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मैं हूं मेरी पहचान : अपने अनुभवों से सीखा मैंने

युवा पीढ़ी की जिन भारतीय स्त्रियों ने अपने दम पर अलग पहचान बनाई है, उनमें एकता कपूर का नाम महत्वपूर्ण है। उन्होंने जितनी कम उम्र में ख्याति प्राप्त की है, वह किसी को भी हैरत में डाल सकती है। छोटे पर्दे की ऊर्जावान हस्ती एकता कपूर से प्रगति गुप्ता की मुलाकात के खास अंश.. कभी ये हमें रुलाती हैं तो कभी हंसाती हैं, कभी खुद से प्यार कर

By Edited By: Published: Sat, 22 Jun 2013 01:35 PM (IST)Updated: Sat, 22 Jun 2013 01:35 PM (IST)
मैं हूं मेरी पहचान : अपने अनुभवों से सीखा मैंने

युवा पीढ़ी की जिन भारतीय स्त्रियों ने अपने दम पर अलग पहचान बनाई है, उनमें एकता कपूर का नाम महत्वपूर्ण है। उन्होंने जितनी कम उम्र में ख्याति प्राप्त की है, वह किसी को भी हैरत में डाल सकती है। छोटे पर्दे की ऊर्जावान हस्ती एकता कपूर से प्रगति गुप्ता की मुलाकात के खास अंश..

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कभी ये हमें रुलाती हैं तो कभी हंसाती हैं, कभी खुद से प्यार करना और कभी हर मुश्किल का डटकर सामना करना सिखाती हैं। ईश्वर और भाग्य पर पक्का भरोसा करने वाली एकता कपूर बहुत कम उम्र में ही एक ब्रैंड बन चुकी हैं। मुंबई में मुलाकात हुई तो मेरे मुंह से अनायास निकला, अरे आप तो बच्ची जैसी हैं और जब उन्होंने बोलना शुरू किया, मैं यह देखकर आश्चर्य से भर गई कि इस युवा ने जिंदगी में कितना कुछ हासिल कर लिया है। एकता मानती हैं कि किसी के भी जीवन को बनाने में नियति की बहुत बड़ी भूमिका है, लेकिन व्यक्ति को कड़ी मेहनत करने और चुनौतियां स्वीकारने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। अपनी जिंदगी के लिए सिर्फ वही जिम्मेदार है।

आपकी परवरिश फिल्मी माहौल में हुई थी, किस तरह का बचपन था?

बॉम्बे स्कॉटिश स्कूल से मेरी पढ़ाई हुई। वहां फिल्मी दुनिया के कई बच्चे थे। इसीलिए स्कूल में सख्त नियम थे कि सबको समान रूप से ट्रीट किया जाएगा। घर में फिल्मी पत्रिकाएं नहीं आती थीं, क्योंकि उनमें छपा मसाला पढ़कर हम परेशान हो सकते थे। मॉम-डैड बहुत मेहनत करते थे, होमवर्क से लेकर हर बात का ख्याल रखते थे। तब लगता था कि हम बाकी दुनिया से कटे हैं, लेकिन मॉम-डैड का प्रोटेक्ट करने का यह अपना तरीका था।

आपके पिता तो एक्टर रहे हैं, फिर आपने प्रोडक्शन के फील्ड में आने के बारे में कैसे सोचा?

मेरा विश्वास है कि नियति ही हमें कहीं खींचकर ले जाती है। मैं कह सकती हूं कि सब कुछ योजना बनाकर किया, लेकिन यह झूठ होगा। मैं अमेरिकन टीवी बहुत देखती थी। पूरे दिन खाना और टीवी देखना। पापा मुझसे बहुत चिढ़ते थे कि कुछ तो करो जिंदगी में। मैं पार्टी, मौज-मस्ती में ही बिजी थी। अब आउटगोइंग नहीं हूं, लेकिन 16-17 की उम्र में मुझे यह पसंद आता था। वास्तव में मैं समय बर्बाद कर रही थी। बस कॉलेज जाती और पास हो जाती, जबकि भाई का ग्रेड हमेशा अच्छा होता। मुझे समझ नहीं आता कि भाई इतना अच्छा क्यों है..!

प्रोडक्शन में पापा से प्रेरणा ली आपने?

