नौकरी छोड़ खेलों में सुधार करने के लिए चुनी राजनीति : योगेश्वर दत्त
योगेश्वर दत्त ने कहा कि ग्रामीण अंचल में प्रतिभावान खिलाड़ी हैं लेकन उन्हें खेल के संसाधन मुहैया नहीं हो रहे हैं।
पानीपत। हरियाणा की राजनीति में हाथ आजमाने उतर चुके ओलंपिक पदक विजेता योगेश्वर दत्त ने कहा कि ग्रामीण अंचल में प्रतिभावान खिलाड़ी हैं लेकन उन्हें खेल के संसाधन मुहैया नहीं हो रहे हैं। इसी वजह से पिछड़ जाते हैं। ऐसी खेल नीति बने जिससे गांवों में अखाड़े व खेल के मैदान बनाए जाएं। स्कूल स्तर पर खेल के अच्छे उपकरण व बेहतरीन ट्रेनर हों। स्कूलों से ही खेल का स्तर सुधर जाए तो प्रदेश के खिलाड़ी कुश्ती, कबड्डी और एथलेटिक्स में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ज्यादा पदक जीत सकेंगे। खेलों की व्यवस्था में सुधार और खिलाडि़यों के भले के लिए उसने राजनीति का रास्ता चुना है। मौका मिला तो अच्छी खेल नीति बनाने में योगदान दूंगा।
योगेश्वर ने दैनिक जागरण से विशेष बातचीत में कहा कि डीएसपी के पद पर रहते हुए बंदिशें थीं। मैं खेलों पर पूरा ध्यान नहीं दे पा रहा था। इसी वजह से नौकरी छोड़ दी। शिष्य और इस समय भारत के सर्वश्रेष्ठ पहलवानों में से एक बजरंग पूनिया के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा कि वह लेग अटैक पर प्वाइंट दे देते थे। ये हार का कारण बनता था। इस अटैक से बचने के लिए बजरंग की तैयारी कराई जा रही है। अब वह बचाव के साथ-साथ अटैक करने में भी माहिर हो रहे हैं। विश्व कुश्ती चैंपियनशिप के पदक विजेता दीपक पूनिया, बजरंग, रवि दहिया और विनेश फोगाट से टोक्यो ओलंपिक में पदक की उम्मीद है। साक्षी मलिक और पूजा ढांडा भी ओलंपिक के लिए क्वालीफाई कर लेंगी।
ओलंपिक में स्वर्ण का सपना नहीं देखा, इसी वजह से जीत नहीं पाया : योगेश्वर ने कहा कि उन्होंने सात वर्ष की उम्र में कुश्ती का अभ्यास शुरू कर दिया था। ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने का सपना नहीं देखा था। ओलंपिक का कांस्य पदक जीतने में 17 साल लग गए। अगर स्वर्ण पदक जीतने का लक्ष्य होता तो शायद हासिल भी कर लेता। युवा खिलाडि़यों को ओलंपिक के स्वर्ण पदक के सपने देखने के साथ-साथ जीतने के लिए कड़ा अभ्यास करना चाहिये। उन्होंने कहा कि ओलंपिक व एशियन गेम्स में भारत को पदक तालिका में पहले शीर्ष-10 और फिर शीर्ष-तीन में पहुंचाना हमारा लक्ष्य है।