एक पैर के सहारे ही लक्ष्य साध रहे धनुर्धर मुकीम, आठ साल की उम्र में ही खो दिया था पैर
आठ साल की उम्र में सड़क हादसे में अपना एक पैर खोने वाले मुहम्मद मुकीम ने अपनी तपस्या जैसे कठिन परिश्रम से राष्ट्रीय तीरंदाज बनने का गौरव प्राप्त किया है। वह परिवार के पालन पोषण के लिए पेट्रोल पंप पर काम करते हैं।
नई दिल्ली, पुष्पेंद्र कुमार। अगर किसी काम को करने के लिए जुनून हो तो कामयाबी मिल ही जाती है। इसे साबित किया है त्रिलोकपुरी निवासी दिव्यांग तीरंदाज 30 वर्षीय मुहम्मद मुकीम ने। उन्हें देखकर विश्वास नहीं होता कि वह इतने दर्द, तड़प, उलाहना सहकर आगे बढ़े होंगे। शारीरिक चुनौतियों का सामना करते हुए मुकीम ने तीरंदाज के तौर पर भविष्य को चुना, बल्कि अन्य दिव्यांग बच्चों की प्रेरणा भी बन रहे हैं।
उन्होंने बताया कि परिवार में पिता जमील अहमद, माता मुखिदा बेगम के अलावा चार भाई व एक बहन हैं। माता-पिता अक्सर बीमार रहते थे। परिवार के पालन पोषण के चलते पढ़ाई के साथ तीरंदाजी का अभ्यास भी बीच सफर में ही छोड़ना पड़ा। इतने रुपये नहीं हुआ करते थे कि किसी तीरंदाजी सेंटर में जाकर अपनी तैयारी को बरकरार रखा जा सके। परिवार की आíथक स्थिति को देखकर महज 12 साल की उम्र से ही एक दर्जी की दुकान पर सिलाई का काम सीखा। फिर उसी दुकान पर तीन हजार रुपये प्रतिमाह पर काम भी किया। दिन-रात काम कर कुछ रुपये जुटाकर उन्होंने लकड़ी का साधारण सा रिकर्व धनुष खरीदा। उसी धनुष से तैयारी कर एक राष्ट्रीय तीरंदाज बने।
सड़क दुर्घटना में खोया पैर
मुकीम बताते हैं कि जब वह आठ साल के थे तो एक बस दुर्घटना में उनका पैर पूरी तरह कुचल गया, जिसके चलते डॉक्टरों को पैर काटना पड़ा। करीब साल भर तो ठीक से चल तक नहीं पाए, लेकिन कुछ कर गुजरने की जिद के दम पर वह आज अपने लक्ष्य पर निशाना साध रहे हैं।
और बन गए राष्ट्रीय तीरंदाज
कोच आसिफ ने बताया कि मुकीम के घर की आíथक स्थिति खराब है, लेकिन उन्होंने उसे अपने आड़े नहीं आने दिया। एक साल उन्होंने जमकर मेहनत की। राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में बेहतरीन प्रदर्शन किया। इसके बाद इनका चयन राष्ट्रीय पैरा प्रतियोगिता के लिए हुआ। महाराष्ट्र में आयोजित पैरा तीरंदाजी चैंपियनशिप 2009 में दिल्ली के लिए दो रजत पदक हासिल किए। साथ ही रोहतक में आयोजित प्रतियोगिता में टीम के साथ मिलकर एक स्वर्ण पदक जीता। मुकीम का सपना पैरा ओलिंपिक में पदक जीतकर देश का नाम रोशन करना है।
पेट्रोल पंप पर करते हैं काम
जिस दर्जी की दुकान पर मुकीम काम करते थे वो कोरोना महामारी के चलते बंद हो गई। ऐसे में त्रिलोकपुरी के एक छोटे से घर में रहने वाले मुकीम अपने परिवार के पालन पोषण के लिए अब वहीं एक पेट्रोल पंप पर काम कर रहे हैं। एक पैर के सहारे दिन में पंप पर वाहनों में पेट्रोल भरते हैं और रात को तीरंदाजी का अभ्यास भी करते हैं।