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आओ मिलकर यह मुल्क गढ़े

भारत के सबसे बड़े औद्योगिक घराने की बहू होने के साथ सामाजिक सरोकारों के लिए प्रतिबद्ध स्त्री भी हैं नीता अंबानी। उनका मिशन है शिक्षा से बदलाव और विजन है वह चमकदार भारत, हर महिला के योगदान से लिखी गई हो जिसकी इबारत..

By Edited By: Published: Sat, 16 Mar 2013 12:40 PM (IST)Updated: Sat, 16 Mar 2013 12:40 PM (IST)
आओ मिलकर यह मुल्क गढ़े

भारत के सबसे बड़े औद्योगिक घराने की बहू होने के साथ सामाजिक सरोकारों के लिए प्रतिबद्ध स्त्री भी हैं नीता अंबानी। उनका मिशन है शिक्षा से बदलाव और विजन है वह चमकदार भारत, हर महिला के योगदान से लिखी गई हो जिसकी इबारत..

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देश के सबसे बड़े औद्योगिक घराने की बहू नीता अंबानी बहुआयामी व्यक्तित्व की धनी हैं। प्रतिभाशाली और बेहद खूबसूरत नीता अंबानी पर मां सरस्वती और मां लक्ष्मी दोनों की कृपा है। वह प्रसिद्ध शिक्षाविद् तथा भरतनाट्यम की बेहतरीन नृत्यांगना होने के साथ सफल बिजनेसवूमन भी हैं। वह रिलायंस फाउंडेशन, आईएमजी रिलायंस तथा धीरूभाई इंटरनेशनल स्कूल की चेयरपर्सन और एचएन अस्पताल तथा रिसर्च सेटर की प्रेसीडेंट है। पिछले 12 वर्षों से शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण, खेलकूद तथा भारतीय कलाक्षेत्र में उनका योगदान काबिलेतारीफ है। सामाजिक सरोकार के साथ ही उनकी पहली प्राथमिकता है परिवार। उनसे बातचीत में महसूस हुआ कि देश के सबसे बडे़ औद्योगिक घराने की बहू होकर भी उनमें गजब की सादगी, शालीनता और भारतीय संस्कार भरे हुए हैं। उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश

आप एक प्रख्यात एजूकेशनिस्ट हैं। यह लगाव आपमें कब जागा?

मेरे अभिंभावकों ने बचपन से ही शिक्षा की अहमियत बताई थी। विवाह के पश्चात् मैंने स्कूल टीचर बनने की ख्वाहिश पापाजी और मुकेश को जतायी। दोनों लोगों ने मुझे आगे बढ़ने की प्रेरणा दी। मैंने कुछ समय तक मुंबई की एक पाठशाला में टीचर बनकर पढ़ाया। कुछ सालों बाद धीरूभाई अंबानी स्कूल का मेरा सपना साकार हुआ। इस पाठशाला के अलावा शिक्षा से संबंधित काफी सारी गतिविधियां पाइपलाइन में हैं, जिसमें एक यूनिवर्सिटी भी रिलायंस फाउंडेशन के तहत हम आरंभ करना चाहते हैं।

इन दिनों एजूकेशन का समानार्थी शब्द बन गया है काम्पिटीशन। आप क्या सोचती हैं इस बारे में?

मेरे लिए एजूकेशन सिर्फ पढ़ने-पढ़ाने का माध्यम नहीं, बल्कि बदलाव का एक अहम् अस्त्र है। ग्रेजुएशन जो हमारी पीढ़ी ने किया और आने वाली पीढि़यां करेंगी, उसमें काफी अंतर होगा। बच्चों को कुछ इस तरह से प्रशिक्षित करना पडे़गा कि वे काम्पिटीशन तथा सारे संभावित मौकों के लिए खुद को पूरे आत्मविश्वास तथा उत्साह से तैयार करें।

विश्वभर में आपके सपनों की पाठशाला 'धीरूभाई अंबानी इंटरनेशनल स्कूल' की ख्याति पहुंच चुकी है। इसकी कौन सी विशेषताएं इसे अन्य पाठशालाओं से अलग करती हैं?

