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भारतीय मुक्केबाजी के पहले द्रोणाचार्य ओपी भारद्वाज का निधन, 1968 से 1989 तक राष्ट्रीय टीम के कोच रहे

चेन्नई के निवासी ओपी भारद्वाज 1968 से 1989 तक भारतीय राष्ट्रीय मुक्केबाजी टीम के कोच रहे। वह राष्ट्रीय चयनकर्ता भी रहे। उनके कोच रहते हुए भारतीय मुक्केबाजों ने एशियन गेम्स कॉमनवेल्थ गेम्स और साउथ एशियन गेम्स में पदक जीते।

By Sanjay SavernEdited By: Published: Fri, 21 May 2021 06:50 PM (IST)Updated: Fri, 21 May 2021 06:50 PM (IST)
भारतीय मुक्केबाजी के पहले द्रोणाचार्य ओपी भारद्वाज का निधन, 1968 से 1989 तक राष्ट्रीय टीम के कोच रहे
भारतीय मुक्केबाजी के पहले द्रोणाचार्य ओपी भारद्वाज का निधन (एपी फोटो)

नई दिल्ली, प्रेट्र। मुक्केबाजी में भारत के पहले द्रोणाचार्य पुरस्कार विजेता कोच ओपी भारद्वाज का लंबी बीमारी और उम्र संबंधी परेशानियों के कारण शुक्रवार को निधन हो गया। वह 82 वर्ष के थे। उनकी पत्नी संतोष का 10 दिन पहले ही बीमारी के कारण निधन हुआ था।

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1985 में द्रोणाचार्य पुरस्कार शुरू किए जाने पर ओपी भारद्वाज को बालचंद्र भास्कर भागवत (कुश्ती) और ओएम नांबियार (एथलेटिक्स) के साथ प्रशिक्षकों को दिए जाने वाले इस सर्वोच्च पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। पूर्व मुक्केबाजी कोच और भारद्वाज के परिवार के करीबी मित्र टीएल गुप्ता ने कहा, 'स्वास्थ्य संबंधी कई परेशानियों के कारण वह पिछले कई दिनों से अस्वस्थ थे और अस्पताल में भर्ती थे। उम्र संबंधी परेशानियां भी थीं और 10 दिन पहले पत्नी के निधन से भी उन्हें आघात पहुंचा था।'

चेन्नई के निवासी ओपी भारद्वाज 1968 से 1989 तक भारतीय राष्ट्रीय मुक्केबाजी टीम के कोच रहे। वह राष्ट्रीय चयनकर्ता भी रहे। उनके कोच रहते हुए भारतीय मुक्केबाजों ने एशियन गेम्स, कॉमनवेल्थ गेम्स और साउथ एशियन गेम्स में पदक जीते। भारतीय मुक्केबाजी महासंघ के अध्यक्ष अजय सिंह ने उनके निधन पर शोक जताया। सिंह ने कहा, 'ओपी भारद्वाज मुक्केबाजी के खेल के ध्वजवाहक थे। एक कोच के रूप में उन्होंने मुक्केबाजों और प्रशिक्षकों की एक पीढ़ी को प्रेरित किया, जबकि एक चयनकर्ता के रूप में उनका काम दूरदर्शी और अद्वितीय रहा। मैं भारतीय मुक्केबाजी महासंघ के अपने साथियों के साथ इस अपूर्णीय क्षति पर शोक जताता हूं और उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करता हूं।'

भारद्वाज राष्ट्रीय खेल संस्थान (एनआइएस) पटियाला के पहले मुख्य प्रशिक्षक थे। गुप्ता ने कहा, 'उन्होंने पुणे में सेना स्कूल एवं शारीरिक प्रशिक्षण केंद्र में अपना करियर शुरू किया और सेना के मशहूर कोच बने। एनआइएस ने 1975 में जब मुक्केबाजी में कोचिंग डिप्लोमा का प्रस्ताव रखा तो भारद्वाज को पाठ्यक्रम की शुरुआत के लिए चुना गया। मुझे गर्व है कि मैं उनके शुरुआती शिष्यों में शामिल था।'

भारद्वाज ने 2008 में कांग्रेस के सांसद राहुल गांधी को भी दो महीने तक मुक्केबाजी के गुर सिखाए थे। पूर्व राष्ट्रीय कोच गुरबख्श सिंह भी उनके शुरुआती शिष्यों में शामिल थे। गुरबख्श सिंह ने कहा, 'मेरी भारद्वाज के साथ बहुत अच्छी दोस्ती थी। मैं एनआइएस में उनका शिष्य और सहायक था। उन्होंने ही भारतीय मुक्केबाजों को आगे तक पहुंचाने की नींव रखी थी।' राष्ट्रीय महासंघ के पूर्व महासचिव ब्रिगेडियर (सेवानिवृत) पीकेएम राजा ने कहा कि भारद्वाज का खेल में अपने योगदान के लिए बहुत सम्मान था। उन्होंने कहा, 'वह सेना खेल नियंत्रण बोर्ड के दिग्गज थे। सही मायनों में वह बेहतरीन कोच और प्रभावशाली व्यक्ति थे।'


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