EXCLUSIVE INTERVIEW: प्रधानमंत्री ने देश की भावना को महसूस किया: अशोक ध्यानचंद
दैनिक जागरण से खास बातचीत करते हुए अशोक ध्यानचंद ने कहा कि ये एक ऐसा फैसला है जिस पर सभी को गर्व होगा। ध्यानचंद साहब को जो सम्मान पहले ही मिल जाना चाहिए था वो देर से ही सही अब मिला है।
भारतीय पुरुष हाकी टीम ने 41 साल का सूखा खत्म करते हुए गुरुवार को टोक्यो में ओलिंपिक पदक जीता तो महिला टीम ने भी चौथे स्थान पर रहकर ओलिंपिक में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया। भारतीय हाकी टीमों के शानदार प्रदर्शन से देश में खेल के सर्वोच्च पुरस्कार का नाम हाकी के जादूगर कहे जाने वाले मेजर ध्यानचंद के नाम पर करने की मांग उठने लगी। इस मांग की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जरा भी अनदेखी नहीं की और शुक्रवार को घोषणा कर दी कि भारत के सर्वोच्च खेल सम्मान खेल रत्न पुरस्कार का नाम अब राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार नहीं, बल्कि मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार होगा। सरकार के इस फैसले और अन्य मुद्दों को लेकर मेजर ध्यानचंद के बेटे और पूर्व विश्व कप विजेता हाकी टीम के सदस्य अशोक ध्यानचंद से उमेश राजपूत ने खास बातचीत की। पेश हैं प्रमुख अंश :-
-इस फैसले को किस तरह से देखते है?
--ये एक ऐसा फैसला है जिस पर सभी को गर्व होगा। ध्यानचंद साहब को जो सम्मान पहले ही मिल जाना चाहिए था वो देर से ही सही अब मिला है। टोक्यो ओलिंपिक में कांस्य पदक ने भारतीय हाकी को एक नई ऊर्जा दी है और इसे फिर से मुख्य चर्चा का विषय बना दिया है। हाकी के प्रति इस देश के लोगों और खिलाडि़यों में एक अलग तरह की भावनाएं हैं और मैं समझता हूं कि इस जीत के बाद प्रधानमंत्री के दिल में भी यही भावना आई होगी कि किस तरह एक खिलाड़ी संघर्ष के दौर से गुजरकर आगे बढ़ता है और देश का नाम रोशन करता है। उन्होंने देश की इस भावना को महसूस किया और इस पुरस्कार को ध्यानचंद साहब का नाम दिया।
-खिलाड़ी को तो खेल पुरस्कार मिलता ही है, लेकिन यदि वो खेल पुरस्कार भी किसी खिलाड़ी के नाम पर हो तो क्या उससे कुछ खास फर्क पड़ता है?
--यह पुरस्कार हर साल किसी खिलाड़ी को खेल में सबसे बड़ी उपलब्धि या सफलता हासिल करने के लिए दिया जाता है। अब जब कोई खिलाड़ी देश के सबसे बड़े खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद के नाम पर देश के सबसे बड़े खेल पुरस्कार खेल रत्न को हासिल करेगा तो उसके लिए इससे बड़ी उपलब्धि और इससे सुखद अनुभूति दूसरी कोई नहीं हो सकती।
-आज अगर मेजर ध्यानचंद साहब हमारे बीच होते तो कैसा महसूस करते?
--ऐसी चीजें यदि इंसान के जीते जी हो जाएं तो उसे गर्व की अद्भुत अनुभूति होती है। बाबूजी भी जब ओलिंपिक स्वर्ण पदक जीतते थे तो वह भी ऐसा ही महसूस करते होंगे। लेकिन, उन्होंने कभी अपना बखान नहीं किया। उन्होंने गोल नाम से अपनी आत्मकथा लिखी, उसमें भी कुछ बड़ा-चढ़ाकर नहीं बोला। उन्होंने हमेशा अपनी या अपने छोटे भाई की उपलब्धियों को भी बहुत हल्के शब्दों में या इशारों में ही बयान किया। इसलिए मुझे लगता है कि वह यदि आज होते तो उन्हें खुशी जरूर होती, लेकिन वह उसे जाहिर नहीं करते।
-मेजर ध्यानचंद के जन्मदिन पर राष्ट्रीय खेल दिवस और अब उनके नाम पर खेल रत्न पुरस्कार, तो क्या अभी भी उनके लिए भारत रत्न की मांग उठनी चाहिए?
--देखिए, ये सभी चीजें अलग हैं। इन्हें एक चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए। हर साल राष्ट्रीय खेल दिवस पर पूरा देश उन्हें याद करता है और अब उस दिन उनके नाम पर खेल रत्न पुरस्कार भी दिया जाएगा। ये देश की उपलब्धि की बाते हैं और हमें इस पर गर्व भी है, लेकिन बाबूजी को भारत रत्न मिलना उनकी और उनके परिवार की उपलब्धि होगी।
-ध्यानचंद परिवार ने उनके अलावा रूप सिंह, आप खुद और आपकी भतीजी नेहा सिंह जैसे अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी देने के अलावा जूनियर व राष्ट्रीय स्तर पर भी कई हाकी खिलाड़ी दिए, लेकिन कभी किसी को ना तो पद्म पुरस्कार मिला और ना कभी किसी ने मांगा, तो क्या आपको लगता है कि सरकार को ये पुरस्कार के लिए मांग करने की परंपरा भी खत्म कर देना चाहिए?
--बिलकुल, ये बंद होनी चाहिए और मुझे लगता है कि जब आप इस बात को लिखेंगे तो सरकार इस पर भी विचार करेगी। सरकार को विचार करना चाहिए कि इस तरह की शख्सियत जो अपने आत्मसम्मान के चलते आगे बढ़कर कुछ कह नहीं पाते या मांग नहीं कर पाते उनके लिए सरकार के द्वारा कुछ करने की शुरुआत करना अपने आप में एक मिसाल होगी। बाबूजी और चाचाजी (कैप्टन रूप सिंह) दोनों ही ओलिंपिक स्वर्ण पदक विजेता रहे हैं। मैंने उन्हें काफी तकलीफों और परेशानियों में दौर में देखा है, लेकिन उन्होंने कभी किसी से कुछ नहीं कहा। ध्यानचंद परिवार के पास छह ओलिंपिक पदक और तीन विश्व कप पदक हैं। यही पदक हमारी और हमारे परिवार की अगली पीढ़ी की विरासत हैं। मुझे गर्व है कि हमारा परिवार उनकी विरासत को संभालने में सफल रहा।