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Sakshi Malik Interview: रियो ओलिंपिक में कांस्य पदक जीतने के बाद प्रदर्शन रहा खराब, मेहनत से आया अब गोल्ड- साक्षी मलिक

साक्षी मलिक ने कहा कि ओलिंपिक में देश का प्रतिनिधित्व करना ही हर खिलाड़ी का सपना रहता है। ओलिंपिक में खेलना ही एक बड़ी उपलब्धि है। फिर मैंने तो कांस्य पदक भी जीता था। पदक जीतने को तुक्का नहीं मानते थे।

By Sanjay SavernEdited By: Published: Wed, 10 Aug 2022 06:48 PM (IST)Updated: Wed, 10 Aug 2022 06:48 PM (IST)
भारतीय महिला पहलवान साक्षी मलिक (एपी फोटो)

2016 रियो ओलिंपिक में देश के लिए कांस्य पदक हासिल किया। मेरे के लिए यह उपलब्धि बहुत बड़ी थी क्योंकि ओलिंपिक में पदक जीतने वाली पहली महिला पहलवान बनीं। इस उपलब्धि से जहां गर्व महसूस किया, वहीं आगे बेहतर प्रदर्शन करने की जिम्मेदारी भी बढ़ गई। लेकिन ओलिंपिक के प्रदर्शन को कायम नहीं रख सकी। दो साल तक तो प्रदर्शन बहुत ही खराब रहा। मेरे से जूनियर पहलवान से कई बार हार का सामना भी करना पड़ा। लोग सोचने लगे थे कि मेरा कुश्ती का करियर अब खत्म होने की कगार पर है, लेकिन दिल से आवाज आ रही थी कि अभी मेरे में खेल बाकी है। यहीं सोचकर मेहनत की, जिसका परिणाम बर्मिंघम कामनवेल्थ गेम्स में देश के लिए गोल्ड मेडल जीता है। दैनिक जागरण रोहतक के मुख्य संवाददाता ओपी वशिष्ठ से पहलवान साक्षी मलिक ने

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कामनवेल्थ में गोल्ड मेडल हासिल करने के अनुभव के बारे में विस्तार से बातचीत की।

सवाल : रियो ओलिंपिक में कांस्य पदक को तुक्का मानते थे। क्योंकि इसके बाद प्रदर्शन काफी खराब रहा। इस बारे में आप क्या कहना चाहते हैं?

जवाब : ओलिंपिक में देश का प्रतिनिधित्व करना ही हर खिलाड़ी का सपना रहता है। ओलिंपिक में खेलना ही एक बड़ी उपलब्धि है। फिर मैंने तो कांस्य पदक भी जीता था। पदक जीतने को तुक्का नहीं मानते थे, ओलिंपिक के बाद जो प्रदर्शन मेरा रहा, उसके आधार पर ऐसा लोगों ने सोचा होगा। लेकिन खेल में हार-जीत, अप-डाउन चलता रहता है। खिलाड़ी को इसकी चिंता करने की बजाय अपने खेल पर ध्यान देना चाहिए। मैंने भी ऐसा ही किया, हार से कभी हताश नहीं हुई और मेहनत पर फोकस किया। कामनवेल्थ में गोल्ड मेडल इसका उदाहरण है।

सवाल : कामनवेल्थ के फाइनल में प्रतिद्वंद्वी पहलवान से पिछड़ गई थी। उस वक्त मन में क्या चल रहा था और बाजी कैसे पलटने में कामयाब हुई?

जवाब : कुश्ती में जब तक छह मिनट का खेल खत्म न हो जाए, तब तक हार-जीत नहीं माननी चाहिए। खराब खेलने से प्रतिद्वंद्वी पहलवान दो अंक बटोरने में सफल हो गई थी। तीन मिनट का खेल बचा था, इसलिए आक्रामक खेलने का समय आ गया। इसलिए अटैक करने की रणनीति बनाई और पहले ही दांव में प्रतिंद्वद्वी चित हो गई। रियो ओलिंपिक में भी यहीं स्थिति थी, लेकिन बाद में मैच मेरे पक्ष में हो गया। इसलिए आखिर तक हार नहीं माननी चाहिए।

सवाल : अक्सर शादी के बाद खिलाड़ी का करियर खत्म हो जाता है। आप इसे कैसे सोचती हैं?

जवाब : शादी के बाद उसके करियर व खेल पर कोई असर नहीं पड़ा। चूंकि मेरे ससुर अखाड़ा सत्यवान कादियान चलाते हैं। पति सत्यव्रत भी पहलवान हैं। इसलिए परिवार ने पूरा सहयोग दिया। पति सत्यव्रत तो मुझे खुद की अभ्यास करवाते हैं। लाकडाउन में भी हमने अभ्यास नहीं छोड़ा। दोनों अखाड़े में प्रैक्टिस करते थे। सत्यव्रत में वजन ज्यादा है, लेकिन फिर भी उसके साथ अभ्यास करती रहीं। मायके और ससुराल पक्ष से हर वक्त प्रेरित किया जाता है।

सवाल : अगला लक्ष्य क्या है। और युवा पहलवानों को क्या संदेश देना चाहती हैं?

जवाब : ओलिंपिक ब्रांज मेडल जीत चूकी हूं। कामनवेल्थ में भी ब्रांज और सिल्वर देश की झोली में डाल चूकी हूं। लेकिन गोल्ड का सपना पूरा नहीं हो पाया था। बर्मिंघम में गोल्ड का सपना पूरा हो गया। अब अगला लक्ष्य पेरिस

ओलिंपिक में देश के लिए गोल्ड लाने का है। अब पूरा फोकस पेरिस ओलिंपिक होगा। युवाओं को हार से हताश और जीत पर घमंड नहीं करना चाहिए। अपने खेल पर फोकस करें। परिणाम खुद ही अच्छा आएगा।


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