मैं चाहती हूं, हमेशा से चाहती रही कि पाठशाला में जब बच्चे आएं तो खुशी से आएं। पाठशालाओं का माहौल खुशगवार हो। शिक्षक, अन्य कर्मचारी और अभिभावक भी पाठशाला से संतुष्ट हों। विश्व की अच्छी पाठशालाओं से हमारी पाठशाला मेल खाए। हां, हमारी पाठशाला बच्चों में भारतीय संस्कृति के बीज बोए, उन्हें भुलाए नहीं। अभिंभावक बच्चों को हमारी पाठशाला में पढ़ाने के लिए लालायित रहें और ऐसी पाठशाला हो जो शिक्षकों को भी पढ़ाने का सृजनात्मक आनंद प्रदान करे। यह एक रोमांचक सफर था मेरे लिए। एक मुश्किल से सपने को देखना। फिर उसे पूरा करने की जद्दोजहद में जी-जान एक करना..। इस सफर ने मुझे कृतार्थता की भावना दिला दी। हमारे रिजल्ट्स इतने प्रभावकारी होते हैं कि इस पाठशाला के स्नातक बच्चों को विश्वभर में प्लेसमेंट मिल जाती है।

आपमें भरतनाट्यम का हुनर है। इस कला में आप कैसे और कब माहिर होती गईं.. इस बारे में बताइए?

बचपन में मैं पढ़ाई-लिखाई में तेज थी, पर साथ-साथ डांस और तैराकी मेरी हॉबीज थीं। दरअसल मेरी परवरिश मध्यमवर्गीय परिवार में हुई। हमारी जिंदगी बहुत अच्छे से गुजरती थी। सुख तो था, पर दुनियाभर की सुविधाएं नहीं थीं। मुझसे कहा गया कि मैं डांस या तैराकी में एक को चुन सकती हूं। मैंने डांस को चुना। पांच साल की उम्र से मैं भरतनाट्यम सीखने लगी। डांस से जैसे मेरा जीवनभर का नाता जुड़ गया..। दरअसल नवरात्र के एक कार्यक्रम के दौरान मेरी डांस परफार्मेन्स मेरे ससुरजी श्रीधीरूभाई अंबानी ने देखी.. और तत्पश्चात् मुझे मुकेश से शादी का प्रपोजल मिला, जो मेरे साथ-साथ मेरे परिवार के लिए भी आश्चर्य की बात थी..। खैर, इसी डांस ने मुझे अंबानी परिवार की बहू बनाया.. और मुकेश मेरे जीवनसाथी बने। आज भी मैं रोज सुबह जल्दी उठती हूं ताकि रोजाना डांस के रियाज से दिन शुरू कर सकूं।

आपने जैसा कहा, आप दोनों ख्वाब भी एक सा देखते हैं तो एक-दूसरे के लिए क्या सपने बुनते हैं आप दोनों?

हम दोनों की सोच के अनुसार अपने महान देश में हमें असीम संभावनाएं नजर आती हैं। मुकेश अक्सर कहते हैं कि अपना देश लाखों मुसीबतों की जननी नहीं, बल्कि यह मातृभूमि है असीम संभावनाओं की। मुझे भी लगता है हम नवभारत का निर्माण कर सकते हैं, यदि सारे देशवासियों के विचारों और सोच का सही और उपयुक्त तरीके से इस्तेमाल हो जाए। मुकेश रिलायंस को बेहद उम्दा बनाना चाहते हैं, एक ऐसा बिजनेस हाउस, एक ऐसी औद्योगिक संस्था जो विश्व पटल पर हो। वे आए दिन कल्पना करते हैं कि अपने देश का पुनर्जन्म हो रहा है, एक नया समृद्ध भारत जन्म ले चुका है। मुकेश की तरह मैं भी सोचती हूं कि करोड़ों देशवासियों का रिलायंस फाउंडेशन के तहत सामाजिक रूपांतरण हो और सामाजिक सोच बदले। मैं चाहती हूं हम दोनों के सपने साकार हों.. और हां, एक व्यक्तिगत बात कहूं तो हम दोनों अपने बच्चों के लिए रोल मॉडल रहना चाहते हैं। देश के साथ बच्चों की निगाह में भी हम आदर्श माता-पिता बने रहना चाहते हैं।

आप दोनों काफी व्यस्त रहते हैं। एक-दूसरे के लिए कैसे समय निकालते हैं?

व्यस्तता जीवन का ही हिस्सा है। फिर भी हम एक-दूसरे के साथ क्वालिटी टाइम गुजारते हैं। कभी घर पर कभी बाहर। कभी सफ र करते समय या कभी छुट्टियों पर। उनके पास इतना काम है कि वह घर लेट आते हैं। उन्हें आने में कितना भी विलंब हो, पर हम दोनों डिनर एक साथ ही करते हैं। लिहाजा डिनर स्पेशल बन जाता है। हम दोनों छुट्टियों में निकलते हैं तो भारत या फि र अफ्रीका के जंगलों में घूमने चल पड़ते हैं। इन हॉलिडेज पर हम एक-दूसरे के साथ अच्छा खासा वक्त बिताते हैं।

कहां घूमने जाते हैं?

