Move to Jagran APP

China-Taiwan Conflict: दशकों पुराना है चीन-ताइवान का टकराव, इतिहास में छिपी है वर्तमान की जड़ें

China-Taiwan Conflict चीन भले ही स्वीकार न करे लेकिन ताइवान एक स्वतंत्र राष्ट्र की शर्ते पूरी करता है। इसका अपना संविधान है लोकतांत्रिक रूप से चुना हुआ नेता है और करीब तीन लाख जवानों की सशस्त्र सेना भी है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 12 Oct 2021 10:38 AM (IST)Updated: Tue, 12 Oct 2021 10:49 AM (IST)
China-Taiwan Conflict: दशकों पुराना है चीन-ताइवान का टकराव, इतिहास में छिपी है वर्तमान की जड़ें
अमेरिका की मदद से ताइवान की सैन्य शक्ति मजबूत हुई है।

नई दिल्‍ली, जेएनएन। China-Taiwan Conflict चीन और ताइवान का टकराव फिर सतह पर है। 40 साल में दोनों देशों के बीच इसे सबसे बुरी स्थिति बताया जा रहा है। एक ओर चीन का कहना है कि वह हर हाल में ताइवान को अपने नियंत्रण में लाकर रहेगा, तो दूसरी ओर ताइवान की राष्ट्रपति त्साई इंग-वेन ने खुले शब्दों में कहा है कि ताइवान का भविष्य चीन नहीं तय कर सकता। चीन का मानना है कि ताइवान उसका ही एक छिटका हुआ प्रांत है, जो कभी न कभी फिर मिल जाएगा। वहीं, ताइवान के ज्यादातर लोग ऐसा नहीं मानते। भले ही आधिकारिक रूप से आजादी का एलान न हुआ हो, लेकिन वे स्वयं को एक स्वतंत्र राष्ट्र का नागरिक मानते हैं।

loksabha election banner

इतिहास में छिपी है वर्तमान की जड़ : चीन और ताइवान के साथ का इतिहास पुराना है। वर्ष 239 में चीन के एक सम्राट ने ताइवान में अपने सैनिक भेजे थे। उस दौरान पहली बार चीन के हिस्से के रूप में ताइवान का जिक्र होता है। मौजूदा समय में भी ताइवान पर अपने दावे के लिए चीन इस तथ्य का इस्तेमाल करता है। औपनिवेशिक काल में ताइवान कुछ समय डच उपनिवेश रहा था। इसके बाद 1683 से 1895 तक यहां चीन के किंग राजवंश का शासन रहा।

जापान का भी रहा नियंत्रण : 1895 में जापान से हार के बाद किंग सरकार ने ताइवान का नियंत्रण जापान को दे दिया था। इसके बाद अगले कुछ दशक तक जापान का नियंत्रण रहा। दूसरे विश्व युद्ध में जापान ने आत्मसमर्पण कर दिया था। इसके बाद चीन ने अमेरिका और ब्रिटेन की सहमति से फिर ताइवान पर नियंत्रण कर लिया।

गृहयुद्ध ने बदली तस्वीर : अगले कुछ वर्षो में चीन में गृहयुद्ध शुरू हो गया। शासक चियांग काई-शेक की सेना माओ जेदांग की कम्युनिस्ट सेना से हार गई। चियांग और कुओमिनतांग (केएमटी) सरकार के उनके सहयोगी 1949 में भागकर ताइवान पहुंच गए। अगले कई साल ताइवान की राजनीति पर उनका वर्चस्व रहा। बाद में ताइवान में लोकतंत्र के जनक कहे जाने वाले राष्ट्रपति ली तेंग-हुई ने संवैधानिक बदलाव किया और वर्ष 2000 में पहली बार केएमटी पार्टी से इतर राष्ट्रपति चुने जाने की राह खुली और चेन शुई-बियान राष्ट्रपति बने।

चीन से संबंधों की आंखमिचौली : चेन शुई-बियान के राष्ट्रपति बनने के बाद चीन की चिंता बढ़ी थी। चेन ने खुले तौर पर आजादी की वकालत की थी। 2004 में उन्होंने फिर चुनाव जीता। इसके बाद चीन ने कथित अलगाव रोधी कानून पास किया। इसके तहत उसने ताइवान में चीन से अलग होने की किसी भी कोशिश को रोकने के लिए सैन्य रास्ता अपनाने की बात कही। 2008 में मा ¨यग-जेओ ने आर्थिक समझौतों के जरिये चीन से संबंधों को सुधारने की पैरवी की। अगले कुछ साल चीन और ताइवान के बीच टकराव कम दिखा।

बदली सरकार, बदला माहौल : 2016 में ताइवान की मौजूदा राष्ट्रपति त्साई इंग-वेन ने पहली बार चुनाव जीता। वह डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (डीपीपी) की अगुआ हैं, जो आधिकारिक रूप से ताइवान की आजादी के पक्ष में है। उन्होंने 2016 में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से भी बात की थी। 1979 से ताइवान और अमेरिका के बीच आधिकारिक रिश्ते खत्म चल रहे थे। अमेरिका और ताइवान के बीच फिर बातचीत ने चीन की चिंता बढ़ाने का काम किया। अमेरिका ने ताइवान को हथियार आपूर्ति का भरोसा दिलाया। 2020 में त्साई की दोबारा जीत ने चीन के लिए मुश्किलों को और बढ़ाया।

स्वतंत्र राष्ट्र की शर्ते पूरी करता है ताइवान : चीन भले ही स्वीकार न करे, लेकिन ताइवान एक स्वतंत्र राष्ट्र की शर्ते पूरी करता है। इसका अपना संविधान है, लोकतांत्रिक रूप से चुना हुआ नेता है और करीब तीन लाख जवानों की सशस्त्र सेना भी है। 2021 में 140 देशों की सूची में ताइवान की सेना को 22वें स्थान पर रखा गया है। अमेरिका की मदद से ताइवान की सैन्य शक्ति मजबूत हुई है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.