तिब्बत की इस बेसहारा लड़की ने भारत को दिलाए मेडल, पहचान के लिए अब भी जूझ रही तेंजिन पेमा
भारत में बॉक्सिंग की कठिन चुनौती को देखते हुए उसने मिक्स्ड मार्शल आर्ट में खेलने का फैसला किया जहां उन्हें बहुत सारी सफलताएं मिली।
नई दिल्ली, जेएनएन। तिब्बत मूल की मिक्स्ड मार्शल आर्ट चैंपियन तेंजिन पेमा अब किक बॉक्सिंग की दुनिया में किसी पहचान की मोहताज नहीं है। हाल ही में उन्होंने बैंकॉक में हुए तीसरे अंतरराष्ट्रीय थाई मार्शल आर्ट्स गेम्स और फेस्टिवल में भारत के लिए किक बॉक्सिंग प्रतिस्पर्धा में दो रजत पदक जीते और इसके पहले भी वह कई पदक जीत चुकी हैं।
बेसहारा होने के बावजूद नहीं हारी हिम्मत
तेंजिन भारत की एकमात्र ऐसी किक बॉक्सर है जो मूल रूप से तिब्बत की हैं। कई साल पहले उनके माता-पिता सुनहरे जीवन की खोज में सिक्किम आकर बस गए थे। तीन साल की उम्र में अपनी मां को खोने वाली तेंजिन के सर से पिता का साया भी जल्दी ही उठ गया। बचपन से ही मुहम्मद अली के वीडियो देखने वाली तेंजिन के भीतर बॉक्सिंग करने का शौक पैदा हो चुका था। तेंजिन ने 2013 में स्कूल स्तर पर मुक्केबाजी प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेना शुरू किया। इसके बाद उन्हें भारत सरकार के खेलो इंडिया पहल के जरिये पहचान मिली।
पहचान के लिए जुझ रही है पेमा
भारत में बॉक्सिंग की कठिन चुनौती को देखते हुए उसने मिक्स्ड मार्शल आर्ट में खेलने का फैसला किया जहां उन्हें बहुत सारी सफलताएं मिली। बेशक भारतीय खेल प्राधिकरण तेंजिन को अभ्यास करने के लिए मुफ्त सुविधा मुहैया करा रहा हो लेकिन आज भी उन्हें भारतीय नागरिकता दिलाने को लेकर संस्थान ने कोई कदम नहीं उठाया है। उसे आज भी विदेशों में खेलने के लिए तिब्बत के रिफ्यूजी पासपोर्ट के जरिए वीजा लेना पड़ता है, जिसमें कई परेशानियां होती हैं। इसके अलावा तेंजिन कहती है कि देश के लिए मेडल लाने वाले दूसरे खेलों के खिलाड़ियों को पुरस्कार और नौकरी दी जाती हैं, लेकिन मुझे इससे वंचित रखा गया है।