विकास शर्मा, चंडीगढ़। वक्त के साथ खेलों में काफी सुधरा हुआ है। एथलेटिक्स खेलों के प्रति अब परिजनों का नजरिया भी बदला है और परिजन अब बच्चों को खुद एथलेटिक्स खेलें खेलने के लिए प्रमोट करते हैं। एथलेटिक्स खेलों की दृष्टि से यह बदलाव अच्छे हैं। हम पहले से काफी बेहतर कर रहे लेकिन अभी भी बड़े टूर्नामेंट्स में हमारे खिलाड़ी खेल प्रेमियों को निराश ही करते हैं। यह कहना है उड़न सिख पद्मश्री मिल्खा सिंह का। उन्होंने कहा कि मुझे तो एथलेटिक्स के स्पेलिंग तक नहीं आते थे, आर्मी ने तराशा तो मेरे नाम के आगे उड़न सिख लग गया। वर्ल्ड एथलेटिक्स डे पर दैनिक जागरण से बातचीत करते हुए मिल्खा सिंह ने खेल से जुड़े कई सवालों पर अपनी बेबाक राय रखी।
खिलाड़ियों में नहीं दिखता वो जीत का जज्बा
मिल्खा सिंह कहते हैं कि रोम ओलंपिक जाने से पहले मैंने दुनिया भर में कम से कम 80 दौड़ों में भाग लिया था, उसमें मैंने 77 दौड़ें जीतीं जिससे मेरा एक रिकार्ड बन गया था। सारी दुनिया ये उम्मीद लगा रही थी कि रोम ओलंपिक में कोई अगर 400 मीटर की दौड़ जीतेगा तो वो भारत के मिल्खा सिंह होंगे। मैं इतने सालों से इंतजार कर रहा हूं कि कोई दूसरा इंडियन वो कारनामा कर दिखाए, जिसे करते-करते मैं चूक गया था, लेकिन हम एक भी मेडल नहीं जीत पाए। उन्होंने कहा क्रिकेट सिर्फ 10 से 14 देश खेलते हैं, लेकिन एथलेटिक्स गेम्स 200 से ज्यादा देश खेलते हैं। इसलिए एथलेटिक्स में महत्व को हमें समझना होगा।
उन्होंने बताया कि हमारे जमाने में तो मैदान थे और न ही अनुभवी कोच थे। हम नंगे पांव दौड़े, बावजूद इसके हमने अपनी मेहनत से शानदार प्रदर्शन किया, लेकिन अब देश में तमाम तरह की सुविधा हैं, फिर भी खिलाड़ियों में जीत का वो जुनून देखने को नहीं मिलता है।
हेमादास और दूती चंद में दिखता है वो जुनून
मिल्खा सिंह को टोक्यो ओलंपिक 2021 में एथलीट हेमादास से मेडल की उम्मीद है। हेमादास में वो जीत का जुनून देखते हैं। उन्होंने बताया कि वह खुद 400 मीटर रेस का धावक रहा हूं, इसीलिए कुछ महीने पहले मैंने हेमादास के कोच को फोन कर टिप्स दिए थे कि कैसे वह हेमादास को ओलंपिक के लिए अपनी तैयारी करें। उन्होंने कहा खिलाड़ी का प्रदर्शन काफी हद तक कोचिंग पर भी निर्भर करता है। पीटी ऊषा में ओलंपिक मेडल जीतने की क्षमता थी, लेकिन उसे बेहतर कोच नहीं मिले।
लॉकडाउन फिटनेस के लिए सिर्फ 10 मिनट तेज दौड़े
मिल्खा सिंह बताते हैं कि अभी उनकी उम्र 90 साल की हो गई है। वह सामान्य दिनों में रोज गोल्फ खेलते हैं। अपनी फिटनेस के लिए घर में ही जिम बना रखा है, जहां रोज एक दो घंटे हल्की एक्सरसाइज करता हूं। उन्होंने कहा कि दौड़ ही सब खेलों की मां है। अगर अापको दौड़ने की आदत पड़ जाती है, तो आपके साथ आपकी आने वाली पीढ़ियां भी सुधर जाती हैं। हम पूरी उम्र दूसरों के लिए दौड़ते हैं इसलिए रोज 10 मिनट जरूर अपने लिए भी दौड़े।