भारत में रणथंभोर, कान्हा, मधुमलाई आदि के साथ अफ्रीका के जंगल। मुकेश को कुदरती खूबसूरती से भरी जगह बेहद भाती हैं। ऐसी जगह ताजगी देती हैं.. प्रकृति के करीब जाने पर हम ईश्वर के प्रति के नतमस्तक हो जाते हैं। सुकून से भरे ये स्थल मुकेश के साथ हमारे छोटे बेटे अनंत को भी प्रिय हैं। ही इज ए एनिमल लवर टू।

अपने बचपन से जुड़ी हुई कुछ यादें बताएंगी..?

जी हां, मुंबई के एक उपनगर में हमारा पारंपरिक संयुक्त परिवार रहता था। मैं और मेरी बहन ममता दलाल के अलावा नौ और चचेरी बहनें थीं और केवल एक चचेरा भाई था। मेरे पांच चाचा-चाची, दादा-दादी सभी एक ही घर में रहा करते थे। परिवार की लड़कियों को लड़कों की तरह ही समानता भरी आजादी दी गई थी। सबका कहना था अपने ख्वाबों को पूरा करो, पर जो करो उसमें बेहतर परिणाम हासिल करो। मेरी दादी काफी प्रोग्रेसिव थीं और दादाजी फ्रेंच भाषा के प्रोफेसर। मेरी बा पूर्णिमा बेन अनुशासन के मामले में कड़ी थीं, पर उतनी ही प्यारी.. हम बेटियों को उन्होंने सारी कलाएं पढ़ने की आजादी दी। शाम के समय सभी एक साथ बैठते थे, बातचीत-हंसी-मजाक का माहौल होता था। एक तरह से कहूं तो घर का माहौल किसी उत्सव से कम नहीं होता था, जिसमें परिवार का हर सदस्य शामिल होता था। अब जब मैं पीछे मुड़कर देखती हूं.. मुझे अहसास होता है कि मेरी परवरिश की उन्हीं जड़ों ने मुझे एक परिपूर्ण स्त्री बनाया। मेरी मुकम्मलता में मेरे परिवार का योगदान था और है। हम सभी बच्चे पेड़ों पर चढ़ते थे, कुएं से पानी भरते थे.. हमारे घर के आंगन में ही कुआं था। पेट्स पालने की आदत भी उन्हीं दिनों की देन है। आज वे दिन परीकथाओं की भांति लगते हैं..।

कोर्टशिप वाले दिनों में आपने मुकेशजी से कहा था कि वे कभी-कभी आपके साथ बस से सफर करें। क्या यह सच है?

जी.. मैं मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखती थी। सो अक्सर बस से सफर करती थी। मुझे पब्लिक ट्रान्सपोर्ट से सफर करने की आदत थी। बहरहाल, मुकेश जब मुझे पिकअप करने आते थे तो अपनी मर्सिडीज से आते थे। एक दिन मैंने उनसे कहा कि अब आप मेरे साथ बस में बैठकर सफर करें। मुकेश मान गए..। फिर हम दोनों डबल डेकर बस की ऊपरी मंजिल की एक सीट पर बैठकर सफर करने लगे। मैंने कहा यह सीट पाने के लिए थोड़ी मेहनत करनी पड़ती है, क्योंकि सभी इस सीट के कायल होते हैं.. इसमें बैठकर समुंदर का नजारा देखना एक खास बात होती थी..। हम दोनों उस सीट पर सफर करने के बाद ठेलों पर लगी चाट खाया करते थे।

सुना है माटुंगा के मैसोर कैफे में मुकेशजी को खाना पसंद है..? वैसे मुकेशजी क्या खाना पसंद करते हैं?

वेल.. ही लव्ज ट्रेडिशनल फूड.., पर इसके साथ उन्हें इडली, सांभर, बटाटा वड़ा बहुत भाता है। उन्हें मुंबई का रोड साइड खाना भी अच्छा लगता है..। मुकेश कॉलेज के दिनों में मैसोर कैफे में अक्सर जाया करते थे। उनकी ही पसंद का मेन्यू मैंने अपने प्राइवेट प्लेन्स में रखवाया है।

आप दोनों की शादी के बाद की पहली चुनौती कौन सी रही?

