संघर्ष से भरी है एशियाड गोल्ड मेडलिस्ट 16 वर्षीय सौरभ की कहानी
कुमार शेरॉन याद करते हैं कि उन्होंने 2011 में बिनौली में एक शूटिंग रेंज खोली, जहां चार वर्ष पहले सौरभ के हुनर पर नजर पड़ी।
मेरठ, संतोष शुक्ल। बात 2012 की है। दिल्ली के तुगलकाबाद स्थित डॉ. कर्णी सिंह शूटिंग रेंज में साढ़े नौ साल का बच्चा दिग्गजों से बेहतर निशाना लगा रहा था। बच्चे की लंबाई बंदूक से भी कम थी। ओलंपिक पदक विजेता राज्यवर्धन सिंह राठौर मुग्ध होकर इस होनहार का पांच मिनट का वीडियो बनाते हैं, लेकिन नेशनल राइफल एसोसिएशन ऑफ इंडिया के पदाधिकारियों की नजर पड़ने से सबकुछ गड़बड़ हो गया। 12 वर्ष से कम उम्र थी, इसलिए प्रतिबंध लगा दिया गया।
रोता-छटपटाता बच्चा दो साल तक घर पर शीशे के आगे खड़े होकर बिना गोली प्रैक्टिस करता रहा। आज वही बालक शार्दुल विहान एशियाड के डबल ट्रैप शूटिंग प्रतियोगिता में सबसे कम उम्र का पदकधारी है। बीते एशियाड में 15 वर्षीय शार्दुल ने रजत पदक देश को दिलाया। वह ओलंपिक में स्वर्णिम निशाना साधने की भीष्म प्रतिज्ञा के साथ आगे बढ़ रहा है।
मेरठ शहर की सीमा में स्थित सिवाया गांव निवासी शार्दुल ने सात साल की उम्र में क्रिकेट खेला। जल्द ही ऊब गया। इसके बाद पिता ने बैडमिंटन में उतार दिया। कोच ने लेटलतीफी पर फटकार दिया, इसके बाद वहां भी बात बिगड़ गई। शार्दुल कहते हैं कि घर वालों ने पढ़ाई पर फोकस करने के लिए कहा। उसने शूटिंग के लिए हठ किया तो घर वालों ने भी उसकी इच्छा का सम्मान किया।
अर्जुन अवार्डी अनवर सुल्तान ने साढ़े नौ साल के शार्दुल के अंदर छिपी प्रतिभा की पहचान की और उसे आगे बढ़ने का साहस दिया। 2012 में साढ़े नौ वर्ष की उम्र में नॉर्थ जोन में पदक जीतने में कामयाब रहा।
अंतरराष्ट्रीय शूटरों को हराने के बाद भी कम उम्र और भारी बंदूक देखते हुए राइफल एसोसिएशन ने उस पर दो साल का प्रतिबंध लगा दिया। इसके बाद शार्दुल बहुत रोया, लेकिन वह टूटा नहीं। परिवार भी डटकर साथ खड़ा हुआ। मेरठ से दिल्ली स्थित डॉ. कर्णी सिंह शूटिंग रेंज तक का रोजाना 120 किलोमीटर के थका देने वाले सफर के बावजूद हौसला कम नहीं होने दिया।
डबल ट्रैप इवेंट ओलंपिक से हटा दिया गया है। इसके चलते यह होनहार निशांची ट्रैप में नए सिरे से आगाज कर रहा है। 10वीं के छात्र शार्दुल कहते हैं कि नवंबर तक नेशनल प्रतियोगिताएं खत्म हो जाती हैं। दिसंबर से जनवरी तक दो महीने पढ़ने का मौका मिलता है। उसी में वह अपना कोर्स खत्म करता है।
ओलंपिक है सौरभ का लक्ष्य
जिस उम्र में बच्चे उछलकूद करते हैं, सौरभ अपनी एकाग्रता की परीक्षा दे रहा था। मासूम चेहरा, लेकिन फौलादी इरादों वाले बालक ने शूटिंग रेंज में एक स्थान पर चार घंटे खड़े रहने का तप किया और सोना बनकर निकला। टूटी पिस्टल से बिनौली के छोटे से कमरे में घंटों प्रैक्टिस करने वाले सौरभ ने बीते एशियाड में स्वर्ण पदक दिलाया और देश का कोहिनूर बन गया।
खेल पंडितों की नजर में सौरभ ओलंपिक में नई इबारत लिखने की ओर बढ़ रहा है। कलीना (मेरठ) निवासी 16 साल के सौरभ को किताबों की दुनिया रास नहीं आई, क्योंकि उसका संसार कहीं अलग था। गांव वाले बताते हैं कि किताबों से बचने के लिए ही सौरभ ने बंदूक उठाई थी। वह गांव के स्कूल में नहीं जाता,इसलिए अमरोहा के एक स्कूल में नाम लिखाया गया। सौरभ के कोच अमित
कुमार शेरॉन याद करते हैं कि उन्होंने 2011 में बिनौली में एक शूटिंग रेंज खोली, जहां चार वर्ष पहले सौरभ के हुनर पर नजर पड़ी। 13 वर्ष की उम्र में 2015 में पहली ही राष्ट्रीय स्पर्धा में 10 मीटर एयर पिस्टल में गोल्ड जीतकर बता दिया कि वह तपकर सोना बन चुका है।
अर्जुन का निशाना अचूक
फतेहगढ़ साहिब, लखबीर सिंह लक्की। यह बालक कुछ हटकर है, दूसरे बच्चों के लिए नजीर है। जैसा नाम वैसा ही काम। एक अर्जुन महाभारत में थे, जिनका निशाना अचूक था। उन्हें मछली नहीं, बल्कि उसकी आंख ही दिखाई देती थी। एक यह अर्जुन है, जिसकी नजर भी लक्ष्य पर ही टिकी रहती है। निशाना अचूक है।
मंडी गोबिंदगढ़(फतेहगढ़ साहिब, पंजाब) निवासी अर्जुन सिंह चीमा 17 वर्ष की आयु में ही निशानेबाजी में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपना लोहा मनवा चुका है। उसने हाल ही में 31 अगस्त से 15 सितंबर तक दक्षिण कोरिया में आयोजित 52वीं इंटरनेशनल शूटिंग स्पोर्ट फेडरेशन (आइएसएसएफ) चैंपियनशिप में भाग लेकर चार मेडल देश की झोली में डाले हैं।
अर्जुन ने 50 मीटर फ्री पिस्टल जूनियर वर्ग में व्यक्तिगत तथा टीम के लिए पहली बार दो स्वर्ण पदक जीते हैं। 10 मीटर एयर पिस्टल में टीम वर्ग में रजत तथा व्यक्तिगत तौर पर कांस्य पदक प्राप्त किया है।