देश के लिए पदक जीतना सबसे बड़ी खुशी: बजरंग पूनिया
विश्व चैंपियनशिप और ओलंपिक के मुकाबलों में फर्क नहीं होता।
नई दिल्ली, जेएनएन। विश्व कुश्ती चैंपियनशिप में रजत पदक जीतने वाले बजरंग पूनिया भारत के पहले ऐसे पहलवान बन गए हैं जिन्होंने विश्व चैंपियनशिप में दो बार पदक जीते हैं। सोमवार देर रात हुए फाइनल मुकाबले में जापान के पहलवान ताकुतो ओतोगुरो से 16-9 से हार के साथ रजत पदक पर संतोष करना पड़ा।
जकार्ता एशियन गेम्स में स्वर्ण जीतने के बाद खेल रत्न अवॉर्ड नहीं मिलने के बावजूद इस स्टार पहलवान ने हार नहीं मानी। बजरंग से फोन पर अनिल भारद्वाज ने बातचीत की। पेश हैं मुख्य अंश-
जकार्ता एशियन गेम्स में स्वर्ण पदक के बाद खेल रत्न अवॉर्ड नहीं मिला। तब माना जा रहा था कि इसका असर हंगरी विश्व चैंपियनशिप में दिखेगा?
अवॉर्ड को लेकर मैंने अपना हक जताया था और वह मेरा अधिकार था लेकिन अवॉर्ड नहीं मिलने से मैं विचलित नहीं हुआ। मैंने उसी समय विराट कोहली को अवॉर्ड की शुभकामनाएं देकर हंगरी की तैयारी में लग गया था क्योंकि मेरा मानना है कि देश का नाम विश्व में प्रसिद्ध हो, यह किसी अवॉर्ड ये ज्यादा जरूरी है और खुशी देता है। हां, मुझे अवॉर्ड मिलता तो कुश्ती प्रेमियों को जरूर खुशी होती।
विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण तक पहुंचने के लिए आपने उन देशों के पहलवानों को हराया है जो दुनिया में कुश्ती के लिए जाने जाते हैं। इतनी शानदार कामयाबी का राज?
हंगरी की तैयारी के लिए मेरे गुरु व बड़े भाई योगेश्वर दत्त का बड़ा योगदान था। विश्व चैंपियनशिप में शुरुआत हंगरी के पहलवान के साथ हुई जिसको मैंने 9-4 से हराया। उसके बाद कोरिया के पहलवान को 4-0 और क्वॉर्टर फाइनल में मंगोलिया के पहलवान को 5-3 के अलावा सेमीफाइनल में क्यूबा के पहलवान के कड़ा मुकाबला रहा लेकिन मैं 4-3 से जीतने में कामयाब रहा। क्यूबा का पहलवान 2017 विश्व चैंपियनशिप में कांस्य पदक विजेता था।
यह वर्ष आपके लिए कामयाबी भरा रहा। टोक्यो ओलंपिक की तैयारी में हंगरी का पदक कितना फायदेमंद रहेगा?
विश्व चैंपियनशिप और ओलंपिक के मुकाबलों में फर्क नहीं होता। जब आप विश्व चैंपियनशिप में पदक जीतते हैं तो आने वाली बड़ी प्रतियोगिताओं के लिए तैयारी आसान हो जाती है।