Move to Jagran APP

बदलते वैश्विक परिदृश्य में संयुक्त राष्ट्र महासभा में कैसे बढ़े भारत की भूमिका, एक्सपर्ट व्यू

संयुक्त राष्ट्र की 77वीं महासभा अपने समापन के दौर में है। इस महासभा में संयुक्त राष्ट्र के महासचिव से लेकर भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने सुरक्षा परिषद में बदलाव की बात की है जो भारत के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है।

By JagranEdited By: Sanjay PokhriyalPublished: Tue, 27 Sep 2022 04:03 PM (IST)Updated: Tue, 27 Sep 2022 04:03 PM (IST)
न्यूयार्क में आयोजित संयुक्त राष्ट्र महासभा में शनिवार की रात को अपना वक्तव्य देते हुए भारत के विदेश मंत्री जयशंकर।

डा. कन्हैया त्रिपाठी। बीते लगभग दो सप्ताह से न्यूयार्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा का आयोजन जारी है। तमाम दुविधाओं के बावजूद हर भारतीय इस ओर आशावान है कि जल्द ही भारत सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बन सकता है। इस वर्ष आयोजित संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत का प्रतिनिधित्व विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने किया है। वरिष्ठ राजनयिक रहे एस. जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने संबोधन में कुछ बड़ी बातों को प्रस्तुत किया है, जिसे हमें जानना चाहिए। पहली बात, हमें राजनय शक्ति में भरोसा रखना होगा। दूसरी, हमें यह तय करना होगा कि हम किस तरफ हैं। तीसरी बात, विश्व आज रोमांचक तरीके से रूपांतरकारी बदलाव के दौर से गुजर रहा है। ऐसे में आतंकवाद पर शून्य-सहिष्णुता आवश्यक है।

loksabha election banner

निश्चित रूप से भारत की स्थिति दुनिया भर में प्रतिष्ठित हुई है। संयुक्त राष्ट्र में एक ऐसी स्थिति तो बन ही गई है कि वीटो अधिकार प्राप्त देश भी भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में स्थान दिए जाने की वकालत कर रहे हैं, लेकिन हमारे लिए केवल इतना भर पर्याप्त नहीं है। इसे एक समय के लिए भारत को आकर्षित करने का तरीका भर समझा जाना चाहिए। जब महासभा चल रही हो तो उस समय भारत को कैसे अपने पक्ष में सही दृष्टिकोण के साथ समर्थन मिल सकता है। यदि सभी के लिए भारत आवश्यक है तो केवल उसी समय भारत के बारे में बोलकर बात खत्म कर देना तो एक तरह चालबाजी ही मानी जा सकती है। कुछ कमी हमारी भी है कि हम इस मसले पर साल भर क्या करते हैं और हमारे प्रयास इस दिशा में कितने सशक्त हैं, इसका आत्मावलोकन हम क्यों नहीं करते। जब युद्धरत देश रूस और यूक्रेन भी भारत को एक सही मध्यस्थ मान रहे हैं और कई अन्य देशों के साथ अमेरिका भी यह कह रहा है कि भारत को यूएनएससी में होना ही चाहिए तो हम स्वयं विचार करें कि हम इस दिशा में असफल क्यों हो रहे हैं?

एस. जयशंकर ने महासभा में सुरक्षा परिषद में सुधार की बात भी कही है जो बहुत ही महत्वपूर्ण है। परंतु यह भी समझा जाना चाहिए कि केवल इतने भर से बात नहीं बनेगी। इस संदर्भ में रणनीतिक रूप से भी हमें आगे बढ़ना होगा। पूरा विश्व जानता है कि जब तक एजेंडे के रूप में विस्तार की बातें नहीं आएंगी, तब तक सुरक्षा परिषद का विस्तार नहीं होगा। दरअसल हम यह जानते हैं कि ऐसे एजेंडे किस दशा में आते हैं। लीग आफ नेशंस के बाद संयुक्त राष्ट्र की स्थापना तक के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य को समझने की कोशिश करें तो यह स्पष्ट होता है कि जब तक दुनिया किसी भयावह संकट की स्थिति में नहीं पहुंच जाती, तब तक शांति और सुरक्षा की दिशा में रोमांचकारी कदम नहीं उठाए जाते। तो सवाल यह है कि क्या संयुक्त राष्ट्र के वीटो अधिकार प्राप्त देश इस बात की प्रतीक्षा कर रहे हैं कि कोई बड़ी घटना घटे? यूक्रेन में युद्ध का उल्लेख करते हुए एस. जयशंकर ने यह स्पष्ट किया है कि भारत शांति का समर्थक है। हम उस तरफ हैं जहां यूएन चार्टर और इसके बुनियादी सिद्धांतों का सम्मान होता है। हम उस तरफ हैं जहां से संवाद और राजनय को ही एकमात्र रास्ता अपनाने की पुकार उठती है।