ऑफकोर्स जामनगर.. यह पहला प्रोजेक्ट था, जो शादी के बाद मैंने मुकेश के साथ मिलकर किया। उससे पहले मैं बतौर टीचर काम करती रही। मुकेश ने मुझ पर विश्वास करते हुए बंजर जमीन का एक टुकड़ा सौंपते हुए उसे ओएसिस में परिवर्तित करने को कहा..। रिलायंस के 5,500 कर्मचारियों के परिवारों की रहने की बहुत अच्छी सुविधा करने को कहा। यह काफी मुश्किल काम था मेरे लिए..। कारण, तीनों बच्चे छोटे थे। मैं मुंबई सुबह 6.30 बजे छोड़ देती थी और रात को बच्चों के सोने से पहले मैं उनके पास फिर हाजिर हो जाया करती थी। जामनगर सप्ताह में दो बार जाना तय था और मैंने एक रेगिस्तान को गुलशन बनाया। एक ऐसा रेजीडेंशियल कॉम्प्लेक्स तैयार किया जो पर्यावरण के संदर्भ में भी अंतरराष्ट्रीय मानकों पर खरा उतरता है। इस सफल प्रोजेक्ट के पश्चात् मुकेश मुझे जिम्मेदारियां देते गए। संभवत: उसी विश्वास पर आज मैं मुकेश के कंधे से कंधे मिलाकर उनके हर प्रोजेक्ट पर काम कर रही हूं.. रिलायंस फाउंडेशन तथा क्रिकेट टीम मुंबई इंडियन्स इसी का नतीजा है।

देश में मुकेशजी अव्वल हैं। दुनिया में भी पहले पच्चीस नामी उद्योगपतियों में एक हैं.. पर घर में बॉस कौन है आप या मुकेशजी?

हर भारतीय परिवार की तरह हमारे घर में भी मैं ही घर चलाती हूं..। एंतालिया की कमान मेरे हाथों में है.., लेकिन हर अहम् निर्णय मुकेश तथा बच्चों के साथ मिलकर ही लिया जाता है।

गृहिणी होने के नाते आपको भी आम महिलाओं की तरह बजट बनाने की आवश्यकता पड़ती है?

जी हां.. मैं भी बजट बनाती हूं..। मेरा घर का बजट सप्ताह का होता है.. लेकिन किचन का मेन्यू मैं हर दिन खुद किचन में जाकर तय करती हूं।

आप बरसों से कामकाजी हैं। आपने कैसे बैलेंस किया परिवार तथा काम को? मॉडर्न कामकाजी महिलाएं आपसे जानना चाहती हैं आपके मंत्रा के बारे में?

यदि काम करने की ललक है, पैशन है तो काम आपको काम नहीं लगेगा। हां, पारिवारिक जिम्मेदारियां हर महिला को अमूमन निभानी पड़ती हैं। यदि मैं अपनी बात करूं तो मुझे मेरे काम ने आत्मविश्वास दिलाया.. कमिटमेंट की शक्ति सिखायी। मैंने अपने काम को एंजॉय किया। जिस वक्त जो प्रायरिटी हो, वैसे काम करें महिलाएं। मेरे लिए मुकेश बेहद अच्छे पति और सर्पोटिव रहे हैं। बच्चे जैसे बडे़ होते गए, मेरी कॅरियर से संबंधित जिम्मेदारियां बढ़ती गईं। सफल होना है तो महिलाओं को टाइम मैनेजमेंट सीखना होगा। कभी परेशानियों का सामना करना पडे़गा.. पर थकें, हारें नहीं.. मूव ऑन। महिलाओं को कांच की बाल नहीं, रबड़ की बाल बनना पडे़गा.. रबड़ बाउंस होती है.. कांच टूट जाता है।

मुंबई इंडियन्स के साथ अपने रोल पर कुछ रोशनी डालें?

मुकेश के आईपीएल फ्रेंचायजी खरीदने से लेकर आज तक का सफर बेहद रोमांचक रहा है। हमारी मुंबई इंडियन्स की टीम के लिए आरंभ के दो साल अच्छे नहीं रहे..। फिर मैंने टीम मैनेजमेंट की बागडोर संभाली.. और टीम की परफॉर्मेन्स के साथ मेरी जानकारियां-ज्ञान-अनुभव सब दायरे बढ़ते गए। मैंने इस सफर को खूब एंजॉय किया..। सच कहूं तो आरंभिक समय में मुझे क्रिकेट की कोई खास जानकारी नहीं थी.. मुझे तो एबीसीडी सीखनी पड़ी। प्लेयर्स, नियम, बालिंग-बैटिंग के उसूल, खेल की स्ट्रेटजी.. इस खेल की सारी जानकारियां हासिल करने के लिए न जाने मुझे क्या-क्या पापड़ बेलने पडे़..। मैं कई बार अपने टीम मेंबरों से बेवकूफी भरे सवाल पूछ बैठती थी..। फिर कई-कई घंटे स्टेडियम में गुजारने लगी, अधिक से अधिक मैचेज देखने लगी ताकि मेरी नॉलेज बढे़। यादगार लम्हा तो तब आया जब चैंपियन्स लीग 2011 हमने जीता। किसी ने कल्पना नहीं की थी, हम जीत पाएंगे.. पर सच तो कल्पना से परे होता है। आज मेरा प्रिय खेल क्रिकेट है। देश में मुंबई इंडियन्स नंबर वन ब्रैंड है और एक टॉप ग्लोबल ब्रैंड भी।

