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8 साल की उम्र में हुआ था भयानक हादसा, हिम्मत, हौसले और हुनर ने बना दिया मिसाल

देवेंद्र झाझरिया को 2004 में अर्जुन अवॉर्ड और फिर 2012 में पद्म श्री पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है।

By Shivam AwasthiEdited By: Published: Thu, 03 Aug 2017 09:37 PM (IST)Updated: Fri, 04 Aug 2017 01:40 PM (IST)
8 साल की उम्र में हुआ था भयानक हादसा, हिम्मत, हौसले और हुनर ने बना दिया मिसाल
8 साल की उम्र में हुआ था भयानक हादसा, हिम्मत, हौसले और हुनर ने बना दिया मिसाल

शिवम् अवस्थी, स्पेशल डेस्क, [नई दिल्ली]। हिम्मत, हौसले और हुनर की बहुत सी कहानियां आपने सुनी होंगी।भारतीय खेल जगत में एक नाम ऐसा है जो हमेशा से सुर्खियों के काबिल रहा लेकिन अब जाकर वो उस पुरस्कार की दहलीज पर खड़ा है जिसका वो सालों से हकदार था। ये सिर्फ एक खिलाड़ी की सफलता नहीं, बल्कि प्रेरित करनेे वाली कहानी है। 

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- 'खेल रत्न'

हम यहां बात कर रहे हैं भारतीय पैरालंपियन देवेंद्र झाझरिया की, जिनका नाम इस साल भारत के सर्वोच्च खेल सम्मान 'राजीव गांधी खेल रत्न' के लिए आगे बढ़ाया गया है। जस्टिस (रिटायर्ड) सीके ठक्कर की अध्यक्ष्ता वाली चयन समिति ने देवेंद्र के साथ हॉकी दिग्गज सरदार सिंह के नाम की भी सिफारिश की है लेकिन देवेंद्र झाझरिया इस समिति की पहली पसंद है। अब फैसला खेल मंत्रालय को करना है हालांकि चयन समिति ने दोनों को इस पुरस्कार से सम्मानित करने की गुजारिश की है।

- 8 साल की उम्र में हुआ भयानक हादसा

देवेंद्र झाझरिया का जन्म 10 जून 1981 को राजस्थान के चुरू जिले में हुआ था। जब देवेंद्र 8 साल के थे तब पेड़ पर चढ़ते हुए उन्होंने गलती से एक बिजली के तार को छू लिया था, बताया जाता है कि वो तकरीबन 11 हजार वोल्ट वाला तार था। उन्हें बिजली का भयानक झटका लगा जिसके तुरंत बाद उनको अस्पताल ले जाना पड़ा। हालत इतनी गंभीर थी कि डॉक्टरों को उनका बायां हाथ शरीर से अलग करने पर मजबूर होना पड़ा।

- लिया अहम फैसला

देवेंद्र ने अपने एक इंटरव्यू में बताया था कि जब उन्होंने कई ऐसे लोगों को देखा जिनके दोनों हाथ या दोनों पैर नहीं थे तब उनको अहसास हुआ कि कम से कम उनके पास एक हाथ तो है। इसी सोच को उन्होंने अपनी ताकत बनाया। उन्हें शुरुआत से ही खेलों में दिलचस्पी थी और उन्होंने फैसला लिया कि वो इसी क्षेत्र में अपने कदम आगे बढ़ाएंगे। देवेंद्र ने खेलों में भाला फेंक (जेवलिन थ्रो) को चुना जिसमें आपको अपने एक ही हाथ से कमाल दिखाना होता है। 

- लोग कहते थे सिफारिश से आए हो

देवेंद्र के मुताबिक एक समय ऐसा था जब वो प्रतियोगिताओं में जाते थे तो लोग उनको देखकर कहते थे कि 'तुम किसी की सिफारिश से आए हो' लेकिन जब वो भाले को फेंकते थे तो सब हैरान रह जाते थे और उनसे माफी भी मांगते थे। उनको अपनी जिंदगी में एक बड़े मौके की तलाश थी और वो मौका आया जिला चैंपियनशिप के जरिए। अपने जिले एक एथलेटिक्स चैंपियनशिप में उन्होंने जेवलिन थ्रो में जीत हासिल की और उसके बाद हौसले का ये सफर आगे बढ़ चला।

- 21 की उम्र में बड़ा कमाल, 23 की उम्र में रचा इतिहास

2002 में 21 साल के देवेंद्र ने कोरिया में आयोजित फार ईस्ट एंड साउथ पैसिफिक पैरा चैंपियनशिप में उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपना पहला पदक जीता। इस सफलता ने उनके मनोबल को दोगुना कर दिया और फिर दो साल बाद बारी आई एथेंस (ग्रीस) में आयोजित पैरालंपिक गेम्स की। देवेंद्र ने उन गेम्स में स्वर्ण पदक दिलाया और वो पैरालंपिक खेलों में भारत को शीर्ष पदक दिलाने वाले पहले खिलाड़ी बने।

- फिर करना पड़ा लंबा इंतजार..लेकिन...

देवेंद्र जेवलिन थ्रो की F46 केटेगरी में हिस्सा लेते थे लेकिन इस इवेंट को अगले दो पैरालंपिक खेलों में शामिल ही नहीं किया गया। उन्हें तकरीबन 12 सालों का लंबा इंतजार करना पड़ा लेकिन इस खिलाड़ी ने हिम्मत नहीं हारी। आखिरकार पिछले साल (2016) रियो ओलंपिक में आखिरकार F46 जेवलिन थ्रो को फिर से पैरालंपिक खेलों में शामिल किया गया। देवेंद्र 35 साल के हो चुके थे। आमतौर पर इतने लंबे इंतजार के बाद खिलाड़ियों का मनोबल टूटने लगता है लेकिन देवेंद्र की बात ही कुछ और है। उन्होंने न सिर्फ इन पैरालंपिक खेलों में हिस्सा लिया बल्कि एक बार फिर गोल्ड मेडल जीता। इस बार तो उन्होंने 2004 में बनाया गया अपना ही रिकॉर्ड तोड़ दिया और 63.97 मीटर के थ्रो के साथ नया विश्व रिकॉर्ड बना डाला। वैसे इस बड़ी सफलता से पहले 2013 (ल्योन) की आइपीसी विश्व चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल और 2015 (दोहा) की आइपीसी विश्व चैंंपियनशिप में उन्होंने सिल्वर मेडल भी जीता था। इसके अलावा 2014 (इंचियोन) के एशियन पैरा गेम्स में भी वो सिल्वर मेडल जीतने में सफल रहे। ये सभी पदक उन्होंने F46 केटेगरी में जीते और देश का नाम रोशन किया। 

- सम्मान

देवेंद्र झाझरिया को 2004 में अर्जुन अवॉर्ड और फिर 2012 में पद्म श्री पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। वहीं, 2014 में FICCI द्वारा साल के सर्वश्रेष्ठ पैरा एथलीट का अवॉर्ड भी उनको दिया गया। देवेंद्र फिलहाल भारतीय खेल प्राधिकरण (साइ) से भी जुड़े हुए हैं।


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