला एजेंट के फैसले पर भड़कीं पार्टियां
पाकिस्तान के चुनाव आयोग के एक और फैसले से सियासी पार्टियां नाराज हो गई हैं। मतदान से ठीक एक दिन पहले आयोग ने अपने ताजा आदेश में कहा कि महिला मतदान केंद्रों पर सिर्फ महिला पोलिंग एजेंटों को ही अनुमति होगी। देश में 4.67 करोड़ महिला मतदाता हैं।
तीनों प्रमुख पार्टियों पीएमएल-एन, पीपीपी और पीटीआइ ने इस आदेश के समय पर सवाल उठाते हुए इसे गैरजरूरी बताया है। पीपीपी के महासचिव फरहतुल्ला खान बाबर ने कहा, ‘नया आदेश अतीत की व्यवस्था के उलट है। इससे महिला मतदान केंद्र सियासी पार्टियों के प्रतिनिधियों के बगैर पूरी तरह चुनाव आयोग के स्टाफ की दया पर निर्भर रहेंगे। यह आदेश ऐसे समय जारी किया गया है, जब मतदान में कुछ घंटे ही बचे हैं।’