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पाकिस्तानी संसद में अगर पहुंचे कट्टरपंथी, भारत की बढ़ सकती हैं मुश्किलें

अब तो ये वहां की जनता को तय करना है कि सरेआम खून-खराबा और लोगों के बीच वैमनस्य फैलाने वाले इन लोगों को कैसा सियासी सबक सिखाती है?

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 20 Jul 2018 08:57 AM (IST)Updated: Fri, 20 Jul 2018 09:04 AM (IST)
पाकिस्तानी संसद में अगर पहुंचे कट्टरपंथी, भारत की बढ़ सकती हैं मुश्किलें
पाकिस्तानी संसद में अगर पहुंचे कट्टरपंथी, भारत की बढ़ सकती हैं मुश्किलें

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। आतंक को पोषित करने के फेर में पाकिस्तान वैश्विक दुनिया से अलग-थलग पड़ चुका है, लेकिन अपनी जमीन पर आतंकवादी संगठनों और समूहों को खाद-पानी देने से अब भी परहेज करता नहीं दिखता। इस बार कई आतंकी संगठन उसकी संसद में नुमाइंदगी के तलबगार हैं। शायद इसलिए कई कट्टर संगठनों के नेता चुनाव में कूद पड़े हैं। अब तो ये वहां की जनता को तय करना है कि सरेआम खून-खराबा और लोगों के बीच वैमनस्य फैलाने वाले इन लोगों को कैसा सियासी सबक सिखाती है? चुनाव में चंद दिन बचे हैं। पड़ोस में अगर ऐसे कट्टरपंथी विचारधारा के लोग संसद में पहुंच गए तो हालात भारत के लिए भी विषम हो सकते हैं।

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जमात-उद-दावा

2008 में मुंबई आतंकी हमले को अंजाम देने वाले लश्कर-ए-तैयबा का मुख्य समूह है। 2018 के पाकिस्तान के आम चुनावों में भागीदारी के लिए मिल्ली मुस्लिम लीग पार्टी बनाई। हालांकि पाकिस्तानी चुनाव आयोग ने इस पार्टी का पंजीकरण नहीं किया। लिहाजा वह अब दूसरे नाम अल्ला-हू-अकबर तहरीक नामक राजनीतिक दल से उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारा है। जून, 2014 में अमेरिका ने जमात-उद-दावा को आतंकी संगठनों की सूची में शामिल किया।

चुनाव में इसने 80 उम्मीदवारों को उतारा है। इसमें इसके सरगना हाफिज सईद का बेटा हाफिज तल्हा और दामाद हाफिज खालिद वालिद भी शामिल है। जमात उद दावा में शीर्ष पदाधिकारी और लश्कर-ए-तैयबा के केंद्रीय सलाहकार समिति के सदस्य कारी मुहम्मद शेख याकूब भी लाहौर से संसद पहुंचने की जुगत भिड़ा रहा है। इसका नाम भी अमेरिका द्वारा प्रतिबंधित आतंकियों की सूची में शामिल है।

अहले सुन्नत वल जमात

यह कट्टरपंथी संगठन पिछले महीने तक पाकिस्तान में प्रतिबंधित था। अपने शीर्ष नेता औरंगजेब फारुकी सहित दर्जनों उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारा है। फारुकी भी अमेरिका की प्रतिबंधित आतंकी सूची में शामिल है। 2013 के आम चुनाव में फारुकी केवल 202 वोटों से संसद नहीं पहुंच सका। अल्पसंख्यक शिया समुदाय के खिलाफ हिंसा और मारकाट मचाने वाले इस संगठन को लश्कर-ए-झांगवी का राजनीतिक संगठन माना जाता है। अलकायदा से गठजोड़ के बाद लश्कर-ए-झांगवी पाकिस्तान में बहुत ताकतवर हो गया है।

पिछले महीने पाकिस्तान सरकार ने इस संगठन से प्रतिबंध हटा लिया। इसके मुखिया मौलाना अहमद लुधियानवी की संपत्तियों को भी डिफ्रीज कर दिया गया। सरकार के इस फैसले से तुरंत पहले फाइनेंशियल एक्शन टॉस्क फोर्स द्वारा आतंकी संगठनों के वित्तीय लेन-देन पर रोक न लगा पाने के चलते पाकिस्तान को ग्रे सूची में डाल दिया गया था।

तहरीक-ए-लब्बाइक

यह भी पाकिस्तान की कट्टरपंथी इस्लामिक पार्टी है। खादिम हुसैन रिजवी इसके मुखिया हैं। उनकी पार्टी के घोषणापत्र में पाकिस्तान को इस्लाम की शिक्षाओं पर आधारित एक वास्तविक इस्लामिक देश बनाने की बात कही गई है। संसद के अलावा कराची विधानसभा के लिए भी उम्मीदवार उतारे हैं।  


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