हम है तो सब कुछ है!
एक ये दुनिया है जो हमारे सामने है। इसे हम देखते है, सुनते है, महसूस करते है। एक दुनिया वह भी है जिसे हम देख-सुन तो नहीं सकते, पर उसके होने का आभास हमें अक्सर होता है। अगर वहां से आती सदा हम किसी तरह सुन सकें तो..
एक ये दुनिया है जो हमारे सामने है। इसे हम देखते है, सुनते है, महसूस करते है। एक दुनिया वह भी है जिसे हम देख-सुन तो नहीं सकते, पर उसके होने का आभास हमें अक्सर होता है। अगर वहां से आती सदा हम किसी तरह सुन सकें तो..
पहले आइआइटी और फिर आइआइएम से डिग्री हासिल करने के बाद कुशाग्र जिंदगी की दौड़ में शामिल हुए तो ऐसे कि फिर ठहरकर सोचने की जरूरत नहीं समझी। कुछ तो खुद अपनी ही महत्वाकांक्षाओं का जाल और कुछ व्यावसायिक व्यस्तताएं.. दोनों ने मिलकर मौका ही नहीं दिया कि ठहरे और सोचें। जितना हासिल करते गए, उससे भी और ज्यादा पाने की ललक इस तरह तारी रही कि उन्होंने खुद को उपलब्धियों के लिए ही बना हुआ मान लिया। लगातार उपलब्धियां हौसला तो जरूर बनाए रखती है, पर जरा सी सतर्कता घटते ही जमीन छीन लेती है। वह भी इससे कैसे बचते! नतीजा पहले तो सीख देने को लेकर पैरेट्स से दूरी हुई, फिर इन्हीं बातों को लेकर ससुराल से भी। धीरे-धीरे करीबी दोस्तों और अंत में पत्नी से भी बातचीत औपचारिक होकर रह गई। आसपास सिर्फ वे लोग बचे जो या तो उनके यसमैन थे या फिर जिनके लिए वे खुद यसमैन थे। झटका तब लगा जब मंदी के दौर में पहले तो कारोबार में बड़ा नुकसान, फिर साथियों से धोखा, हाई ब्लडप्रेशर और आखिरकार हार्ट अटैक..। मुसीबतों का ऐसा सिलसिला किसका हौसला न तोड़ दे!
ऐसे ही वक्त में कुशाग्र को अहसास हुआ कि आदमी कुछ भी हो, पर भगवान नहीं है। यह बिंदु ही उनके घोर भौतिकवादी जीवन में अध्यात्म की किरण लेकर आया। अहसास दिलाया कि भौतिक उपलब्धियां ही इंसान की जिंदगी में सब कुछ नहीं है। इनसे साधन तो जुटाए जा सकते है, सुख हासिल नहीं किया जा सकता। आज वह कहते है, 'सुख उपलब्धियां हासिल करने, उन्हे सहेजने-बढ़ाने से नहीं उपलब्धियों को बांटने के अहसास से आता है। बांटने का यह दायरा जितना बड़ा होगा, सुख का अहसास भी उतना ही सघन होगा।'
कर्मकांड नहीं सोच
ऐसी अनुभूतियां हजारों-लाखों नहीं, करोड़ों लोगों को हुई है। यह अलग बात है कि सबके लिए अनुभूति के कारण और बाद के फैसले अलग-अलग रहे है। वैसे भी धर्म या अध्यात्म का एक सामाजिक पहलू है जरूर, लेकिन मूलरूप से यह मामला निजी ही है। भारतीय ज्योतिष के आचार्य रहे पं. संपूर्णानंद मिश्र का मानना है, 'आध्यात्मिक होने का अर्थ केवल आस्तिक होना, पूजा-पाठ करना या कर्मकांड तक सीमित नहीं है। ऐसे लोग भी हुए है जिनके आस्तिक या नास्तिक होने को लेकर विवाद है, पर उनकी आध्यात्मिकता पर संदेह नहीं है। आध्यात्मिकता कर्मकांड नहीं, सोच का मामला है। ऐसी सोच जो आपके आचरण से जाहिर हो। जब आध्यात्मिकता इस स्तर पर हो, तभी सुख-शांति मिलती है, क्योंकि जब आपको जीवन और जगत के सत्य का सही आभास होता है। ऐसे व्यक्ति का सुख कोई छीन नहीं सकता।'
नहीं पड़ते अकेले
यह तो सच है कि कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति का हर पल साथ नहीं दे सकता। पैरेट्स, बच्चे, दोस्त या जीवनसाथी.. कोई भी हमेशा किसी के साथ नहीं रहता और जिंदगी में कुछ ऐसे पल भी आते है जब किसी की मदद किसी काम नहीं आती। ऐसे समय में यह अहसास ही सुकून देने के लिए काफी होता है कि इस बड़ी दुनिया में मैं अकेला नहीं हूं। कोई है जो हर पल मेरे साथ है। उसे आप देख नहीं सकते, छू नहीं सकते, पर अंतश्चेतना के रूप में उसकी आवाज सुन सकते है। वह हर पल राह दिखाता है और हमेशा साथ निभाता है। यह अनुभूति आपका आत्मविश्वास तो बढ़ाती ही है, एक अलग तरह का सुरक्षाबोध भी देती है।
