2014 एशिनय गेम्स में 28 वर्ष बाद योगेश्वर ने भारत को दिलाया था गोल्ड मेडल
2014 एशियन गेम्स में योगेश्वर दत्त ने भारत के लिए गोल्ड मेडल जीता था।
सुनहरी यादें :
मारुति माने, चंदगी राम, राजिंदर सिंह, सतपाल और करतार सिंह ये भारत के ऐसे पहलवान रहे हैं जिन्होंने देश को एशियन गेम्स में पुरुष फ्री स्टाइल कुश्ती में में स्वर्ण पदक दिलाए। 1986 में करतार सिंह के स्वर्ण जीतने के बाद भारतीय पहलवान एशियन गेम्स में स्वर्ण जीतने को तरस गए। सोने के इस सूखे को 28 साल बाद योगेश्वर दत्त ने 2014 एशियन गेम्स में स्वर्ण पदक जीतकर दूर किया। योगेश्वर से योगेश शर्मा ने खास बातचीत की। पेश है मुख्य अंश :
- आपका पहला एशियन गेम्स 2006 में था। तब आपका अनुभव कैसा रहा था?
- 2006 एशियन गेम्स मेरे लिए बहुत मुश्किल रहे। टूर्नामेंट शुरू होने से पहले मेरे पिता का देहांत हो गया था और जब टूर्नामेंट शुरू हुआ तो मैं चोटिल हो गया, लेकिन इसके बाद भी मैं कांस्य पदक जीतकर लाया। लेकिन, मेरे पिता का सपना था कि मैं स्वर्ण जीतूं और मैं उस सपने को पूरा करना चाहता था।
- पिता के देहांत के बाद वापसी करना कितना मुश्किल रहा?
- मैंने तैयारी अच्छी की थी, लेकिन पिता के जाने से मैं टूट गया था। तब मेरे करीबी मास्टर सतबीर ने मुझे समझाया कि जो चला गया वह वापस नहीं आ सकता, लेकिन उसके सपने को पूरा किया जा सकता है। इसके बाद मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और हर समय सीखने की कोशिश की और कड़ी मेहनत की। इसका फल मिला और मैं निरंतर बड़े टूर्नामेंटों में पदक जीतता चला गया।
- लंबे समय के बाद जब आपने देश को स्वर्ण दिलाया तो किस तरह का माहौल था?
- एशियन गेम्स काफी मुश्किल लक्ष्य होता है। 2014 में भी मेरे सभी मुकाबले काफी मुश्किल थे। 2012 ओलंपिक में पदक जीतने के बाद मुझसे उम्मीदें बढ़ गईं थीं। 2014 कॉमनवेल्थ गेम्स में भी मैंने स्वर्ण जीता, लेकिन जब मैंने 2014 में एशियन गेम्स में स्वर्ण जीता तो 28 साल बाद देश को यह पदक मिला था। इस खुशी को मैं बयां नहीं कर सकता। जब मैं पोडियम पर खड़ा था। जब राष्ट्रगान बजने लगा तो मैं भावुक हो गया और खुशी में मेरे आंसू बह निकले। मुझे लगा, मैंने देश के अधूरे सपने के साथ ही अपने पिता का भी सपना पूरा कर दिया। इसके बाद लोगों से मुझे काफी मान-सम्मान और प्यार मिला।
- बजरंग आपके शिष्य है और देश को उनसे स्वर्ण की उम्मीद है?
-बजरंग में ओलंपिक पदक जीतने की क्षमता है। वह टोक्यो ओलंपिक की उम्मीद है। वह 2008 से मेरे साथ है। उसने बहुत मेहनत की है। उसके अंदर सीखने की भूख है। जो भी चीज उसे बताई जाती है वह उसे जल्दी पकड़ लेता है। उम्मीद है कि वह देश के लिए स्वर्ण जीतेगा। वह सिर्फ 24 साल का है और उसके आगे के रास्ते खुले हैं। ओलंपिक पदक छोड़ दिया जाए तो उसके पास सभी पदक हैं। देश को बजरंग से काफी उम्मीदें है।
- इस बार कुश्ती टीम में सुशील और साक्षी के रूप में ओलंपिक पदक विजेता हैं। इस टीम से क्या उम्मीदें हैं?
- बजरंग के अलावा सुशील और संदीप तोमर अच्छे पहलवान हैं। छोटे भार वर्ग में हमेशा पहलवान अच्छे निकले हैं लेकिन अब समय बदला है और बड़े भार वर्ग में भी पहलवान आ रहे हैं। मौसम खत्री और सत्यव्रत भी अच्छे पहलवान हैं। यह टीम अच्छी है। लड़कियों में साक्षी और विनेश से पदक की उम्मीद है। लेकिन, सब इस पर निर्भर करता है कि उस दिन वे कैसा प्रदर्शन करते हैं।