महिलाओं के लिए क्या संदेश देना चाहेंगी? पुनर्जन्म मिलने पर लड़का या लड़की क्या होना चाहेंगी?

देश के आर्थिक विकास में महिलाओं का योगदान संभावनाओं से परिपूर्ण है। समाज को बनाने का काम उन्हीं का है। यदि भारत को हमें विश्व स्तर पर ले जाना है तो हर हाल में महिलाओं का शत-प्रतिशत योगदान लेना होगा। उन्हें आगे बढ़कर एजूकेशन जैसे क्षेत्र में उत्तम कार्य करना होगा। आने वाले समय में मैं देखना चाहूंगी कि देश की अधिक से अधिक महिलाएं आर्थिक ताकत बढ़ाने में आगे बढे़ं। एक स्त्री ही मां, पत्नी, बेटी, बहू जैसे अनेक रूप सक्षमता से निभाती है.. जैसे मैंने शिद्दत से निभाए.. लिहाजा मेरा पुनर्जन्म अगर होता है.. तो एक बेटी के रूप में ही हो..।

आप और मुकेशजी के विवाह को 29 वर्ष बीत चुके हैं। कैसा रहा यह अद्भुत सफर, जिसका जादू और करिश्मा अब तक बरकरार है?

मुकेश और मैं एक-दूसरे के साथ अतुल्य रिश्ते से जुड़े हैं। हम दोनों ने एक सा ख्वाब संजोया है, हम दोनों की सोच काफी हद तक एक-सी है। हम अपने कारोबार के बारे में, घर-परिवार, बच्चों और अपने देश के प्रति भी एक जैसी धारणा रखते हैं। वैसे, हमने एक-दूसरे से काफी सीखा है और प्रेरणा भी ली है। एक-दूसरे का साथ पाकर हमें शक्ति प्राप्त होती है। एक-दूसरे का प्यार हमारे बीच एक मजबूत सेतु बन चुका है। मैं खुद को बेहद भाग्यशाली मानती हूं, जो मुझे मुकेश में ऐसा पति मिला है, जिसमें मैंने हमेशा एक सहृदय मित्र भी पाया। एक ऐसा मित्र जिसने मुझे हमेशा प्रेरणा दी और मेरे हौसले बुलंद किए।

एजूकेशन के अलावा ग्रामीण बदलाव, शहरों में नवीनता, सुधार, स्वास्थ्य, कला-संस्कृति को बढ़ावा, इन सभी पर काम करते हैं हम। रिलायंस फाउंडेशन रचनात्मक कामों से जुड़ चुका है और इसके अंतर्गत हमने काफी सारे उपक्रम आरंभ किए हैं। इनमें एक है, भारत-इंडिया जोड़ो पहल। इस योजना के तहत हमने 18,500 किसानों को जोड़ा है, जो 10 राज्यों में फैले हुए थे। इन किसानों को उनकी खेती के लिए आवश्यक सुविधाएं तथा सामग्री मुहैय्या करवाते हैं। बेहतर स्वास्थ्य के लिए हमने मुंबई के सर एचएन अस्पताल को नयी आधुनिक तकनीक से बनाया है, जिसमें विश्व की सारी स्वास्थ्य सुविधाएं कम कीमत में लोगों को उपलब्ध होंगी। बहुत जल्द यह अस्पताल आरंभ होगा। रिलायंस फाउंडेशन ने हाल ही में ब्रिटिश म्यूजियम तथा छत्रपति शिवाजी महाराज संग्रहालय के साथ मिलकर एक पुरस्कार प्रदर्शनी आयोजित की थी। ममी-द इनसाइड स्टोरी नामक यह आयोजन भारत में पहली बार हुआ। इस प्रदर्शनी को देखने तीन लाख लोग आए, जिसमें करीब 40,000 बच्चे भी थे, ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरून भी इस प्रदर्शनी को देखने आए थे। मेरे दिमाग में और भी कई सारी योजनाएं है, जिन पर सोच-विचार चल रहा है.. यह अर्थपूर्ण सफर भारत को नया स्थान दिलाएगा..।

पूजा

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