विश्वास ही नहीं, आश्वस्ति भी
साथ और सुरक्षा का यह गहरा बोध आत्मविश्वास ही नहीं, आत्म-आश्वस्ति भी देता है। आत्म-आश्वस्ति आपको छोटी-बड़ी उपलब्धियों के लिए रैटरेस से बचाती है। फिर आप पूरे सुकून और धैर्य के साथ अपना काम कर पाते है और अधीरता में गलत साधनों का इस्तेमाल नहीं करते। ऐसे लोगों का विकास ठोस होता है।
चिंताओं से मुक्ति
ठोस विकास कई तरह की दुश्चिंताओं से बचाता है। यह तो आप जानते ही है कि दुश्चिंताएं आज कई तरह के रोगों की वजह बन रही है। ये रोग सभी सुख-सुविधाओं के रहते हुए भी जीवन को कठिन तो बना ही देते है, कई बार जानलेवा भी साबित होते है। आध्यात्मिक सोच इन सभी स्थितियों से मनुष्य को बचाती है। बावजूद इसके, अगर कभी किसी संकट में कोई फंस भी जाए तो यह एक मजबूत संबल की तरह काम करती है। इसीलिए इस रंग को कभी कमतर न आंकें। जिंदगी में सभी रंगों के साथ इस रंग को भी पूरी अहमियत देनी चाहिए।
बेहद
आस्तिक हूं मैं
प्राची देसाई, अभिनेत्री
मैं पूरी तरह आस्तिक हूं। मेरा मानना है कि इतने सुंदर संसार की रचना और इसका संचालन करने वाली कोई अलौकिक शक्ति जरूर है। चाहे हम उसे ईश्वर, अल्लाह या गॉड किसी भी नाम से पुकारे, लेकिन उस अलौकिक शक्ति की सत्त को नकारा नहीं जा सकता। प्रकृति के कण-कण में ईश्वर का वास है। आस्था के बिना हम मानसिक शांति की कल्पना नहीं कर सकते।
आध्यात्मिक है तो खुशमिजाज भी रहे
फरीदा जलाल, अभिनेत्री
बचपन से ही मैं धार्मिक माहौल में पली-बढ़ी हूं। मुझे लगता है कि जिंदगी को सही रास्ते पर लाने के लिए अपने धार्मिक उसूलों पर कायम रहना बहुत जरूरी है। समय के साथ अल्लाह के प्रति मेरा यह विश्वास और पुख्ता होता गया। मैं मानती हूं कि अगर आप आध्यात्मिक है तो आपको खुशमिजाज भी होना चाहिए। जिंदगी का हर पल जिंदादिली से जीना चाहिए। मेरी प्रवृ8ि मूलत: आध्यात्मिक है। इसीलिए मेरा मन बेखौफ है। मेरी नजर में जरूरतमंदों की मदद करना ही सच्ची इबादत है।
सदाचार के जरिये भगवान से जुड़ाव
अनुपम खेर, अभिनेता
मैं सदाचरण के माध्यम से स्वयं को भगवान से जोड़ने की कोशिश करता हूं। मुझे बच्चों, वृद्धों और मरीजों में ईश्वर की उपस्थिति का एहसास होता है। मंदिर नियमित जाता हूं, श्रीमद्भगवद्गीता और रामायण पढ़ता हूं। कभी-कभी उपवास भी रख लेता हूं, पर भक्ति के नाम पर आडंबर बिल्कुल पसंद नहीं है। ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि वह हमें सद्बुद्धि दें। बात भाग्य और कर्म की हो तो मैं कर्म को अहमियत देता हूं। मेरे दादा जी कहा करते थे कि अगर इंसान चाहे तो कठोर परिश्रम से अपनी भाग्यरेखा बदल सकता है।
आस्था ने
बढ़ाया मनोबल
लीजा रे, अभिनेत्री
लंबी बीमारी से जूझने के बाद ईश्वर के प्रति मेरी आस्था और दृढ़ हो गई है। मैं बोन मैरो कैंसर से पीड़ित थी। मेरा ट्रीटमेंट कनाडा में हुआ था और जब तबियत थोड़ी संभलने लगी तो मैं बीच-बीच में डैड के साथ इंडिया चली आती थी। यहां मेरे मन को सच्ची शांति मिलती है। यहां हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला स्थित एक मेडिटेशन सेंटर में मैंने विपस्सना सीखी। गायत्री मंत्र के अलावा महामृत्युंजय मंत्र का जप भी करती हूं। अक्सर मैं ऋषिकेश जाती हूं। गंगाजी के तट पर मुझे अद्भुत शांति का एहसास होता है। यह ईश्वर का ही वरदान है कि आज मैं आप सबके बीच हूं।
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