कई घटनाएं हुईं। मैं 80 किलो की थी तब और ऐसा लगता था कि वजन कम करने की जरूरत नहीं है। पापा के दोस्त केतन सोमाया लंदन में थे। उनका एक चैनल था यूके बेस्ड। मेरा सौभाग्य है कि मेरे पिता उन लोगों में नहीं थे जो कहते कि शादी करनी है तो घर बैठो, एंजॉय करो। अच्छा ही हुआ कि पापा का प्रेशर था। मैंने एक कंपनी 'फा प्रोडक्शन' जॉएन की। यह शॉर्ट फिल्में, एड फिल्में और एंटरटेनमेंट कार्यक्रम बनाती थी। मैं कास्टिंग डायरेक्टर के असिस्टेंट की भी असिस्टेंट थी, लेकिन मैं खुश थी कि काम कर रही हूं। मुझे 10 ग्रैंड ही मिले, वह पेट्रोल का खर्च था मेरे लिए। जल्दी ही 30-40 हजार मिलने लगे और मेरा पार्टी खर्च भी निकलने लगा। इसी समय केतन सोमाया का एक मैसेज आया कि वे एब्रॉड के चैनल के लिए कोई सॉफ्टवेयर बना रहे हैं। मैं दिनभर बैठकर टीवी तो देखती ही रहती थी तो डैड ने सोचा कि क्यों न कोई इंडियन टेलीविजन शो बनाऊं विदेशी चैनल के लिए। इस तरह मैं प्रोडक्शन के फील्ड में आई।

मैंने और मॉम ने तय किया कि हम एक छोटा प्रोडक्शन हाउस बनाएंगे और चैनल के लिए कार्यक्रम तैयार करेंगे। हमने कुछ टीवी कार्यक्रम बनाए और चैनल को दिए। उस समय एक्टिंग में डैड का बेहतरीन समय नहीं चल रहा था। फिर भी उन्होंने पैसा दिया और मुझ पर भरोसा किया। 'हम पांच' सीरियल बनाते समय बहुत कम पैसा था हाथ में।

फिर आपने पीछे मुड़कर नहीं देखा..?

बहुत उतार-चढ़ाव आए जिंदगी में। शो फ्लॉप भी हुआ। कंपनी को घाटा हुआ, लेकिन फिर ऐसे ही दौर में अंधेरे में एक बिजली चमकी और मुझे राह मिली। नहीं जानती कि सब कैसे हुआ? लेकिन मैं जिम्मेदारी एंजॉय करने लगी। पापा के पैसे को समझदारी से खर्च करने लगी। सब किस्मत का खेल है। छोटी सी प्रोडक्शन कंपनी थी, शुरुआत में 6-7 लोग थे, सबको सैलरी भी देनी थी, लेकिन मैंने जिम्मेदारी महसूस करनी शुरू की।

बिना किसी फॉर्मल ट्रेनिंग के यह सब मैनेज कैसे किया?

अनुभवों से सीखा। मैं अपने काम का विश्लेषण करती थी। दर्शक कैसे रिएक्ट करते हैं, इससे काफी सीखने को मिलता है। मैं थिएटर में आने वाली हर फिल्म देखती हूं। दर्शकों के रिएक्शन के लिए।

पीछे देखने पर कैसा लगता है?

किस्मत पर भरोसा करती हूं। कई बार एक सी मेहनत के बावजूद नतीजे अलग मिलते हैं। बस अपने काम को एंजॉय करें और जो भी अच्छा या बुरा मिले, उसे स्वीकारें।

कहा जाता है कि आपने छोटे पर्दे की दुनिया बदल दी। इसके लिए इतना साहस कैसे आया आपके भीतर?

मैंने जॉएंट फैमिली नहीं देखी, लेकिन मेरे राइटर जॉएंट फैमिली में रहे हैं और उन्होंने कहा कि यह दिखा सकते हैं। ..जैसे मैंने बा का चरित्र एंजॉय किया, क्योंकि वह मुझे अपनी अम्मा की याद दिलाती थीं। दर्शक ही हमारी प्रेरणा हैं। हमें प्यार करते हैं और इसी से हमें आगे बेहतर करने की प्रेरणा मिलती है। हम उन्हें निराश नहीं कर सकते।

स्क्रीन पर आपने भारतीय स्त्री की बिल्कुल अलग छवि पेश की है। इस बारे में क्या कहेंगी?

