तीरंदाजी में करियर बनाना चाहती थीं भारतीय भारोत्तोलक मीराबाई
कॉमनवेल्थ गेम्स की स्वर्ण पदक विजेता भारतीय महिला भारोत्तोलक मीराबाई चानू पहले तीरंदाजी में अपना करियर बनाना चाहती थीं
नई दिल्ली, प्रेट्र। विश्व चैंपियन और कॉमनवेल्थ गेम्स की स्वर्ण पदक विजेता भारतीय महिला भारोत्तोलक मीराबाई चानू पहले तीरंदाजी में अपना करियर बनाना चाहती थीं लेकिन कोच के कारण उन्हें भारोत्तोलन में आना पड़ा। मीराबाई मुश्किल हालातों से लड़कर अपने स्वर्ण पदक की राह तक पहुंची हैं। उन्होंने पिछले साल अमेरिका में विश्व चैंपियनशिप में 48 किग्रा में पीला तमगा हासिल किया था जबकि हाल ही में समाप्त हुए गोल्ड कोस्ट कॉमनवेल्थ गेम्स में स्वर्ण का भार उठाया था।
मणिपुर की राजधानी इंफाल से 20 किमी दूर नोंगपोक काकचिंग गांव के एक गरीब परिवार की मीराबाई ने शुरू में ही तय कर लिया था कि वह खिलाड़ी बनेंगी। कोच की तलाश में वह 2008 में इंफाल के खुमान लांपाक पहुंची और उसके बाद मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने कहा, 'मेरे सारे भाई फुटबॉल खेलते हैं लेकिन दिन भर खेलने के बाद गंदे होकर घर आते थे। मैं ऐसे खेल को चुनना चाहती थी जिसमें साफ सुथरी रहूं। पहले मैं तीरंदाज बनना चाहती थी जो साफ सुथरे और स्टायलिश रहते हैं। वे खड़े-खड़े निशाना साधते हैं। एक दिन मैं लांपाक के साई सेंटर गई लेकिन मैं किसी तीरंदाज से नहीं मिल सकी।'
उन्होंने कहा, 'उस समय मैने अंतरराष्ट्रीय स्तर पद कुंजरानी देवी की उपलब्धियों की झलक देखी और भारोत्तोलन अपनाने के बारे में सोचा। कुछ दिन बाद मैं भारोत्तोलन प्रशिक्षण केंद्र गई और मेरी मुलाकात अनिता चानू से हुई जिन्होंने मुझे इस खेल में पदार्पण के लिए कहा। मैं रोज सुबह छह बजे सेंटर पहुंचती थी और 22 किमी का सफर तय करने के लिए दो बस बदलनी पड़ती थी। शुरुआत में कठिन था लेकिन बाद में कोई परेशानी नहीं हुई।'
23 वर्षीय मीराबाई ने कहा, 'एशियन गेम्स के सभी शीर्ष प्रतिद्वंद्वी ओलंपिक में होंगे। एशियन गेम्स में स्वर्ण जीतने पर मैं ओलंपिक में भी जीत सकती हूं, लेकिन इसके लिए 196 किलो से ज्यादा वजन उठाना होगा। मेरा लक्ष्य 200 किलो है।'