सबकी मंगल कामना 

किसी भी राष्ट्र की कीमत तभी निर्धारित होती है जब वह निरपेक्ष रूप से सबके मंगल की कामना में अपनी गति कायम रखता है। भारत इस दिशा में विगत 75 वर्षों में निरंतर आगे बढ़ा है। भारत ने रचनात्मक कार्यों को आगे बढ़ाते हुए संसार भर में गरीबी, भुखमरी और पर्यावरणीय समस्याओं के समाधान के लिए नए उदाहरण प्रस्तुत किए हैं। कोविड महामारी के दौर में पूरी दुनिया ने इसे महसूस भी किया है। मौलिक रूप से भारत का शांति-पथ सबके लिए हितकारी है और संयुक्त राष्ट्र के मंच से इसकी गूंज भी विश्व भर में सुनी गई है। रूस के राष्ट्रपति पुतिन के साथ प्रेसवार्ता के दौरान भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा, ‘मैं जानता हूं कि आज का युग युद्ध का नहीं है और हमने फोन पर भी कई बार आपस में इस विषय पर बातचीत की है।’ आने वाले दिनों में शांति के रास्ते पर हम कैसे बढ़ सकें उसके विषय में हमें आज आवश्यक चर्चा करने का मौका मिलेगा। यूक्रेन से भारतीयों की सकुशल वापसी की प्रक्रिया में हमें दोनों देशों (यूक्रेन और रूस) का अभूतपूर्व सहयोग मिला है, यह दोनों देशों के साथ भारत की समान मैत्री का सूचक है। ऐसे परिवेश ने भारत को एक साझे मित्र के रूप में परिभाषित किया है। इस मैत्री का लाभ सभी को मिल सकता है।

भारत की सहभागिता 

संयुक्त राष्ट्र के प्रत्येक नवाचार में भारत की सहभागिता उसकी अपनी इच्छाशक्ति पर निर्भर है। अब हम भारतीय इसे कितना ऊर्जावान बना सकेंगे, यह हमारी सक्रियता पर निर्भर है। निश्चित रूप से इस 77वीं संयुक्त राष्ट्र महासभा में हम दो कदम आगे बढ़े हैं, किंतु हमें पूर्ण रूप से संयुक्त राष्ट्र की जरूरत बनना आवश्यक है। यह कैसे होगा इसकी रणनीति और उस पर सक्रिय जिम्मेदारियों को यदि भारत सुनिश्चित करता है तो उसके लिए कुछ भी असंभव नहीं है। फिलहाल, भारत एक और महासभा में अपनी प्रतिभागिता सुनिश्चित कर चुका है और आगामी वर्ष में पुनः उपस्थित होगा। इस संदर्भ में सर्वाधिक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि इस आवाजाही से इतर क्या भारत संयुक्त राष्ट्र में अपनी सशक्त भूमिका सुनिश्चित करने में सफल होगा, ताकि उसे भी वीटो का अधिकार प्राप्त हो सके। भारत सरकार और उसकी राजनयिक टीम इस संबंध में आज से ही एक रणनीति तय करते हुए उस दिशा में कार्य आरंभ करे तो निश्चित रूप से इस लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।

[राष्ट्रपति के पूर्व विशेष कार्य अधिकारी]


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.