गुरु नानक साहिब
धर्म को विकृतिविहीन करके उसकी मौलिक चमक प्रदान करने के लिए आगे आना एक नितांत साहसपूर्ण कदम होता है और यह कार्य बिरले ही कर पाते हैं।
धर्म को विकृतिविहीन करके उसकी मौलिक चमक प्रदान करने के लिए आगे आना एक नितांत साहसपूर्ण कदम होता है और यह कार्य बिरले ही कर पाते हैं। इसे बड़े विवेक धैर्य और संयम से फलीभूत करके गुरु नानक देव जी ने युग की धारा को मोड़ दिया और अज्ञान के अंधकार में भटक रहे सदियों से शापित मानव समाज को ज्ञान के प्रकाश से परिपूर्ण करके उसे एक निश्चित दिशा प्रदान की। गुरु नानक देव जी ने धर्म को विचार के साथ ही आचरण से जोड़कर आध्यात्मिक जगत को एक नूतन दृष्टि प्रदान की। उन्होंने कहा कि धर्म सैद्धांतिक चर्चा का विषय नहीं दैनिक व्यवहार का मानदंड है, जिसे बिना संन्यास लिए, बिना वन में जाकर तप किए सामान्य गृहस्थ जीवन व्यतीत करते हुए पाया जा सकता है। इसके लिए मन में प्रेम धारण करना आवश्यक है। मन में परमात्मा के प्रेम का भाव हो तो परमात्मा की कृपा प्राप्त हो जाती है। गुरु नानक साहिब ने कहा कि जो प्रेम के मार्ग पर चलना चाहता है और इस प्रेम मार्ग पर अपना सर्वस्व न्यौछावर करने हेतु उद्यत है वही उनका अनुसरण करने की इच्छा रखे।
मन में ईश्वर को स्थापित कर उसकी शक्ति से हरेक में ईश्वर का रूप देखने की क्षमता ने हजारों-लाखों मन एक दूसरे से जोड़कर सारे भेदभाव ही मिटा दिए। जन-जन को प्रेम का संदेश देने के लिए और परमात्मा को शक्ति से जोड़ने के लिए लंबी और कठिन यात्राओं में उन्हें वर्षो का समय लगा। यातायात और संचार के सीमित साधनों और माध्यमों के बावजूद दूरस्थ और दुर्गम क्षेत्रों में भी पहुंच पाना उनकी अलौकिक शक्ति और संकल्प का द्योतक था। उन्होंने स्वयं को और संगत को परमात्मा से जोड़कर परमात्मा को पाने का जो सहज और व्यावहारिक उदाहरण संसार के सामने रखा वह अतुलनीय और विस्मित कर देने वाला था। उन्होंने सवाल उठाए तो समाधान भी सामने रखे। उन्होंने लोगों को प्रेरित करने के लिए वाणी भी रची, जो पद्य रूप में है और श्री गुरुग्रंथ साहिब में सम्मिलित है।
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