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पीटी उषा बनना चाहती है झारखंड के मुटकू गांव की रिंकू

माड़-भात खाकर और गांव की ऊबड़-खाबड़ जमीन पर दौड़ने का अभ्यास कर रिंकू ने जिला, राज्य व राष्ट्र स्तरीय प्रतियोगिताओं में पदकों की झड़ी लगा दी।

By Lakshya SharmaEdited By: Published: Wed, 05 Dec 2018 06:16 PM (IST)Updated: Thu, 06 Dec 2018 06:33 AM (IST)
पीटी उषा बनना चाहती है  झारखंड के मुटकू गांव की रिंकू
पीटी उषा बनना चाहती है झारखंड के मुटकू गांव की रिंकू

मनोज सिंह, जमशेदपुर। झारखंड के मुटकू गांव की रिंकू बिटिया दूसरी पीटी ऊषा बनना चाहती है। 14 साल की उम्र में वह सौ से अधिक मेडल जीत चुकी है। लेकिन यह उपलब्धि उसने अतिसीमित संसाधनों और गरीबी के बीच हासिल की। उसके पिता खेतिहर किसान हैं।

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माड़-भात खाकर और गांव की ऊबड़-खाबड़ जमीन पर दौड़ने का अभ्यास कर रिंकू ने जिला, राज्य व राष्ट्र स्तरीय प्रतियोगिताओं में पदकों की झड़ी लगा दी। 31वीं नेशनल जूनियर एथलेटिक्स चैंपियनशिप में भी पदक जीता। अब उसे अभ्यास के लिए बुनियादी सुविधाओं की दरकार है। 14 वर्षीय होनहार धाविका रिंकू सिंह शहर में स्थित खेल मैदान पर अभ्यास करना चाहती है। 

कहती है, ट्रैक पर दौड़ने मिल जाए तो सबको पीछे छोड़ दूं। जमशेदपुर प्रखंड से दस किलोमीटर दूर शंकरदा पंचायत में है मुटकू गांव। शहर से सटे होने के बावजूद रिंकू को खेल का मैदान मुहैया नहीं है। इस साल मैट्रिक की परीक्षा दे चुकी रिंकू दिल्ली, कोलकाता, गुवाहाटी के अलावा बोकारो, रांची, धनबाद, देवघर, जमशेदपुर में अपने खेतिहर किसान पिता राजेश सिंह की मदद और प्रशिक्षण के बूते विद्यालय, इंटर स्कूल, जिला स्तरीय, राज्य स्तरीय के अलावा नेशनल प्रतियोगिताओं में भाग लेकर पुरस्कार जीतती आई है। पिता राजेश भी कभी एथलीट हुआ करते थे, लेकिन गरीबी के कारण आगे नहीं बढ़ सकें।

राजेश कहते हैं, जमशेदपुर को लौहनगरी के साथ खेल नगरी भी कहा जाता है। यहां टाटा स्टील की ओर से हर विधा के खिलाड़ी तराशे जाते हैं। लेकिन मेरी होनहार बिटिया को कोई प्रोत्साहन या सुविधा नहीं मिल सकी है। यही नहीं राज्य सरकार ने खेल और खिलाडि़यों को बढ़ावा देने के लिए जिला स्तर पर उपायुक्त की अध्यक्षता में कमेटी गठित की है। लेकिन उसने भी रिंकू की सुध नहीं ली। गरीब पिता की भी तमन्ना है कि वह अपनी बेटी को दूसरी पीटी ऊषा बनते देख सकें। रिंकू बताती है कि वह स्कूल के मैदान पर दौड़ती है। राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं की तैयारी भी यहीं करती है।

प्रतियोगिता में उतरने से सप्ताह भर पहले पिता उसे अपने खर्च पर रांची ले जाते हैं। जहां मौजूद सिंथेटिक ट्रैक पर दिनभर दौड़ने के बाद जमशेदपुर लौट आती है। पिता राजेश सिंह बताते हैं कि पैसे के अभाव में महज एक सप्ताह ही रांची लाना-ले जाना कर पाते हैं। इतने में ही बेटी पुरस्कार जीतने में सक्षम हो जाती है। यदि रिंकू को सिंथेटिक ट्रैक व जिम की नियमित सुविधा दिला दी जाए तो वह नए कीर्तिमान रचने में अवश्य सफल होगी। 


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