मुझे लगता है भारतीय स्त्री ऐसी ही है। मैं शो मनोरंजन के लिए बनाती हूं। मैं चाहती हूं कि इंडियन हाउसवाइफ टीवी के सामने बैठे तो एंजॉय करे। वह क्रेप साड़ी पसंद करती है तो मैं हीरोइन को वैसी ही साड़ी पहनाऊंगी। महत्वाकांक्षाएं और पहचान ये दो चीजें हैं जिनसे दर्शक खुद को जोड़ते हैं। मुझे लगता है कि मुझे हर तरह के जीवन का सम्मान करना चाहिए। मैं उनके प्रति जजमेंटल नहीं हो सकती। मैं नहीं जानती कि उनकी क्या समस्याएं हैं। अगर कोई छोटे शहर से आया है और उसके पास कोई कहानी है तो मैं चाहूंगी कि उसे बेस्ट तरीके से दिखाऊं। हम ऐसी कहानी नहीं दिखा सकते जिससे लोग डिप्रेस्ड महसूस करने लगें। मनोरंजन सुकून का नाम है। हर व्यक्ति देखकर यह सोचे कि यह उसी की कहानी है, लेकिन एक अच्छे ट्विस्ट के साथ।

'द डर्टी पिक्चर' का एक डायलॉग काफी मशहूर हुआ, फिल्में सिर्फ तीन चीजों से चलती हैं एंटरटेनमेंट, एंटरटेनमेंट, एंटरटेनमेंट। आपकी सफलता का राज क्या है?

एंटरटेनमेंट..। सबसे बड़ी चीज है आइडेंटीफिकेशन और एस्पिरेशन। कहीं न कहीं चीजें छूनी चाहिए। हर फिल्म की एक विचार प्रक्रिया होती है। दर्शक को हमारी सोच-प्रक्रिया का पता चले और वह अनुभव मिले..। हर फिल्म का एक इमोशन होता है, वह इमोशन न आए तो फिल्म नहीं चलेगी। डेविड धवन की फिल्में दर्शक फुल एंजॉय करने जाते हैं, तो उनसे यही अपेक्षा भी रहती है। कोई फिल्म शालीन स्टोरी लाइन के साथ चल रही है तो उसका ट्रीटमेंट भी वैसा ही होगा।

आप बहुत धार्मिक हैं। इतनी आस्था का क्या कारण है?

जिस इंसान को 16-17 की उम्र में सफलता मिल जाती है, उसे कहीं न कहीं भावनात्मक संबल की जरूरत तो पड़ेगी ही। किसी पॉइंट पर विश्वास करना पड़ता है कि ईश्वर है, यह सब हमारे हाथ में नहीं है। हम सिर्फ माध्यम हैं। जमीन पर रहें, इसके लिए ऐसा सोचना होगा, ताकि विफल हों तो निरपेक्ष भाव से इसे भी स्वीकार कर सकें। यह ताकत मुझे अध्यात्म देता है। मैं एस्ट्रोलॉजी में विश्वास करती हूं। साथ ही मानती हूं कि कर्म से बड़ा कुछ नहीं है।

स्त्री होने के नाते कोई बाधा आई? कोई भेदभाव हुआ?

आई हैं, आती रहेंगी। जिस दिन सोच लिया कि स्त्री हैं इसलिए ऐसा हो रहा है.. उसी दिन पीछे हट जाएंगे। जिंदगी के हर मोड़ पर कुछ अच्छा है तो कुछ बुरा। कई लोग पूछते हैं कि आपने स्त्री होने के बावजूद इतना हासिल किया तो मैं कहती हूं, स्त्री होने के बावजूद नहीं, स्त्री हूं इसलिए किया। मजबूती तो हम स्त्रियों के डीएनए में है। हम शारीरिक रूप से भले ही कमजोर हों, लेकिन मानसिक तौर पर बहुत मजबूत हैं।

अब तो आपके पिता को कोई शिकायत नहीं होंगी?

अरे नहीं-नहीं, हमारे घर में अभी भी सब मुझे ही बोलते हैं। तुषार इतना प्रॉपर है कि..। मुझे सुनने को मिलता है कि तुम सफल हो गई तो इसका मतलब यह नहीं कि घर में जो मन आए वह करो। घर में नियम से रहना होगा।

एकता कपूर आज टीवी क्वीन हैं। अपनी पहचान पाने का सुख क्या है? पीछे देखने पर क्या महसूस होता है?

बहुत से एक्टर्स, राइटर्स, डायरेक्टर्स यहां से निकले, सफल हुए। जब वे कहते हैं कि हमने बालाजी से शुरुआत की। यही हमारी पहचान है। इसी से आत्मसंतुष्टि मिलती है। मैं चाहती हूं, ज्यादा से ज्यादा लड़कियां काम करें और माता-पिता उन्हें काम करने दें।

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