तालिबान कैदियों की रिहाई के बाद क्या अफगानिस्तान में रुक जाएगा खून-खराबा, कहना मुश्किल
अफगानिस्तान की शांति वार्ता यूं तो आगे बढ़ निकली है और दोनेां तरफ से कैदियों की रिहाई भी शुरू हो गई है। लेकिन ऐसे में भी तीन सवालों के जवाब हर कोई जानना चाहता है।
नई दिल्ली (जेएनएन)। तालिबान और अफगान सरकार के बीच हुई बातचीत के बाद गुरुवार से एक नई शुरुआत हो रही है। ये शुरुआत दोनों तरफ से कैदियों की रिहाई से हो रही है। इस दौरान जहां अफगान सरकार 100 तालिबानी कैदियों को रिहा करेगी वहीं तालिबान सरकार के 20 कैदियों को रिहा करेगा। इसको भविष्य में अफगानिस्तान में शांति स्थापना के तहत बड़ा कदम माना जा सकता है। लेकिन इसके बीच दो बड़े सवाल ज्यों के त्यों बने हुए हैं। इनमें पहला सबसे बड़ा सवाल तालिबान की तरफ से होने वाले हमलों को लेकर खड़ा हुआ है। आपको बता दें कि इंट्रा-अफगान वार्ता के दौरान भी तालिबान की तरफ से हमले कम नहीं हुए। कुछ दिन पहले हुए हमले में 25 अफगान जवान मारे गए थे। ऐसे में ये सवाल अपनी जगह खड़ा हुआ है। इस बीच इस्लामिक देशों के संगठन ओआईसी समेत संयुक्त राष्ट्र ने भी तालिबान से हथियार डालने और शांति कायम रखने की अपील की है।
आपको बता दें कि तालिबान और अफगान सरकार के बीच हुई वीडियो कांफ्रेंसिंग के बाद तालिबान की तरफ से तीन सदस्यीय दल काबुल आया था। इसका मकसद कैदियों की रिहाई को लेकर तकनीकी बिंदुओं पर बातचीत करना था। इसके बाद ही कैदियों की रिहाई का रास्ता साफ हो सका है। इससे पहले ये रिहाई की शुरुआत 1 मार्च से होनी थी। लेकिन राष्ट्रपति अशरफ गनी ने इसको ये कहते हुए टाल दिया था कि पहले तकनीकी समस्याओं को सुलझा लिया जाए इसके बाद ही कैदियों की रिहाई संभव है। इस बयान के बाद नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल के प्रवक्ता ने तालिबान कैदियों की रिहाई में कुछ समय और लगने की जानकारी दी थी। जहां तक तालिबान की तरफ से हो रहे हमलों का सवाल है तो पूर्व तालिबानी सदस्य मानते हैं कि अपने कैदियों की रिहाई में हो रही देरी की वजह से तालिबान हमलों को अंजाम दे रहा है।
बहरहाल, अब जबकि कैदियों की रिहाई तय हो चुकी है और इसकी शुरुआत भी हो गई है तो भविष्य में तालिबान के कदम क्या होंगे ये दूसरा बड़ा सवाल जस का तस बना हुआ है। जानकारों की मानें तो तालिबान की सारी कवायद सत्ता की तरफ और करीब होने की है। ये मुमकिन हो सकता है कि तालिबान शुरुआत में सरकार के साथ मिलकर काम करे, लेकिन बाद में वह अपनी सरकार बनाना जरूर चाहेगा। हालांकि तालिबान की आहद से अफगानिस्तान की महिलाएं काफी सहमी हुई हैं। गौरतलब है कि कुछ समय पहले ही अमेरिका की पूर्व विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने संयुक्त राष्ट्र में अफगान महिलाओं और अफगानिस्तान की समस्या पर कहा था कि यदि तालिबान सत्ता में आया तो वहां पर महिलाओं को अधिकार देने की जो मुहिम वर्षों से चल रही थी उस पर पानी फिर जाएगा। ऐसा मानने वालों में हिलेरी अकेली नहीं हैं। इस तरह की चिंता अफगान संसद की महिला सांसद फौजिया कूफी भी हैं। कूफी रूस में हुई अमेरिका-तालिबान वार्ता के दौरान वहां पर मौजूद थीं। कूफी ने एक बार कहा था कि जब उन्होंने अफगान महिलाओं के हक को लेकर चिंता जताई तो वहां मौजूद तालिबान के सदस्य उन्हें देखकर हंसने लगे थे। ऐसे में इन सवालों का जवाब मिलना बेहद जरूरी हो जाता है।
आपको बता दें कि जब अफगानिस्तान में तालिबान शासन था तब उसमें महिलाओं पर जबरदस्त अत्याचार किए गए थे। ऐसे में यदि तालिबान दोबार सत्ता पर काबिज हुआ तो क्या वहीं सब दोहराया नहीं जाएगा। ये तीसरा बड़ा सवाल है जिसका जवाब ज्यादातर लोग ना में ही देते हैं। अफगान महिलाओं की सबसे बड़ी चिंता इसी से जुड़ी हुई है। ज्यादातर अफगानी महिलाएं मानती हैं कि तालिबान यदि सत्ता में आया तो उनसे उनकी आजादी छिन जाएगी। गौरतलब है कि तालिबान की सत्ता से बेदखली के बाद ही यहां की महिलाएं आगे बढ़ सकी हैं। वर्तमान में स्कूल से लेकर कॉलेज, जॉब और संसद तक में महिलाओं की मौजूदगी इस बात का जीता जागता सुबूत है।